Monday 4 June 2018

ट्रेनों की लेटलतीफी : वहां क्षतिपूर्ति यहां खेद

रेल मंत्री पीयूष गोयल केंद्र सरकार के उन कुछ मंत्रियों में से हैं जिन्हें कार्यकुशल माना जाता है। गत दिवस उन्होंने ऐसी बात कही जिसको लागू करना यूँ तो काफी कठिन है लेकिन यदि दृढ़ संकल्प और ईमानदारी के साथ प्रयास किये जाएं तो असम्भव भी नहीं। रेलवे के जोनल स्तर के अधिकारियों की बैठक में श्री गोयल ने हिदायत देते हुए कहा कि एक माह के भीतर रेल गाडिय़ों के विलम्ब से चलने की स्थिति सुधार लें वरना उनकी पदोन्नति पर प्रभावित होगी। रेल मंत्री जब ऊर्जा विभाग का कार्य देखते थे तब ऐसे ही तेवर वे बिजली से जुड़े अधिकारियों को दिखाया करते थे। उसका असर भी हुआ किन्तु जहां तक रेल गाडिय़ों की लेटलतीफी का सवाल है तो उसे दुरुस्त करना अन्य बातों पर भी निर्भर है क्योंकि एक जोन से चली गाड़ी अपने गंतव्य पर पहुंचने तक कई जोनों से गुजरती है। तकनीकी कारणों से हुए विलंब के अलावा भी अधिकांश कारण ऐसे होते हैं जो मानवीय लापरवाही का परिणाम कहे जा सकते हैं। दूसरे ज़ोन की गाड़ी को पराया समझकर उसके साथ सौतेला व्यवहार भी एक कारण है रेल गाडिय़ों के देर से चलने का। इस समस्या के पीछे रेलगाडिय़ों की बढ़ती संख्या के अनुरूप पटरियां न बिछाया जाना जहां वजह है वहीं प्लेटफॉर्मों की कमी के वजह से भी ट्रेन को आउटर पर रोके रखने की मजबूरी सामने आती है। सही बात ये है कि  रेलवे को वोट बैंक की जरूरतों के मुताबिक चलाने के कारण गाडिय़ों की संख्या में तो साल दर साल खासी वृद्धि होती गई किन्तु उस अनुपात में अन्य जरूरतों को पूरा करने पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया। आज भी बड़े शहरों में गाडिय़ों की संख्या के लिहाज से प्लेटफार्म नहीं बनाए जा सके जिसकी वजह से गाड़ी को कभी आउटर तो कभी उसके पहले  किसी भी जगह रोककर रखा जाता है। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि रेलगाडिय़ों के देर से चलने के लिए केवल वरिष्ठ अधिकारी दोषी नहीं ठहराए जा सकते क्योंकि रेलवे वर्तमान में आर्थिक और मानव संसाधनों के मामले में बेहद खराब स्थिति में है। बीते चार वर्षों में पहले सुरेश प्रभु और अब पियूष गोयल ने रेलवे की सेहत सुधारने के लिए काफी काम किये जिनके सुपरिणाम भी दिखने लगे हैं लेकिन गाडिय़ों के असाधारण विलम्ब से चलने की वजह से सारा किया धरा पानी में बह जाता है। श्री गोयल ने पदोन्नति प्रभावित होने जैसी जो बात कही वह कितनी असरकारक होगी ये एकदम से कह पाना मुश्किल है लेकिन देश के सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रम के तौर पर प्रतिष्ठित रेलवे में गाडिय़ों का विलम्ब से चलना उसकी सक्षम नौकरशाही के लिए भी शर्मनाक है। उल्लेखनीय है भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईईएस) में चयनित देश के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियर रेलवे में सेवाएं देते हैं। बावजूद उसके यदि गाडिय़ों को समय पर नहीं चलाया जा पा रहा तो ये उनकी योग्यता और क्षमता दोनों पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त है। पिछले कुछ दिनों में रेलगाडिय़ों की लेटलतीफी ने जिस तरह रिकार्ड तोड़े उससे तो पूछा जाने लगा कि रेलवे का कोई माई-बाप है भी या नहीं? ग्रीष्म काल में चलने वाली स्पेशल ट्रेनों के अलावा प्रीमियम टिकिट वाली गाडिय़ों के भी देर से चलने का क्रम अनवरत जारी है। सबसे बड़ी बात ये है कि सामान्य स्थितियों में भी यात्री गाडिय़ों के असामान्य विलम्ब से चलने का कोई संतोषजनक कारण रेलवे नहीं बता पाता। स्टेशन पर यात्रियों को हुई असुविधा के लिए हमें खेद है जैसी कानफोड़ू उद्घोषणा तो निरन्तर चला करती है लेकिन उसकी पुनरावृत्ति रोकने के प्रति कोई आश्वासन नहीं दिया जाता। उस लिहाज से पियूष गोयल ने जिस कड़क भाषा में वरिष्ठ अधिकारियों को हिदायत दी वह कारगर तभी हो सकेगी जब रेलवे की कार्यप्रणाली में आमूल सुधार की कोशिशें की जाएं क्योंकि निचले स्तर पर कार्य संस्कृति में आई गिरावट के कारण केवल निर्देशों से स्थितियों में सुधार नहीं हो सकता। रेलवे को सरकारी ढर्रे से निकालकर पेशेवर स्वरूप देने के लिए बड़े पैमाने पर निजीकरण भी किया जा रहा है किंतु उसके भी अपेक्षित परिणाम नहीं दिखाई दे रहे। साफ -सफाई और सुरक्षा व्यवस्था भी चिन्ताजनक स्थिति में है लेकिन रेलगाडिय़ों का बेहिसाब देर से चलना सबसे बड़ी समस्या बन गई है। अभी हाल ही में किसी विकसित देश में रेलगाड़ी के चंद मिनिट पहले जल्दी छूट जाने पर यात्रियों को रेलवे ने क्षतिपूर्ति दी किन्तु हमारे देश में 12 घण्टे विलम्ब के लिए भी सिर्फ खेद व्यक्त किया जाता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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