Tuesday 19 June 2018

कश्मीर : चौके से शुरूवात अच्छा संकेत

हॉलांकि ये कोई खेल का मुकाबला नहीं है जिसमें स्कोर महत्व रखता हो लेकिन कश्मीर घाटी में इकतरफा युद्धविराम समाप्त होते ही सुरक्षा बलों ने 4 आतंकवादियों को मारकर जो शुरुवात की उससे पूरे देश का मनोबल बढ़ा है। इसके अलावा पत्थरबाजी करने वाला एक युवक भी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारा गया। थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का औरंगजेब नामक उस सैनिक के घर जाने से भी एक अच्छा सन्देश गया। सेना का कहना है कि अमरनाथ यात्रा के पहले वह घाटी के भीतर सक्रिय आतंकवादियों और उन्हें प्रश्रय देने वाले अलगाववादियों की कमर तोडऩे की रणनीति पर चलेगी जिससे यात्रा में आने वाले यात्रियों पर हमले की कोई घटना न हो सके। इसमें दो मत नहीं है कि रमजान के पूरे महीने में सैन्य बलों को युद्ध विराम के लिए मजबूर कर देने का कोई अच्छा नतीजा नहीं निकला। आम कश्मीरी की मानसिकता में इससे कोई सुधार या बदलाव  आया हो ये भी नहीं जा सकता। प्रतिवर्ष केन्द्र सरकार रमजान के दौरान युद्धविराम जैसी सौजन्यता दिखाती आई है लेकिन अलगाववादियों पर इसका राई-रत्ती असर पड़ा हो ये कोई नहीं बता सकता। इस वर्ष तो युद्धविराम के दौरान पूरे एक माह तक पथराव और आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई। जिस वजह से केंद्र सरकार पर पूरे देश में उंगलियाँ उठीं। यहां तक कि भाजपाई तक अपनी सरकार के उक्त फैसले पर खुश नहीं दिखे।  बहरहाल कल से सुरक्षा बलों को केंद्र सरकार ने फिर से खुला हाथ दे दिया और उन्होंने भी पहले दिन ही चौका मारकर अपने इरादे दिखा दिए। एक पत्थरबाज को भी दुनिया से रवाना कर दिया गया। इसमें कोई दो मत नहीं है कि बीते एक माह में यदि सुरक्षा बलों को न रोका जाता तो ऑपरेशन ऑल आउट काफी आगे बढ़ गया होता। लेकिन युद्धविराम खत्म होते ही चार आतंकवादियों को ठिकाने लगाने से स्पष्ट हो गया कि सैन्य बलों ने युद्धविराम के दौरान भी अपनी तैयारियां जारी रखीं और मौका मिलते ही उसे प्रमाणित भी कर दिया। वैसे आने वाले कुछ महीने सुरक्षा बलों के लिए कठिन परीक्षा साबित होंगे। एक तो अमरनाथ यात्रा का अतिरिक्त दबाव और दूसरा बरसात का मौसम। इस दौरान घाटी के चप्पे-चप्पे पे नजऱ रखते हुए देश विरोधी तत्वों के हौसले पस्त करना आसान नहीं है लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि सुरक्षा बलों के काम में जबरन हस्तक्षेप न किया जाए तो वे अपने दायित्व निर्वहन के प्रति पूरी तरह निडर रहेंगे। इसके लिए जरूरी है विभिन्न राजनीतिक दल अपने क्षणिक लाभ के लिए सुरक्षा बलों की टांग खिचौवल से परहेज तो करें ही साथ ही साथ उन तत्वों का मनोबल भी गिराएं जो देश में रहकर भी दुश्मन के हितों का संवर्धन करते हैं। कश्मीर की समस्या साधारण कानून व्यवस्था की नहीं है। ये दरअसल ज़हर की वह फसल है जिसकी जड़ें काफी गहराई तक फैल चुकी हैं। शुरू-शुरू में इसके खतरे को नजरअंदाज किया जाता रहा जिससे बीमारी लाइलाज होती चली गई। विभिन्न केंद्र सरकारों ने कश्मीरी जनता के प्रति मानवीय दृष्टिकोण दिखाते हुए उनका मन जीतने का भरसक प्रयास किया लेकिन उसका सतही असर ही देखने मिला। उसके कारणों का विश्लेषण और अब तक उठाये गए कदमों की समीक्षा का तो ये सही वक्त नहीं है क्योंकि उससे सिवाय विवाद के और कुछ हासिल नहीं होगा। इसलिए बेहतर यही है कि सीधी उँगली से काम नहीं बनने पर उसे टेढ़ा किया जाए और ये काम राजनीतिक शक्तियां नहीं कर सकतीं। उनकी नजर में हमेशा वोटों का गुण भाग ही चला करता है। कोई  माने या न माने लेकिन कड़वा सच यही है कि कश्मीर घाटी के अंदरूनी हालात जिस स्थिति में आ गए हैं उनमें संवाद और सौजन्यता जैसे उपाय निरर्थक हैं। सैन्य बल ही समस्या की जड़ों तक पहुंचकर उन्हें खोद सकते हैं बशर्ते उन्हें समुचित अधिकार और परिस्थिति अनुसार तात्कालिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जावे। ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि समूची कार्रवाई का सियासी लाभ लेने जैसी हरकत किसी की भी तरफ से न हो। जो अलगाववादी नेता नजरबन्द हैं उनसे मिलकर उनका महत्व बढ़ाने से भी राजनीतिक नेताओं को खुद को रोकना होगा। पिछली बार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के कई नेता हुर्रियत नेताओं से मुलाकात करने गए लेकिन उन लोगों ने इन्हें चाय पानी तक के लिए पूछना तो दूर मिलने तक का अवसर नहीं दिया और सभी नेता एक तरह से बेइज्जत होकर लौटे। ये देखते हुए अब हुर्रियत सहित अन्य अलगाववादी संगठनों और उनके नेताओं की धेले भर भी परवाह किये बिना सेना को ऑपरेशन ऑल आउट को अंजाम तक ले जाने की छूट दे देनी चाहिए। कश्मीर घाटी के भीतर जो माहौल है उसमें शांति के लिए भी शक्ति की जरूरत है। सुरक्षा बलों की कार्रवाई में यदि अनावश्यक हस्तक्षेप न किया जाए तो आने वाले कुछ महीनों में अच्छे संकेत मिल सकते हैं। पाकिस्तान को भी इसके जरिये कड़ा संदेश दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने परसों जो फैसला किया उस पर हर हाल में कायम रहना जरूरी है क्योंकि कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार ही नहीं प्रधानमन्त्री और भाजपा की साख पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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