Friday 27 December 2019

अपने ही बुने जाल में फंस गई कांग्रेस



 पहले राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर ( एनसीआर) फिर नागरिकता संशोधन कानून ( सीएए) और अब राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर पूरे देश में राजनीति  गरमाई हुई है | समूची कवायद को संविधान और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा बताया जा रहा है | बीते दिनों पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के अनेक राज्यों में हिंसक उपद्रव भी हुए | केंद्र सरकार ने साफ़ शब्दों में आश्वासन दिया कि समूची प्रक्रिया के पीछे किसी की नागरिकता छीनने का कोई इरादा नहीं है | लेकिन विरोधी उसे मानने को राजी नहीं हैं | गैर भाजपा शासन वाले अनेक राज्यों के साथ ही भाजपा के सहयोगी नीतीश कुमार ने भी बिहार में नागरिकता संशोधन कानून लागू करने से इंकार कर दिया | संसद में इसका समर्थन करने वाली बीजद की उड़ीसा सरकार ने भी इसे लागू करने में असमर्थता व्यक्त कर दी | हालाँकि इस मामले में पेंच ये भी है कि नागरिकता देना केंद्र सरकार के अधिकार में है न कि राज्य के | बावजूद इसके राजनीतिक दांव पेंच अपनी तरह से चल रहे हैं | एनसीआर और सीएए को लेकर विवाद खत्म हो पाता उसके पहले ही केन्द्रीय मंत्री परिषद ने एनपीआर तैयार करने को मंजूरी देकर मानो बर्र के छत्ते में पत्थर मार दिया | सरकार ने स्पष्ट किया कि इस हेतु किसी तरह का दस्तावेजी प्रमाण नहीं देना पड़ेगा  और सम्बंधित व्यक्ति द्वारा दी गई जानकारी ही पर्याप्त होगी किन्तु सरकार विरोधी खेमा ये प्रचारित करने में जुट गया कि एनपीआर के जरिये एकत्र की गई जानकारी ही बाद में जाकर एनसीआर का आधार बन जायेगी | हालांकि वह इस बात को साफ़ नहीं कर पाया कि यदि ऐसा होता भी है तो इससे आम आदमी को क्या नुकसान होगा ? इस खींचातानी में केंद्र सरकार ने ये खुलासा कर  दिया कि 2011 की जनगणना के पहले 2010 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने ही राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने की कवायद शुरू की थी | इसके अंतर्गत अनेक नागरिकों को बाकायदा परिचय पत्र भी दिए गए जिनमें सर्वप्रथम उस समय की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल थीं | इस रजिस्टर की कल्पना कारगिल युद्ध के बाद की गयी | यूपीए सराकार के दौर में एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में देश के सभी नागरिकों का एक रजिस्टर बनाने की जरूरत बताई | लेकिन काम शुरू हुआ 2010 में | उल्लेखनीय है 2021 में पुनः देश की जनगणना होनी है | उस हेतु केंद्र सरकार ने एनपीआर तैयार करने का निर्णय लिया जो कोई नई बात नहीं है | फिर इसका विरोध क्यों  हो रहा है ये समझ से परे है | सरकार का कहना है कि विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में जनसँख्या रजिस्टर से मदद मिलती है | विपक्ष का ये आरोप भी बेमानी है कि इस हेतु एकत्र की जाने वाली जानकारी ही एनसीआर का आधार बनेगी | देश में रहने वालों के बारे में अधिकृत जानकारी का आखिर कोई रिकार्ड तो होना ही चाहिए | आखिर मतदाता सूची बनाते समय भी तो व्यक्ति को वांछित जानकारी देनी होती है | पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने ये सफाई दी है कि 2010 में जिस एनपीआर की शुरुवात की गयी थी उसमें एनसीआर का कोई जिक्र नहीं था लेकिन जो जानकारी आई उसके अनुसार तो मनमोहन सरकार ने संसद में ही बताया था कि एनआरसी की दिशा में एनपीआर पहला कदम है | जिस तरह की बातें सामने आती जा रही हैं उनसे स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर पूरे देश को भ्रमित और भयभीत कर रही है | देश में जनसँख्या का रजिस्टर बने और फिर नागरिकता का रिकार्ड तैयार किया जाए इसमें किसी को ऐतराज क्यों होना चाहिए ? हर देश अपने नागरिकों की पंजी रखता है | नागरिकों को परिचय पत्र भी दिया जाता है जो बहुउद्देशीय होता है | प्रधानमन्त्री ने हाल ही में ये सवाल उठाया था कि सात दशक तक ये काम क्यों नहीं हो पाया , इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए | राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी ये आवश्यक है कि देश  में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बारे में सरकार के पास विधिवत जानकारी रहे | नागरिकता सम्बन्धी मौजूदा विवाद पर अनेक लोगों का कहना है कि वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को  जन्म देने वाले देश का विदेशियों को नागरिकता देने के मामले में इतना अनुदार हो जाना उसकी प्राचीन संस्कृति के विरुद्ध है | शशि थरूर जैसे नेताओं ने तो राष्ट्रीय शरण नीति बनाने की वकालत तक की है | सारा झगड़ा इस बात का है कि सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक में मुस्लिमों को बाहर रखते हुए पाकिस्तान , बांग्ला देश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार केवल हिन्दू , सिख , बौद्ध , जैन , ईसाई और पारसी शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया | इसे लेकर पूरे देश में मुस्लिम समुदाय को भड़काकर हिंसा फ़ैलाने का तानाबाना बुना गया | सरकार के बारम्बार आश्वस्त करने का भी कोई असर नहीं हुआ | मुसलामानों के मन में सुनियोजित तरीके से ये डर बिठा दिया गया कि उनकी नागरिकता को खतरे में डालने हेतु मोदी सरकार ने एनसीआर , सीएए और एनपीआर जैसे फैसले किये | लेकिन धीरे  - धीरे कांग्रेस अपने बनाये जाला में स्वयं फंसती जा रही है क्योंकि  एनसीआर और एनपीआर को लेकर उसकी सरकार ने ही कदम आगे बढ़ाये थे | हाँ , एक बात जरुर है कि मोदी सरकार ने इस मामले में निर्भीक होकर निर्णय किये | यदि कांग्रेस के रणनीतिकारों ने अक्लमंदी दिखाते हुए एनसीआर और एनपीआर के लिए मोदी सरकार को कठघरे  में खड़ा करने की बजाय ये कहने का साहस दिखाया होता कि ये तो उसके कार्यकाल में उठाये गये कदम थे तब शायद उसके पक्ष में एक सकारात्मक वातावरण बना होता और एक जिम्मेदार विपक्ष होने के लिए उसकी प्रशंसा होती | बहरहाल कांग्रेस गलतियों को सुधारने की बजाय उन्हें दोहराने पर आमादा है | आज जिस नीतिगत भटकाव और गैर जिम्मेदाराना आचरण का वह परिचय दे रही है उसकी वजह से न तो वह मुसलमानों की चहेती रह सकी और न ही हिन्दुओं का मन ही जीत पा रही है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment