Thursday 14 June 2018

वरना अविश्वास घृणा और गुस्से में बदल जावेगा

बीते दो-तीन दिनों से फिर आध्यात्मिक हस्तियों को लेकर चर्चा और विवाद शुरू हो गए हैं। शनि की आराधना से जुड़े दाती महाराज पर दुष्कर्म का आरोप उनकी एक शिष्या ने लगा दिया वहीं मप्र के इंदौर शहर में सुप्रसिद्ध भैय्यू जी महाराज ने पारिवारिक तनाव के चलते अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर ली। खबरिया चैनलों को कुछ दिनों का मसाला मिल गया तो पत्र-पत्रिकाओं को भी पृष्ठ भरने के लिए सनसनीखेज नई-नई जानकारी। उक्त दोनों व्यक्ति लाखों लोगों के आराध्य हैं। दाती महाराज चूंकि शनि ग्रह के प्रकोप से बचने के उपाय बताते हैं इसलिए जन सामान्य के अलावा विभिन्न क्षेत्रों की बड़ी बड़ी हस्तियां उनके आभामंडल से  प्रभावित होती गईं। राजनेता तो वैसे भी ग्रह नक्षत्रों को साधने में जुटे रहते हैं। ऐसा ही करिश्मा भैय्यू जी महाराज का था। बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी भैय्यू जी अपने खूबसूरत चेहरे के बल पर किसी सूटिंग्स की मॉडलिंग भी कर चुके थे। गृहस्थ होने पर भी उनके पास न जाने कौन सा ज्ञान या चमत्कार था कि किसान, नेता, अभिनेता, उद्योगपति सभी उनसे प्रभावित हो जाते थे। भैय्यू जी ने समाज कल्याण के बहुत से प्रकल्प भी चला रखे थे। मप्र के अलावा महाराष्ट्र और गुजरात में उनके अनुयायी बड़ी संख्या में हैं। उनका राजनीतिक सम्पर्क उस समय दिखाई दिया जब 2012 में दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने हेतु उन्होंने काफी प्रयास किये। लेकिन उसके बाद वे सियासत में बहुत ज्यादा लिप्त नहीं हुए। यद्यपि अनेक छोटे बड़े नेता उनके सम्पर्क और प्रभाव में थे।  भैय्यू जी की पहली पत्नी की मौत के बाद उन्होंने दूसरी शादी की जिससे उनके भक्त बहुत ज्यादा खुश नहीं थे। और जैसा अब तक माना जा रहा है , उसी विवाह से उत्पन्न गृहकलह ने उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया। इसके पहले भी महिलाओं से सम्बन्धों को लेकर वे विवाद में घिरे किन्तु बात ज्यादा नहीं बढ़ी। उधर दाती जी  भी दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में अपना रुतबा कायम किये हुए थे। उनके भी कई आश्रम तथा सामाजिक संस्थान हैं। दाती जी का दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में काफी प्रभाव है। टीवी चैनलों  पर शनि की महिमा का बखान करते वे दिख जाते हैं। लंबी चौड़ी संपत्ति के स्वामी हैं। एक भक्त ने कुछ वर्ष पूर्व दुष्कर्म करने जैसा गंभीर आरोप लगाकर दाती जी की मुश्किलें बढ़ा दीं। उसके फौरन बाद वे लुप्त हो गये। कल उनके किसी आश्रम में होने की ख़बर भी आई लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया  गया जिसका कारण तो पुलिस ही बेहतर बता सकती है। चर्चा है कुछ नेता और समाचार जगत की हस्तियां दाती महाराज को शनीचर से बचाने सक्रिय हो उठी हैं। इधर इंदौर में भैय्यू जी की मौत को आत्महत्या मान लिए जाने के बाद उसके कारण पता करने की कवायद शुरु  कर दी गई। मौत से एक दिन पहले का जो घटनाक्रम उनसे जुड़ा रहा उसमें कई बातें सामने आ रही हैं  जिनसे आत्महत्या के कारणों को लेकर संशय की स्थिति बन गई है। इन दो घटनाओं के बाद एक बार पुन: आध्यात्म का कारोबार