Friday 22 June 2018

घाटी में आर-पार की लड़ाई की जरूरत

कश्मीर घाटी में राज्यपाल शासन लागू होते ही प्रशासन का नज़रिया बदलने लगा। यासीन मलिक और मीर वाइज उमर फारुख को गिरफ्तार और सैयद अहमद शाह जिलानी को घर में नजरबंद करने जैसी कार्रवाई के साथ ये खबर भी आ गई कि अब घाटी में ब्लैक कैट कमांडो तैनात किए जा रहे हैं जो आतंकवादियों के सफाये के साथ ही अमरनाथ यात्रा के दौरान आने वाले लाखों यात्रियों की सुरक्षा का काम भी देखेंगे। राज्यपाल ने सभी दलों की बैठक बुलाकर राजनीतिक प्रक्रिया जारी रखने के संकेत भी दिए हैं। राज्यपाल शासन का अनुभव जम्मू कश्मीर को पहले भी हो चुका है लेकिन इस मर्तबा परिस्थितियां काफी अलग हैं क्योंकि पीडीपी-भाजपा गठबंधन टूटने की वजह वैचारिक मतभेद न होकर मुख्यमंत्री रहीं महबूबा मुफ्ती का पत्थरबाजों और अलगाववादियों के प्रति नरम रवैया बना। रमजान के उपरांत भी युद्धविराम जारी रखने की महबूबा की जिद के चलते भाजपा को गठबंधन तोडऩे का अवसर मिल गया। युद्धविराम के दौरान पत्थरबाजी और आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि के कारण उसे आगे जारी रखने का कोई औचित्य नहीं था। पीडीपी अपने रुख में बदलाव के लिए तैयार नहीं थी। सही बात ये है कि पीडीपी और भाजपा दोनों साथ रहते हुए असहज अनुभव कर रही थीं। यदि भाजपा ने गठबंधन नहीं तोड़ा होता तो महबूबा भी किसी दिन पत्रकार वार्ता बुलाकर  भाजपा से दूर होने का ऐलान कर देतीं। उसकी भनक लगते ही भाजपा ने कमांडो एक्शन जैसी कार्रवाई करते हुए सरकार गिरवा दी। राज्यपाल शासन के बाद अब राज्य पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन आने से भाजपा को अपनी नीतियां लागू करने का अवसर मिल गया। यही वजह है कि ब्लैक कैट कमांडो तैनात करने जैसा फैसला लिया गया। इस फैसले से ये भी आभास होता है कि केंद्र सरकार अलगाववादियों से निबटने के लिए पूरी तैयारी कर रही है। अमरनाथ यात्रा के पहले सुरक्षा प्रबंध चाक-चौबंद करने की बेहद जरूरत है क्योंकि यात्रा के दौरान आतंकवादी वारदात से यात्रियों का ही नहीं पूरे देश का मनोबल गिरता है। ब्लैक कैट कमांडो को यदि आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई में लगा दिया जावे तो निश्चत रूप से ठोस नतीजे निकल सकते हैं। कड़वा सच ये है कि कश्मीर घाटी में तैनात राज्य के अधिकतर पुलिसकर्मी भी महबूबा मुफ्ती की तरह से ही अलगाववादियों के प्रति हमदर्दी रखते हैं। इसकी वजह डर भी हो सकता है किन्तु घाटी के भीतर भारत विरोधी भावनाएं काफी गहराई तक फैल चुकी हैं। नई पीढ़ी के नौजवानों के मन में अलगाववाद को मज़हब के नाम पर इस तरह भर दिया गया जैसे आज़ादी के पहले पाकिस्तान बनाने का माहौल मुसलमानों में अंग्रेजों की मदद से पैदा किया गया था। कश्मीर के मामले में पाकिस्तान अंग्रेजों की भूमिका निभा रहा है जिसे चीन का खुला समर्थन है। बहरहाल राज्यपाल शासन लगते ही घाटी का माहौल बदलने के संकेत मिलने लगे हैं। शुरुवात होते ही सुरक्षा बलों ने कुछ आतंकवादियों को मार गिराया। हुर्रियत नेताओं द्वारा विरोध किये जाने पर उनकी गिरफ्तारी और नजरबंदी से लगने लगा है कि केंद्र उन सभी आरोपों को धो डालने के लिए तत्पर है जो महबूबा सरकार के रहते उसके दामन पर लगते रहे। ख़बर है सेना एवं अन्य सुरक्षा बलों ने घाटी में पनाह लिए आतंकवादियों की पूरी सूची बना ली है। शीघ्र ही उनके विरुद्ध अभियान छेड़ा जाएगा। चूंकि ब्लैक कैट कमांडो विषम स्थितियों में भी अपने कार्य को सफलतापूर्वक करने हेतु प्रशिक्षित और अभ्यस्त रहते हैं इसलिए उनको मोर्चे पर उतारकर आतंकवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से देने की रणनीति बनाली गई है। ऐसा करने से सुरक्षा बलों का हौसला भी बढ़ेगा जो राज्य सरकार के हस्तक्षेप और असहयोग की वजह से खुलकर अपने हाथ नहीं दिखा पा रहे थे। कश्मीर को लेकर पूरा देश उद्वेलित है। वहां जिस तरह से अलगाववाद का फैलाव हुआ और सुरक्षा बलों के लोगों की जानें सस्ते में जाती गईं उससे देश में केंद्र सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी। लोग इस बात को लेकर हैरान थे कि प्रधानमंत्री अपने पहले वाले बयानों को कैसे भूल गए। खैर, देर आये दुरुस्त आये की तजऱ् पर अगर अब भी घाटी में मौजूद भारत विरोधी तत्वों की गर्दन नहीं मरोड़ी गई तब श्री मोदी और भाजपा दोनों मुंह छिपाने मज़बूर हो जाएंगे। कश्मीर घाटी के दक्षिणी हिस्से आतंकवादी गतिविधियों के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं। एक तरह से वहां उनकी समानांतर सत्ता चल रही है। अनेक थाने वीरान पड़े हैं। सरकारी दफ्तर भी नाममात्र के लिए हैं। महबूबा मुफ्ती द्वारा मुख्यमंत्री बनते ही रिक्त की गई अनंतनाग संसदीय सीट का उपचुनाव सम्भव नहीं हो पा रहा। ये कयास भी लगने लगे हैं कि घाटी में राज्यपाल शासन लम्बा चलेगा। ऐसे में सुरक्षा बलों को भी कई मोर्चों पर एक साथ जूझना पड़ेगा। शायद यही वजह होगी जो ब्लैक कैट कमांडो सरीखे सबसे जाबांज दस्ते को घाटी में भेजने की शुरूवात कर दी गई। आने वाले कुछ दिन बेहद महत्वपूर्ण होंगे। केंद्र सरकार के पास बहुत ज्यादा समय नहीं है क्योंकि अमरनाथ यात्रा के पहले आतंकवादियों के हौसले पस्त करने जरूरी हैं। पीडीपी पर आरोप लगाकर सरकार गिराने के बाद अब पूरा दारोमदार भाजपा पर आ गया है क्योंकि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री सभी भाजपा के ही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी भाजपा की पसंद के ही हैं। ये सब देखते हुए पूरा देश अपेक्षा कर रहा है कि कश्मीर घाटी में आर-पार की लड़ाई छेड़ दी जाए क्योंकि आए दिन सुरक्षा बलों के जवानों और अधिकारियों की शहादत अब बर्दाश्त के बाहर हो चुकी है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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