Friday 15 June 2018

ईद के बाद ऑपरेशन ऑल आउट अपना नाम सार्थक करे

हर घटना के पीछे एक मनोविज्ञान होता है। कश्मीर घाटी में चल रही अलगाववादी गतिविधियों के साथ भी ये तत्व जुड़ा हुआ है। घाटी के भीतर आतंक का जो माहौल है वह लादा गया है वरना आम कश्मीरी को आज़ादी और जनमत संग्रह जैसे मुद्दे समझ में नहीं आते। लेकिन जिस तरह बहुत से युवक मज़बूरी में अपराधी बन जाते हैं ठीक उसी तरह कश्मीर में भी हो रहा है। बेरोजगारी की वजह से थोड़े से पैसे और ऊपर से धार्मिक भावनाएं भड़काकर किशोरावस्था के लड़के और यहां तक कि लड़कियों तक को पत्थरबाजी के लिए प्रेरित किया जाता है। ये कहने में भी गलती नहीं है कि घाटी का सामान्यजन इस स्थिति से त्रस्त हो चुका है लेकिन चाहकर भी वह अलगाववादियों के खिलाफ  मुंह नहीं खोल सकता। उसकी हालत दांतों के बीच जीभ समान होकर रह गई है। यही हालात 90 के दशक में पंजाब के हो गए थे जब खालिस्तान के नाम पर आम सिख को भड़काकर देश विरोधी तबके का साथ देने मजबूर किया गया। उनके खेतों और घरों में खलिस्तानी जबरन छिप जाया करते थे। उस समय भी पंजाब के साधारण लोग सुरक्षा बल और खालिस्तानियों के बीच पिसने को मज़बूर हो गए थे। अंतत: भारी कीमतें चुकाकर पंजाब में शान्ति लौटी लेकिन उसके पीछे एक बड़ा कारण खालिस्तानियों द्वारा किया जाने वाला अत्याचार भी रहा। मसलन लोगों से जबरन धन ऐंठना, उनके घर या अन्य ठिकानों का छिपने या हथियार रखने के लिए जबरदस्ती उपयोग करना और उससे भी बढ़कर बहू-बेटियों पर गलत निगाह डालना। जब इन सबकी अति हो गई तब जाकर पंजाब के सिख समुदाय ने भी हिम्मत दिखानी शुरू की और बड़ी मुश्किल से उस सूबे में शांति की बहाली हुई। कश्मीर यद्यपि कई मामलों में पंजाब से अलग है लेकिन मौजूदा हालातों में वहां भी खालिस्तानी आतंक वाला माहौल बना हुआ है। रमज़ान में सुरक्षा बलों की ओर से किये गए युद्धविराम के बाद भी घाटी में आतंकवादी अपनी हरकतें जारी रखे हुए हैं। सुरक्षा बलों के वाहनों को घेरकर पत्थर बरसाना और उनके शिविरों पर हमला करना जारी रहा। पहले आतंकवादी केवल केंद्रीय सुरक्षा बलों को ही निशाना बनाते थे लेकिन अब तो वे स्थानीय पुलिस को भी नहीं बख्शते। हाल ही में उन्होंने दो पुलिस सिपाहियों को मार दिया था। गत दिवस ईद मनाने छुट्टी लेकर घर लौटे एक कश्मीरी मुस्लिम फौजी जवान को अगवा कर उसकी हत्या करने के साथ ही एक वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी को उस समय गोलियों से भून डाला गया जब वे शाम को दफ्तर से निकलकर रोज़ा इफ्तार के लिए जा रहे थे। ये घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि आतंकवादी अब आपा खोने लगे हैं। इसके पहले भी वे छुट्टियों में घर लौटे कुछ नौजवान फौजियों को बेरहमी से मार चुके थे। इस तरह की घटनाओं से आम कश्मीरी के मन में अलगाववादी नेताओं और हिंसा पर उतारू आतंकवादियों के विरुद्ध गुस्सा तो है लेकिन समुचित सुरक्षा के अभाव में वे उसकी मुखालफत करने का खतरा नहीं लेना चाहते। अतीत में कुछ प्रमुख आतंकवादियों को घेरने में सुरक्षा बल इसलिए कामयाब हो सके थे क्योंकि जबरन शारीरिक शोषण के लिये मजबूर की गईं युवतियों ने उनके ठिकाने की जानकारी सुरक्षा बलों को दी। हालांकि ऐसी बातें इक्का-दुक्का ही हुईं लेकिन छन-छनकर आ रही जानकारी के