ये तो हर कोई कहता है कि कश्मीर समस्या का हल धारा 370 हटाकर ही किया जा सकता है। लेकिन जब तक सभी राजनीतिक दल इस बारे में एकमत नहीं होते तब तक इस बारे में सोचना भी बेकार है ।
इसे लेकर एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में गई जिसमें राष्ट्रपति द्वारा जारी उस अधिसूचना की वैधानिकता को चुनौती दी गई जिसके आधार पर जम्मू - कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था ।
उक्त अधिसूचना एक प्रशासनिक आदेश की तरह बताई गई जिसे वापिस भी लिया जा सकता है लेकिन इसकी चर्चा शुरू होते ही कश्मीर में आग लगाने की धमकियां फारुख अब्दुल्ला जैसे नेता ने दे डालीं । ग़ैर कश्मीरी नेता भी इस बारे में बेहद उदासीन रहते हैं ।
सबको डर है कि कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने से देश का मुस्लिम समुदाय नाराज हो सकता है जबकि यथार्थ ये है कि जम्मू कश्मीर के बाहर के मुस्लिम भी वहां उतने ही अधिकारविहीन हैं जितने अन्य समुदायों के नागरिक।
ऐसे में पता नहीं सभी राजनीतिक दल कश्मीर समस्या की जड़ को उखाड़ फेंकने के लिए एक मत क्यों नहीं होते ?
मान लें धारा 370 को बदलना आसान नहीं है तो पूरा संविधान बदलने की रस्म अदा कर ली जाए क्योंकि संविधान देश के लिए होता है न कि देश संविधान के लिए ।
जब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले उलटने तक के लिए संसद में सभी पार्टियां एकजुट हो जाती हैं तब धारा 370 को खत्म करने को लेकर क्या और क्यों हिचक होती है ?
-रवीन्द्र वाजपेयी
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