विकास दर को लेकर लगाए जा रहे आशावादी अनुमानों के बीच ये खबर चिन्ताजनक है कि इस वर्ष बैंकिंग सेक्टर की हालत और खराब होगी तथा एनपीए बढ़ जावेगा। बैंकों के उच्च प्रबन्धन में बैठे अधिकारियों के व्यक्तिगत रूप से लिप्त हो जाने के प्रमाण सामने आने से अब ये स्पष्ट हो गया है कि जिनको देश की जमापूंजी की सुरक्षा का दायित्व दिया गया था वे ही बेईमान साबित हुए। चंदा कोचर बैंकिंग सेक्टर का बड़ा सम्मानित नाम था लेकिन अपने पति को लाभ पहुंचाने के फेर में उन्होंने भी गलत सलत काम किये। कुछ बैंकों के अवकाश प्राप्त अध्यक्ष एवम अन्य वरिष्ठ अधिकारी अपने कार्यकाल के दौरान किये घपलों के कारण गिरफ्त में आ गए। कुल मिलाकर विजय माल्या और नीरव मोदी के लघु संस्करणों की भरमार होने से बैंकिंग क्षेत्र की कमर टूटने की स्थिति आ गई है। इसके लिए कोई एक या कुछ लोग नहीं वरन पूरी बैंकिंग व्यवस्था ही जिम्मेदार है क्योंकि अरबों के घोटाले तब तक सम्भव नहीं जब तक शीर्ष पदों पर बैठे सफेदपोश उनमें लिप्त नहीं हों। ऑडिट प्रणाली की भूमिका और ईमानदारी भी संशय के घेरे में आ चुकी है। कहने का आशय केवल इतना ही है कि जिस सेक्टर पर समूची अर्थव्यव्यस्था का भार हो यदि वही लडख़ड़ाती नजर आने लगे तब विकास दर में वृद्धि के सपने साकार नहीं सकते। बैंकिंग घोटाले यूँ तो अमेरिका और जापान तक में हुए हैं लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के पास ऐसे झटके झेलने की गुंजाइश नहीं है। सबसे बड़ी बात आम जमाकर्ता का बैंकों में घटता भरोसा है। विजय माल्या और नीरव मोदी कांड ने इस क्षेत्र की साख पर जो धब्बा लगाया वह आसानी से धुल पाना सम्भव नहीं है। लेकिन इस सेक्टर की विश्वसनीयता को पुनस्र्थापित करना बहुत जरूरी है वरना अर्थव्यव्यस्था को पटरी से उतरते देर नहीं लगेगी ।
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