Friday 8 June 2018

करीब आओ तो शायद हमें समझ लोगे ....

जिन लोगों को उम्मीद थी कि अंत-अंत तक रायता फैलेगा, उनके हाथ निराशा लगी। गत दिवस नागपुर में रास्वसंघ के मुख्यालय पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के मुख्य आतिथ्य में संघ स्वयंसेवकों के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन हुआ। संघ के आमंत्रण को श्री मुखर्जी द्वारा स्वीकार किये जाने की खबर मिलने के बाद से ही इसे लेकर राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो गई थीं। कांग्रेस के अलावा संघ विरोधी अन्य दलों को भी पूर्व राष्ट्रपति के नागपुर जाने पर एतराज था। कांग्रेस के अनेक नेताओं ने खुलकर उनके निर्णय पर उंगलियां उठाईं किन्तु प्रणब दा चूंकि अब उसके अनुशासन से बाहर हैं इसलिए वह चाहकर भी उन्हें रोक नहीं सकी। हॉलाँकि श्री मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा ने जरूर पिता के नागपुर जाने का विरोध किया लेकिन असहिष्णुता को लेकर आसमान सिर पर उठाने वाली लॉबी भी दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं के बीच प्रत्यक्ष संवाद को नहीं रोक सकी। तमाम अटकलों को दरकिनार रखते हुए प्रणब दा परसों ही नागपुर पहुंच गये थे। संघ के सार्वजनिक आयोजन के पूर्व वे उसके संस्थापक डॉ. हेडगेवार के निवास पर भी गए और वहां की आगंतुक पुस्तिका में उन्हें महान देशभक्त बताकऱ बहुतों के पेट में मरोड़ पैदा कर दी। इतना होने के बाद तो ये कयास लगने लगे कि दादा कोई  बड़ा धमाका कर देंगे लेकिन पूरे आयोजन में पहले संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने बिना झिझके संघ के समूचे दर्शन को अपनी चिरपरिचित सहज शैली में प्रस्तुत किया वहीं उनके बाद श्री मुखर्जी ने भी अत्यंत विस्तार से अपनी बात कही। मेजबान और मेहमान दोनों ने अपने-अपने धर्म का विधिवत पालन करते हुए पूरे देश को ये सन्देश दे दिया कि व्यर्थ के टकराव और छुआछूत की सोच से ऊपर उठकर पारस्परिक  संवाद के माध्यम से एक दूसरे की विचारधारा को समझकर आगे बढऩे से ही देश का भला होगा। रास्वसंघ के आमंत्रण पर नागपुर जाने के निर्णय को जो लोग श्री मुखर्जी का पाला बदल मानकर उनकी आलोचना करने में जुट गए थे वे कल के आयोजन के उपरांत बगलें झांकते फिर रहे हैं क्योंकि प्रणब दा ने एक शब्द भी ऐसा नहीं कहा जिससे लगता कि वे कोई सियासी पैंतरा दिखा रहे हों। वहीं डॉ. भागवत ने भी बिना लागलपेट के वह सब कह डाला जो संघ प्रमुख के तौर पर वे सदैव कहते रहते हैं। कहने का आशय ये है कि कल नागपुर से ये सन्देश निकलकर आया कि टकराव की बजाय सामंजस्य और संवाद से दूरियां कम की जा सकती हैं। एक दूसरे पर दूर से निरर्थक शब्दबाण चलाते रहने की जगह यदि नजदीक आकर अपनी-अपनी बात शालीनता से रखी जाए तो न सिर्फ  कटुता खत्म होगी वरन एक दूसरे को समझने में भी मदद मिलेगी। डॉ. हेडगेवार को महान देशभक्त बताकर श्री मुखर्जी ने बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह दिया। नागपुर आने से वे रास्वसंघ की विचारधारा से किस हद तक प्रभावित हुए ये उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना ये कि उन्होंने उस संगठन के मंच पर जाने का साहस दिखाया जिसका वे पूरे राजनीतिक जीवन भर विरोध करते रहे। इसी तरह संघ ने भी उन्हें सम्मान देकर ये साबित कर दिया कि वह अपने विरोधी को शत्रु नहीं समझता। प्रणब दा के पहले भी महात्मा गांधी सहित तमाम दिग्गज संघ के आयोजनों में आ चुके थे। उनमें से किसी ने भी बाद में उसकी आलोचना नहीं की। गत दिवस पूर्व राष्ट्रपति ने भी पूरा कार्यक्रम देखा जिसमें संघ के स्वयंसेवकों के शारीरिक कार्यक्रम, गीत वगैरह थे। ध्वजारोहण और प्रार्थना के समय वे भी खड़े रहे। उनके पूरे नागपुर प्रवास में एक भी अवसर ऐसा सामने नहीं आया जब ये लगता कि कहीं कोई कड़वाहट है। डॉ. हेडगेवार के निवास पर गली के भीतर पैदल जाना और जूते उतारकर घर में प्रवेश करने जैसी बातें ये बताने के लिए काफी है कि प्रणब दा के व्यक्तित्व में गहराई है। वहीं संघ ने भी उन्हें कहीं से भी विवाद में न फंसाकर सनसनीखेज खबर की अपेक्षा करने वालों को निराश कर दिया। कुल मिलाकर उक्त आयोजन उन लोगों के लिये एक सबक बन गया जो सार्वजनिक जीवन में सैद्धांतिक और वैचारिक मतभिन्नता को शत्रुता का रूप देकर संपर्क और संवाद की गुंजाइश ही खत्म कर देते हैं। संघ के संस्थापक को महान देशभक्त कहकर जहां श्री मुखर्जी ने केवल आलोचना के लिये आलोचना करने वालों को सन्देश दे दिया, वहीं डॉ. भागवत ने भी खुले तौर पर ये कह दिया कि भारत में रहने वाले हर व्यक्ति को संघ भारत माँ की संतान मानता है। दोनों महानुभावों के उद्गारों में कहीं से भी एक दूसरे को नीचा दिखाने  और अपनी विचाधारा थोपने की कोशिश नजर नहीं आई। इसके विपरीत संघ प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति दोनों ने भारत की सांस्कृतिक विविधता के बावजूद उसकी एकता का गुणगान किया। अक्सर ऐसे अवसरों के बाद उसके राजनीति पर पडऩे वाले प्रभाव का विश्लेषण शुरू हो जाता है। लेकिन संघ के मंच पर कांग्रेसी विचारधारा से आजीवन जुड़े रहे प्रणब दा की साक्षात उपस्थिति के बाद देश भर के विघ्नसंतोषी सनाके में हैं तो उसका कारण दोनों तरफ  से प्रदर्शित परिपक्वता ही रही। आज देश का जो माहौल है उसमें राजनीति जहर फैलाने का जरिया तथा सिद्धांत और विचारधारा दिखावटी बातें बनकर रह गई हैं। सभी का लक्ष्य किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया है। सौजन्यता अपने निम्नतम स्तर पर आ गई है। एक दूसरे का अपमान करने की प्रतिस्पर्धा राजनीति की पहचान बन चुकी है। ऐसे में  संघ और प्रणब दा द्वारा बुद्धिमत्ता और सद्भावना का जो प्रदर्शन किया गया उसकी राष्ट्रीय स्तर पर महती आवश्यकता है। किसी शायर की ये पंक्तियां गत दिवस पूरी तरह प्रासंगिक और सार्थक हो गईं :-
करीब आओ तो शायद हमें समझ लोगे, ये दूरियां तो गलतफहमियां बढ़ाती हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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