Thursday 5 December 2019

नागरिकता संशोधन : राजनीतिक हित से जरूरी राष्ट्रहित



केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश किये जाने वाले नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर राजनीतिक हल्ला शुरू हो गया है। गत दिवस इसे मंत्रिपरिषद की मंजूरी मिलने के बाद विपक्षी दलों की मोर्चेबंदी भी तेज हो चली है। लोकसभा में तो सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है इसलिए विधेयक को पारित करवाने में विशेष दिक्कत नहीं जायेगी। लेकिन जहां तक राज्यसभा का प्रश्न है तो शिवसेना के एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा को उच्च सदन में संख्याबल जुटाना होगा। तीन तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर राज्यसभा में जिस आसानी से सरकार ने बहुमत हासिल किया उसकी वजह से सत्ता पक्ष आत्मविश्वास से भरपूर है किन्तु ये कहना भी गलत नहीं होगा कि सत्ता पक्ष में ही पूर्वोत्तर के अनेक सांसद इस विधेयक से नाराज हैं। दरअसल इस विधेयक का मूल उद्देश्य उन गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के नियम आसान करना है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से निर्वासित होकर भारत आने मजबूर हो जाते हैं। इनमें से अनेक ऐसे हैं जो वर्षों पहले वहां से प्रताडि़त होकर भारत आ गए थे लेकिन नागरिकता नहीं मिलने से अभी भी कानूनी रूप से भारत के नागरिक नहीं बन पाए। इनके भारत आने के पीछे मुख्य वजह वहां धार्मिक आधार पर इनका उत्पीडऩ ही है। जिन तीन देशों से आने वालों के लिए ये सुविधा प्रस्तावित है वहां से न सिर्फ  हिन्दुओं बल्कि जैन, बौद्ध, पारसी, सिख और ईसाई धर्मावलम्बियों को प्रताडि़त किए जाने की खबरें आम हैं। उनके धर्मस्थल या तो नष्ट किये जा रहे हैं या फिर उन्हें अपवित्र करने की हरकतें होती हैं। बहू-बेटियों का अपहरण करते हुए उन्हें मुसलमान बनाने की घटनाएँ भी आम होती जा रही हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं सहित बाकी गैर मुस्लिम धर्म के अनुयायियों की जनसंख्या निरंतर घटती जा रही है। वहीं अफगानिस्तान में तालिबान के उदय के बाद से हिन्दू और सिख अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। नागरिकता संशोधन विधेयक में केवल छह धर्मों से जुड़े लोगों को भारतीय नागरिकता देने के नियमों में लचीलापन लाने की वजह से भाजपा के परम्परागत विरोधी दल उसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा करना धार्मिक आधार पर भेदभाव होगा। उक्त तीन देशों से आने वाले गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता देने के मामले में भारत में उनके रहने की समयावधि घटा दी गई है। वहीं उनके पास कोई वैध दस्तावेज नहीं होने पर भी उन्हें जेल नहीं भेजा जाएगा। ममता बैनर्जी और आरजेडी सहित कांग्रेस और वामपंथी विशेष रूप से इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं लेकिन भाजपा से हाल ही में अलग हुई शिवसेना ने भी धार्मिक आधार पर नागरिकता देने का सैद्धांतिक आधार पर विरोध करने का जो इशारा किया वह महाराष्ट्र की सत्ता मिलने के साथ जुड़ी मजबूरी का नतीजा माना जा रहा है। वैसे ताजा जानकारी के अनुसार शिवसेना खुद को मुस्लिमपरस्त कहलाने से बचने के लिए मतदान के दौरान सदन से बहिर्गमन करने की रणनीति पर चलेगी। लेकिन उसका ऐसा करना चौंकाने वाला होगा। नागरिकता संशोधन विधेयक का ज्यादातर लाभ उक्त तीन देशों से पलायन कर भारत आये हिन्दुओं को ही मिलेगा क्योंकि उनकी संख्या ज्यादा है। चूँकि हिन्दुओं का दुनिया में और कोई देश नहीं है इसलिए उनका भारत आना ही स्वाभाविक है। विशेष रूप से ऐसे लोगों के लिए तो भारत ही आसरा है जिनकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। हिन्दुओं के बाद सबसे ज्यादा ऐसे लोग सिख हैं जो मुख्य रूप से पाकिस्तान और अफगनिस्तान से आये हैं। पूर्वोत्तर राज्यों के हिन्दुओं को ये डर सताने लगा है कि बांग्लादेश से आये हिन्दू इन राज्यों के नागरिक बनकर वहां के मूल वाशिंदों के अधिकारों में बटवारा करेंगे। सवाल और भी हैं। लेकिन इस विधेयक का सकारात्मक पहलू ये भी है कि उसमें केवल हिन्दू, सिख, बौद्ध और जैन ही नहीं बल्कि पारसी और ईसाई भी भारत की नागरिकता आसानी से हासिल करने के पात्र हो जायेंगे। जहां तक बात मुसलमानों को दूर रखने की है तो सरकार का मानना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान चूँकि इस्लामिक देश हैं इसलिए वहां के मुसलमानों को भारतीय नागरिकता देने का कोई औचित्य नहीं है और ऐसा करने से बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों की संख्या को सम्भालना मुश्किल होगा। 1971 के बाद से भारत में घुस आये बांग्लादेशियों की समस्या पहले से ही लाइलाज बनी हुई है। एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) नामक योजना भी विसंगतियों की शिकार होकर रह गई। उस दृष्टि से नागरिकता संशोधन विधेयक काफी उदार होगा क्योंकि इसमें हिन्दुओं के अलावा जैन, सिख और बौद्धों के साथ ही पारसी और ईसाईयों को भी भारतीय नागरिकता देने के नियमों में दी जा रही ढील का लाभ मिलेगा। जो भी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं उनकी चिंता का विषय केवल इतना है कि विधेयक पारित होने के बाद बरसों से भारत में रह रहे हिन्दुओं का नाम मतदाता सूची में शामिल हो जाएगा। दूसरी तरफ  जो मुस्लिम उक्त तीन देशों से बिना वैध दस्तावेजों के भारत आकर रह रहे हैं उन्हें नागरिक नहीं बनाये जाने से वे घुसपैठिये माने जायेंगे मतदाता सूची से तो उनका नाम अलग होगा ही शासन द्वारा दी जाने वाली बाकी सुविधाओं से भी उन्हें वंचित किया जाएगा। कांग्रेस, वामपंथी और तृणमूल कांग्रेस के साथ ही आरजेडी जैसी पार्टियों को मुस्लिम मतदाताओं के हाथ से खिसक जाने का भय सताने लगा है लेकिन इस विधेयक को देश के दूरगामी राष्ट्रीय हितों के परिप्रेक्षय में देखा जाना चाहिए। शिवसेना जैसी पार्टी द्वारा विधेयक के समर्थन की बजाय सदन से गैर हाजिर रहने का संकेत उसके नीतिगत भटकाव का प्रमाण है। अच्छा होगा यदि यह विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो क्योंकि इसमें भाजपा को क्या हासिल होगा ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना ये कि इसके पारित होने से देश को लाभ होगा। दुर्भाग्य से हमारे देश में राष्ट्रहित पर राजनीतिक हित हावी होते रहे हैं। बांग्लादेश से आये करोड़ों घुसपैठियों को देश का नागरिक बनाने वाले नेताओं और पार्टियों को तात्कालिक सियासी फायदा भले मिलता रहा हो लेकिन वे देश के लिए जो समस्या पैदा कर गये उसका दुष्परिणाम किसी से छिपा नहीं है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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