अनुसार घाटी के भीतर रह रहे लोगों को अलगाववादियों से चिढ़ होने लगी है। ये बात भी सही है कि जब तक फौजी जवान मरते रहे तब तक तो ये उम्मीद रही कि घाटी को भारत से अलग करने का सपना साकार हो जायेगा लेकिन ज्योंही आतंकवादियों ने घाटी में आम नागरिक, कश्मीरी पुलिस और फौजी जवानों की जान लेना शुरू किया त्योंही उनका मोहभंग होने की स्थिति बनने लगी। गत दिवस ईद मनाने लौटे फौजी जवान का अपहरण करने के बाद हत्या और रोजा इफ्तार हेतु जा रहे भारत-पाकिस्तान के बीच सुलह की कोशिश करने वाले पत्रकार शुजात बुखारी को उनके अंगरक्षक सहित मौत के घाट उतारने की घटना से स्पष्ट हो गया कि अलगाववादी उस नागिन जैसे हो गए हैं जो अपने अंडे स्वयं खा लेती है। ईद के ठीक पहले हुई इन दो हत्याओं से ये संकेत मिलता है कि आतंकवादी बदहवासी की स्थिति में आते जा रहे हैं। फौजी जवानों को वे अपना शत्रु समझें वहां तक तो समझ में आता है लेकिन कश्मीरी मुस्लिम कौम के बेकसूर लोगों को गोलियों से भूने जाने के बाद ये उम्मीद जागी है कि घाटी के भीतर अलगाववाद की जड़ें कमजोर होने की शुरूवात हो चली है। जिस तरह शुजात बुखारी की मृत्यु पर देशव्यापी गुस्सा दिखाई दिया वह इस बात का इशारा करता है कि कश्मीर को लेकर अन्य राज्यों में कितनी उत्सुकता और संवेदनशीलता है। केंद्र सरकार ने भी कल ही इशारा कर दिया कि ईद के तुरंत बाद सुरक्षा बलों की कार्रवाई पुन: शुरू कर दी जाएगी। रमजान के दौरान सुरक्षा बलों ने तो युद्ध विराम का ईमानदारी से पालन किया लेकिन जवाब विपरीत ही मिला। सीमा पार से भी पाकिस्तानी हमले लगातार होते रहे। इस दौरान गृहमन्त्री राजनाथ सिंह ने भी घाटी का दौरा किया और स्थिति की समीक्षा की। हाल ही में घाटी में कुछ जगहों पर खेल और उस जैसे आयोजनों में जिस तरह का उत्साह युवाओं में दिखाई दिया वह अच्छा संकेत माना जा रहा है लेकिन पुराने अनुभव इतने कड़वे हैं कि शक्कर मुंह में रखने के बाद भी उसकी मिठास पर भरोसा नहीं होता। ईद के बाद ऑपरेशन ऑल आउट शुरू करना जरूरी भी है और मज़बूरी भी क्योंकि जैसी ख़बरें आ रही हैं उनके अनुसार तो कश्मीरी अवाम मन ही मन सामान्य हालात की वापसी चाहता है। अलगाववाद अपना आकर्षण खोता जा रहा है क्योंकि अब आतंकवादी कश्मीरियों की जान लेने के साथ उनकी बहू-बेटियों की अस्मत भी लूटने लगे हैं। केंद्र सरकार को चाहिए वह ईद के तुरंत बाद सुरक्षा बलों को पूरी तरह से छूट प्रदान करे। यद्यपि राज्य की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती इसके लिए रजामंदी नहीं देंगी तथा नरम रवैये की वकालत करने से बाज नहीं आएंगी लेकिन यही वक्त है जब अलगाववादियों की कमर तोडऩा आसान है। ऑपरेशन ऑल आउट के शुरुवाती नतीजे बेहद सन्तोषजनक रहे थे। यदि रमजान नहीं आता तो सुरक्षा बलों को और भी सफलता मिल जाती। हालाँकि जवाबी कार्रवाई के चलते पत्थरबाजी में कुछ कमी आई है किंतु सीमा पार से आ रही मदद की वजह से रह-रहकर खूनखराबा होता रहा। अलगाववाद और आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई में पूरे देश का समर्थन सरकार और सुरक्षा बलों के साथ है। उम्मीद की जा सकती है कि ईद के बाद ऑपरेशन ऑल आउट अपने नाम को सार्थक करेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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