Thursday 21 June 2018

कान घुमाकर पकडऩे की चालाकी से बचे सरकार


बड़े दिन बाद एक राहत भरी खबर सुनने मिली। यद्यपि उसे पूरी तरह सही मान लेना जल्दबाजी होगी लेकिन ये सोचा जा सकता है कि चौतरफा आलोचना और आगामी चुनावों को देखते हुए केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल को भी जीएसटी के अंतर्गत लाने के लिए मजबूर हो रही है। दो दिन पहले ही अरुण जेटली ने इनके दाम घटाने से दो टूक इंकार करते हुए उल्टे जनता को ईमानदारी से कर चुकाने की नसीहत दे डाली। उसको लेकर सोशल मीडिया पर श्री जेटली का खूब मज़ाक भी उड़ा। यही वजह है कि आज जब तदाशय का समाचार आया तब लोगों को सुखद आश्चर्य लगा। पेट्रोल-डीजल पर केन्द्र सरकार जहां एक्साइज ड्यूटी लगाती है वहीं राज्य भी उस पर मनमाना वैट लगाकर जबरदस्त मुनाफाखोरी करते हैं। जब सरकार ने जीएसटी लागू किया तब लगा कि पेट्रोल-डीजल को भी उसके अंतर्गत लाया जाएगा किन्तु शराब की तरह उसे भी इस नई कर प्रणाली से बाहर रखकर केंद्र और राज्य दोनों को उस पर कर थोपने की छूट दे दी गई। विगत एक माह में पेट्रोल-डीजल के दामों में हुई असाधारण वृद्धि के कारण देश भर में मोदी सरकार के प्रति जबरदस्त गुस्सा व्याप्त है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के भीतर भी पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने की मांग तेजी से जोर पकड़ती जा रही थी। ऐसा लगता है जम्मू कश्मीर की सरकार से पिंड छुड़ाने के बाद अब भाजपा पूरी तरह से चुनावी पैंतरे में आ रही है। उसे पता है कि प्रधानमंत्री की छवि के बावजूद जनता पेट्रोल-डीजल की बड़ी कीमतों को बरदाश्त नहीं करेगी। शायद इसीलिये इन दोनों को भी जीएसटी में लाने का दांव चलकर जनता को अच्छे दिनों का एहसास करवाने का प्रयास किया जा सकता है। ये निर्णय कब से लागू होगा  ये कह पाना कठिन है क्योंकि इसके लिए जीएसटी काउंसिल की बैठक में फैसला करना पड़ेगा लेकिन एक पेंच अभी भी फंसाकर रखा गया है और वह है राज्यों को वैट लगाने का अधिकार। जिस वस्तु पर जीएसटी लागू होता है उस पर अन्य टैक्स नहीं लगाने का नियम बना था लेकिन पेट्रोल-डीजल पर जो प्रस्ताव सामने आया है उसके अनुसार तो केंद्र उस पर जीएसटी लगाएगा वहीं राज्यों को वैट लगाने का अधिकार दिया जाएगा। ये फार्मूला सम्भवत: इसलिए ईजाद किया जा रहा है जिससे राज्य अपने राजस्व क़ा रोना रोते हुए पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी का विरोध न करें। लेकिन देखने वाली बात ये होगी कि यदि केंद्र ने 28 फीसदी की अधिकतम दर लगाई और राज्यों ने भी मनमर्जी का वैट थोप दिया तब आसमान से टपके और खजूर पर अटके जैसी बात होकर रह जायेगी क्योंकि आम धारणा ये है कि जीएसटी लगने के बाद डीजल और पेट्रोल 45 से 50 रु.के करीब आ जाएंगे लेकिन जो जानकारी आज आई उसके अनुसार तो नई व्यवस्था में अधिकतम 10 से 12 रु.प्रति लीटर की राहत ही मिलेगी। वैसे न मामा से काना मामा भला वाली कहावत के मुताबिक तो कीमतें जितनी कम हों उतना अच्छा क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों मोटी कमाई का स्थायी जरिया हाथ से नहीं जाने देंगे। बहरहाल केंद्र यदि वाकई जनता की तकलीफों के प्रति फिक्रमंद है तो जीएसटी की दरें 15 फीसदी रखी जाएं जिससे उनके दामों में अपेक्षित कमी की जा सके। केंद्र सरकार और तेल कंपनियां चाहे जो कहें कुछ भी करें लेकिन वे पहले ही भरपूर मुनाफा बटोर चुकी हैं। मोदी सरकार इसे लेकर काफी बदनाम हो चुकी है। इसलिए ये जरूरी है कि नई व्यवस्था कुछ इस तरह की बनाई जाए जिसमें जनता को सरकार की नीयत में ईमानदारी का एहसास हो सके। राज्यों की सरकारों को भी चाहिए कि वे वैट की दरों को बजाय कीमतों के, प्रति लीटर के मुताबिक तय कर दें। ऐसा ही केंद्र को जीएसटी के संबंध में करना चाहिए जिससे जनता की गर्दन पर छुरी चलाने का असीमित अधिकार सरकार के पास न रहे। मोदी सरकार की बड़ी विफलताओं में एक पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी मानी जाती हैं क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जो कीमतें तय की जाती हैं उनके मुकाबले भारत में उक्त वस्तुओं के दाम आनुपातिक तौर पर काफी ज्यादा हैं। अब जब चुनाव सिर पर हैं और केंद्र सहित अनेक भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को जनता के पास दोबारा जनादेश मांगने जाना है तब उसके लिये ये जरूरी और मज़बूरी दोनों हो गई हैं कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बड़ी गिरावट की जाए लेकिन जीएसटी के साथ ही वैट रुपी पंगा फंसाकर कान को दूसरी तरफ  से पकडऩे की जुगत की जा रही है। सरकार का राजस्व एकदम से गिर जाए ये भी ठीक नहीं होगा क्योंकि इसकी भरपाई वह किसी अन्य स्रोत से करेगी जिसका भार अंतत: तो जनता के कंधों पर ही आवेगा। ये सब देखते हुए केंद्र और विभिन्न राज्यों को ये देखना चाहिए कि पहले से ही निचुड़ चुके आम उपभोक्ता को दी जाने वाली राहत महज औपचारिकता और आंकड़ों का खेल बनकर न रह जाए। सरकार में बैठे अरुण जेटली जैसे लोग हो सकता है बहुत ज्यादा अक्ल रखते हों लेकिन उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि आज में युग में जनता भी पूर्वापेक्षा बहुत समझदार हो चुकी है और अपना गुस्सा बिना बोले मतदान के दिन व्यक्त कर देती है। हालिया उपचुनावों के नतीजे इसका प्रमाण हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment