Wednesday 18 December 2019

कमलनाथ: बाधा दौड़ का पहला चरण पूरा



मप्र की कमलनाथ सरकार ने अपना एक वर्ष पूरा कर लिया। यह निश्चित रूप से बड़ी उपलब्धि है क्योंकि गत वर्ष राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बनने के बाद सपा,बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बनी इस सरकार के स्थायित्व पर पहले दिन से ही शंका के बादल मंडराते रहे। भाजपा की तरफ से लगातार ये आभास करवाया जाता रहा कि वह जिस दिन चाहे सत्ता पलट देगी। लेकिन धीरे-धीरे अनिश्चितता के बादल छंटने से  पार्टी नेताओं के बड़बोलेपन में भी कमी आती गई। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सार्वजानिक तौर पर ये कह  दिया कि कमलनाथ सरकार को गिराने की कोई कोशिश नहीं की जा रही। यद्यपि नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव आये दिन मुख्यमंत्री को अपने विधायक गिनते रहने की सलाह देते रहते हैं लेकिन कुछ महीने पहले भाजपा के दो विधायकों द्वारा पाला बदल लिए जाने के बाद से पार्टी आक्रमण भूलकर बचाव की मुद्रा में आ गई। उससे भी बड़ी बात ये रही कि कमलनाथ सरकार ने भाजपा सरकार के समय के अनेक ऐसे, मामलों की जाँच शुरू करवा दी जिनमें भ्रष्टाचार होने की आशंका है। कुछ गिरफ्तारियां भी की गईं जिनसे पूर्व मंत्री और भाजपा के चहेते अधिकारी ही नहीं बल्कि शिवराज सिंह तक दबाव में आ गये। हनीट्रैप नामक खुलासे के बाद तो भाजपा में और भी डर बैठ गया। उसके अनेक नामी-गिरामी नेताओं के उस काण्ड में लिप्त होने की खबरों ने पार्टी की आक्रामकता पर एक तरह से लगाम लगा दी। यही वजह रही कि शुरुवाती महीनों में रोजाना सरकार गिराने की जो धमकियां सुनाई देती थीं वे नेपथ्य में चली गईं। हालांकि कांग्रेस के अपने घर का माहौल भी बहुत अच्छा नहीं रहा। उमंग सिंगार और दिग्विजय सिंह के बीच हुआ विवाद सार्वजनिक होने से सरकार और पार्टी दोनों को शर्मनाक स्थिति से गुजरना पड़ा। विभिन मंत्रियों के बीच भी टकराव देखने मिला। गुना के पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के असंतुष्ट होने को लेकर  तरह-तरह की चर्चाएं चली आ रही हैं। कमलनाथ की जगह नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर भी खींचातानी है। बीच-बीच में श्री सिंधिया के भाजपा के साथ आने की अटकलें भी व्यक्त की गईं किन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं। भाजपा वाले ये शिगूफा भी छोड़ते रहे कि महाराष्ट्र से फुर्सत होते ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह आपरेशन मप्र में जुटेंगे लेकिन महाराष्ट्र में मात खाने के बाद भाजपा अपना घर बचाने में जुट गयी। ये भी सुनने में आता रहा है कि मोदी-शाह मप्र में शिवराज की जगह किसी और की ताजपोशी चाहते हैं किन्तु कोई उपयुक्त और सक्षम नेता नजर नहीं आने की वजह से कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहे। एक चर्चा ये भी है कि प्रधानमंत्री के बेहद निकटस्थ कहे जाने वाले उद्योगपति गौतम अडानी के कमलनाथ से भी उतने ही मधुर संबंध हैं। मप्र की सरकार को बचाए रहने में अडानी की भूमिका भी बताई जा रही है। वास्तविकता जो भी हो लेकिन राजनीतिक दृष्टि से देखें तो कमलनाथ ने न सिर्फ भाजपा को ठंडा कर  दिया बल्कि अपनी पार्टी के भीतर उठ रहे विरोध के स्वरों को भी