Wednesday 13 June 2018

बशर्ते किम और ट्रंप पलटी न मारें

पूरी दुनिया ने राहत की सांस ली। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग और अमेरिका के सनकी से लगने वाले वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सिंगापुर में हुई शांति वार्ता जिस तरह फटाफट सफलता के बिंदु  तक जा पहुंची उसने एक तरफ  जहां उम्मीदें जगाने का काम किया वहीं दूसरी तरफ कुछ शंकाएं भी  खड़ी कर रखी हैं । इस बहुप्रतीक्षित शिखर वार्ता के पहले न सिर्फ  कोरिया प्रायद्वीप और समूचा दक्षिण एशिया बल्कि पूरा विश्व परमाणु युद्ध की आशंका से ग्रसित था । किम जोंग जिस तरह परमाणु और मिसाइल परीक्षण करते जा रहे थे उसकी वजह से पूरी दुनिया तनाव में थी। उसकी एक वजह किम का विश्व बिरादरी से कटे रहना भी था । उनके बारे में जो जानकारी आती रही वह भी भयभीत करने वाली थी । महज 34 साल की उम्र का व्यक्ति इतना निर्दयी और अत्याचारी हो सकता है ये अविश्वसनीय भी लगता था लेकिन किम जोंग ने परमाणु परीक्षण की झड़ी लगाकर तमाम आशंकाओं को सत्यता के ढांचे में ढाल दिया । विश्व युद्ध की सम्भावना भी लगातार प्रबल होने लगी और जबसे डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की बागडोर सम्भाली तबसे तो कई मर्तबा लगा कि विनाश की घड़ी करीब आ गई है । न सिर्फ दक्षिण कोरिया वरन जापान तक किम जोंग के दुस्साहसी स्वभाव की वजह से सहमे हुए थे। सच कहें तो चीन और रूस को छोड़कर बाकी कोई भी प्रमुख देश उत्तर कोरिया का समर्थक नहीं था । संरासंघ ने उस पर प्रतिबंध लगा दिए  किन्तु उससे भी किम जोंग की अकड़ कम न हुई । तनाव के चर्मोत्कर्ष के दौरान ही अमेरिका और उत्तर कोरिया की बीच वार्ता की संभावना उत्पन्न हुई । किम जोंग ने परमाणु परीक्षण बन्द कर दिए । उसके अलावा आण्विक हथियार बनाने वाले केंद्रों को नष्ट करते हुए अंतर्राष्ट्रीय जांच दल को भी उनके निरीक्षण की अनुमति दे दी । यद्यपि अमेरिका से उनकी बदजुबानी जारी रही लेकिन प्रतिबंधों की वजह से अकेले पड़ते जा रहे किम को ये महसूस होने लगा कि इस स्थिति को लम्बे समय तक खींचना उनके लिए कठिन होगा और इसीलिए उन्होंने ट्रंप से बतियाने के लिए सहमति तो दे दी लेकिन आमने-सामने की बात के पहले वे चीन गए और वहां के राष्ट्रपति शिनपिंग से मार्गदर्शन प्राप्त किया जो पूरे समय उत्तर कोरिया के सबसे बड़े संरक्षक बनकर उभरे । उधर अमेरिका भी जिस तरह अपने परंपरागत मित्र दक्षिण कोरिया के साथ आ खड़ा हुआ उससे ये लगने लगा कि किम जोंग की ऐंठ और डोनाल्ड ट्रंप की अकड़ दुनिया को तबाही की तरफ  ले जाएगी। बहरहाल कल जो हुआ उसे अंत भला तो सब भला की तर्ज पर मानते हुए सुखद भविष्य की उम्मीद की जा सकती है । अपने स्वभाव के विपरीत किम और ट्रंप दोनों ने सिंगापुर में जिस तरह की सौजन्यता और समझदारी दिखाई वह अभूतपूर्व थी। कई दशकों की कटुता और शत्रुता को कुछ घण्टों में खत्म कर देने का कदम विश्व शांति के लिए शुभ संकेत है। दक्षिण एशिया के युद्धस्थल में बदलने की आशंका का टलना इस क्षेत्र के लिए खुशहाली का नया दौर लेकर आ सकता है। भारत सदृश देश के लिए भी ये बदलाव नए द्वार खोलने का आधार बन सकेगा। अभी भी उत्तर कोरिया भारत से काफी आयात करता है किंतु संरासंघ द्वारा लगाए प्रतिबंधों के कारण वह सीमित बना हुआ था। दरअसल इस सुलह के पीछे सामरिक से ज्यादा आर्थिक कारण रहे । कच्चे तेल के आयात में उत्तर कोरिया को आ रही परेशानियों से