करने वाले स्वयंभू भगवानों को लेकर बहस चल पड़ी है। इनके पहले भी कई बाबा दुष्कर्म सहित अनेक कारणों से जेल जा चुके हैं। सर्वाधिक लंबे समय से आसाराम बापू भीतर हैं जिन्हें जमानत नहीं मिल पा रही। इन बाबाओं का जादू उनके भक्तों पर इतना जबरदस्त है कि कोई भी उन्हें अपराधी मानने को तैयार नहीं होता। प्रश्न ये है कि आध्यात्म के नाम पर धन - संपत्ति के अलावा अन्य सांसारिक व्यसनों में लिप्त ऐसे लोगों के मोहपाश में साधारणजन तो चलो ठीक भी है लेकिन अत्यंत सुशिक्षित लोग क्यों फंस जाते हैं? इनके आश्रमों में जिस तरह की सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं वे किसी अच्छे होटल या रिसॉर्ट का एहसास कराने के लिए पर्याप्त हैं। महिलाओं को शिष्या से सेविका बनाने की प्रक्रिया भी रहस्यमय है। कम उम्र की बालिकाएं इनके संरक्षण में आकर कैसे रहने लगती हैं ये भी अध्ययन का विषय है। अपने भक्तों को ईमानदारी और सादगी का उपदेश देने वाले इन कलियुगी भगवानों के पास देखते देखते अपार धन कहां से आ जाता है ये बड़ा रहस्य है। इनके साथ नेता, अभिनेता, प्रशासनिक अधिकारी  और यहां तक कि न्यायाधीश तक जुड़े देखे जा सकते हैं। जहां भी ये जाते हैं वहां का शासन-प्रशासन इनकी आवभगत में लग जाता है। भारत में सन्त परंपरा प्राचीन काल से रही है। गृहस्थ रहते हुए भी आध्यात्म के क्षेत्र में उतरकर समाज को सही दिशा देने वाले भी समय-समय पर होते रहे। लेकिन उनके साथ कोई विवाद नहीं जुड़ा जिससे वे जीवनपर्यंत और उसके बाद भी आदर और श्रद्धा का पात्र बने हुए हैं। लेकिन समय के साथ नैतिकता के बंधन कमजोर होते गए और ये स्थिति बन गई जब साधु और शैतान के बीच की विभाजन रेखा दिन ब दिन महीन होती जा रही है। ये बुराई केवल हिन्दू बाबाओं तक सीमित नहीं रही। हाल ही में अनेक मुस्लिम मौलवी दुष्कर्म में पकड़े गए। मदरसों में पढऩे वाली अबोध बालिकाओं के शोषण की वारदातें भी  सामने आईं। कुछ ईसाई पादरी भी अपने दामन पर दाग लगवा बैठे। चर्च से जुड़ी ननों के साथ होने वाले गलत कृत्यों का भी खुलासा हुआ। ये देखने और सुनने के बाद भी धर्म और आध्यात्म के क्षेत्र से जुड़ी वरिष्ठ और सम्मानित हस्तियों सहित समाज के जिम्मेदार इन विसंगतियों के विरुद्ध समय रहते आवाज क्यों नहीं उठाते ये सवाल लंबे समय से अनुत्तरित है। ताजी  घटनाओं के बाद भी अपेक्षित गम्भीरता और साहस दिखाने वाले नजर नहीं आ रहे। दरअसल गलत को गलत न कहने की हिम्मत का खत्म हो जाना ही इस विकृति का प्रमुख कारण है। जिनसे समाज सही रास्ता दिखाए जाने की अपेक्षा रखता है जब वे ही भटकाव का शिकार हों तब क्या कहा जा सकता है ? समय आ गया है जब इन स्वयंभू संतों, महाराजों, मठाधीशों के लिए भी कोई नियामक संस्था बने जो इन्हें अधिमान्यता प्रदान करे। लेकिन यहां भी अहं और अहंकार आड़े आ जाते हैं। जिन महानुभावों ने इसकी जिम्मेदारी है वे पैसे लेकर महामंडलेश्वर और जगद्गुरु की पदवी प्रदान कर देते हैं। एक माँ इसे लेकर बेहद चर्चित भी हुईं। यदि इस आध्यात्मिक अव्यवस्था को अब भी न सुधारा गया तो आध्यात्म और धर्म के प्रति बढ़ता जा रहा अविश्वास, घृणा और गुस्से में बदल जावेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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