शांत करने  में वे सफल रहे। रही बात सरकार द्वारा वायदे पूरे करने की तो ये बात सही है कि किसानों के कर्जे माफ करने के वायदे में सरकार सफल नहीं रही जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में उसे लेकर असंतोष बढ़ा है लेकिन प्रशासनिक स्तर पर उनकी सरकार ने जमीन जायजाद के व्यवसाय से जुडी अड़चनों को दूर करने संबंधी जो निर्णय किये उनका काफी स्वागत हुआ। कालोनियों के नियमितीकरण,उद्योग हेतु भूमि के उपयोग के नियमों का सरलीकरण और हाल ही में माफिया के विरुद्ध जंग शुरू करने जैसे फैसलों की आम तौर पर प्रशंसा हो रही है। वहीं पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का  फैसला इस सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ाने वाला रहा। आर्थिक मोर्चे पर भी बेहतर प्रबन्धन की दिशा में अपेक्षित कार्य नहीं हो सका। भले ही मुख्यमंत्री पिछली सरकार पर खजाना खाली कर जाने की तोहमत लगाएं किन्तु कमलनाथ की पृष्ठभूमि और अनुभव देखते हुए ये माना जाता था कि वे आर्थिक दृष्टि से प्रदेश की सेहत सुधार्रेंगे। हालांकि इंदौर में हुए निवेशक सम्मलेन की सफलता को लेकर काफी ढोल पीटे गये किन्तु ऐसे आयोजनों के पिछले नतीजे देखते हुए ज्यादा उम्मीदें लगाना व्यर्थ ही है। जहां तक बात कानून व्यवस्था की है तो इस मोर्चे पर भी प्रदेश सरकार का कामकाज औसत ही रहा। लेकिन शिवराज सरकार की जांच करवाने के बावजूद वे अपने राज में भ्रष्टाचार को रोक नहीं सके। विशेष रूप से स्थानान्तरण उद्योग को लेकर सरकार के दामन पर छींटे पड़ते रहे। इस संबंध में ये चौंकाने वाली बात है कि बीते पूरे साल भर स्थानान्तरण का सिलसिला चलता रहा। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि इसका टिके रहना है। बाकी मामलों में पिछली सरकार और इसमें विशेष अंतर नहीं किया जा सकता। देखने वाली बात ये होगी कि सरकार का स्थायित्व सुनिश्चित  हो जाने के बाद अब मुख्यमंत्री किस तरह काम करते हैं। उनकी अगली अग्नि परीक्षा स्थानीय निकाय चुनावों में होगी। लोकसभा के दंगल में चारों खाने चित्त हो जाने के बाद भी श्री नाथ ने अपनी सरकार को बचाए रखा लेकिन स्थानीय चुनावों में भाजपा से उनका कड़ा  मुकाबला होगा। एक बात और भी उनके लिए परेशानी उत्पन्न कर सकती है और वह है निगम मंडलों तथा प्राधिकरणों में नियुक्ति नहीं होना। आज की राजनीति में नीति और सिद्धांत तो रहे नहीं इसलिए कब क्या हो  जाए कहना कठिन है लेकिन इतना तो कहा  ही जा सकता है कि कमलनाथ ने बाधा दौड़ का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है जिससे उनका आत्मविश्वास निश्चित रूप से बढ़ा होगा। रही बात भाजपा से मिलने वाली संभावित चुनौती की तो ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि पार्टी एक साल पहले  मिली पराजय से उबर नहीं सकी है और बजाय मजबूत होने के उसके भीतर खींचातानी बढ़ी है। शिवराज सिंह और प्रदेश संगठन दोनों में सामंजस्य भी पहले जैसा नहीं रहा। उस आधार पर कहा  जा सकता है कि कमलनाथ सरकार पर अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने का आरोप लगाने वाली भाजपा भी बतौर विपक्ष अपनी भूमिका का निर्वहन सही  तरीके से नहीं कर सकी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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