किम जोंग को अपना रवैया नरम करने मज़बूर होना पड़ा । दूसरी तरफ  चीन को भी लगने लगा था कि किम और ट्रंप की अकड़बाजी के चलते उसके हित न प्रभावित हो जाएँ । वरना इतना आगे बढऩे के बाद इस आसानी से पांव पीछे खींचना कुछ अटपटा सा लगा लेकिन राजनय ( डिप्लोमेसी) में बहुत कुछ ऐसा रहता है जिसे उजागर नहीं किया जाता । किम जोंग द्वारा परमाणु हथियारों के साथ ही उन्हें बनाने वाले केंद्रों को नष्ट करने पर रजामंद हो जाना और बदले में अमेरिका द्वारा उत्तर कोरिया को सुरक्षा कवच प्रदान करने का आश्वासन मामूली बात नहीं है। दक्षिण कोरिया के साथ किये जा रहे सैन्य अभ्यास को ख़र्चीला एवं अनावश्यक बताकऱ बंद करने का ऐलान करते हुए ट्रंप ने भी जो तत्परता दिखाई वह नई सुबह के आगमन जैसा है । अमेरिका के सैनिक दक्षिण कोरिया से हटाने का आश्वासन भी अमेरिका ने तुरन्त दे दिया । सब कुछ जिस तेजी और सरलता से हुआ वह चौंकाने वाला रहा क्योंकि किम जोंग और डोनाल्ड ट्रंप दोनों अव्वल दर्जे के झक्की माने जाते हैं। राजनय में जो लचीलापन ऐसे अवसरों पर प्रदर्शित  किया जाना चाहिये वह भी दोनों से अपेक्षित नहीं था। लेकिन कल किम और ट्रंप दोनों बदले-बदले दिखे। ये वही ट्रंप हैं जो एक दिन पहले जी-7 की बैठक छोड़कर चले आये और कैनेडा के प्रधानमंत्री के प्रति बेहद सस्ती भाषा का उपयोग करने में नहीं हिचकिचाए । वहीं वार्ता के पहले किम जोंग इस बात पर अड़ गए कि सिंगापुर में ठहरने के लिए होटल का बिल उत्तर कोरिया नहीं चुकाएगा । आखिर सिंगापुर सरकार ने वह खर्च उठाया। यद्यपि अमेरिका और उत्तर कोरिया के मध्य आधी सदी से ज्यादा खिंचे तनाव और शत्रुता का खात्मा हो गया है लेकिन इसके बाद भी दुनिया चैन की नींद सो सकेगी ऐसा सोचना जल्दबाजी होगी क्योंकि किम जोंग और ट्रंप दोनों बहुत ही शक्की तथा अस्थिर दिमाग वाले हैं । ईरान के प्रवक्ता का ये कहना गलत नहीं है कि ट्रंप अमेरिका लौटने के उपरांत पलट जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा । इसी तरह किम को भी चीन और रूस ने यदि नई पट्टी पढ़ा दी तो वे भी सिंगापुर समझौते को तोडऩे के लिए तमाम आधार तैयार कर लेंगे । द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अनाक्रमण संधि को तोड़ते हुए जब जर्मनी ने रूस पर हमला किया तब रूसी राष्ट्रप्रमुख स्टालिन ने हिटलर को सन्देश भेजकर उस संधि की याद दिलाई । उस पर हिटलर ने जवाब दिया कि समझौते तो किये ही तोडऩे के लिए जाते हैं । अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा के बाद पाकिस्तान की कारगिल में घुसपैठ और पंचशील समझौते के बाद भी 1962 का चीनी हमला इस सम्बंध में बहुत कुछ कह जाता है। बावजूद इसके ये उम्मीद की जा सकती है कि किम-ट्रंप वार्ता का दूरगामी नतीजा एशिया और दुनिया के लिए अच्छा साबित होगा। हॉलांकि इसे दोनों कोरिया के विलय की शुरुवात मान लेना तो अपरिपक्वता होगी किन्तु शांति के नोबेल पुरुस्कार की चाहत में यदि ट्रंप इसी तरह दरियादिली दिखाते रहें और अपने देश को आर्थिक बदहाली से निकालकर दक्षिण कोरिया की तरह एक विकसित देश बनाने के लिए किम जोंग भी बेकार की अकड़ छोड़कर शांति और सहयोग के रास्ते पर चलने की प्रतिबद्धता दिखाएं तो 21 वीं सदी एशिया की होने सम्बन्धी भविष्यवाणी के सत्य होने की संभावना और प्रबल हो जाएगी ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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