Friday 10 June 2022

राष्ट्रपति चुनाव : नीतीश कर सकते हैं उलटफेर



 भारत के अगले राष्ट्रपति का चुनाव कार्यक्रम गत दिवस घोषित हो गया | इस हेतु 18 जुलाई को मतदान और 21 जुलाई को परिणाम घोषित होंगे | वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल  24 जुलाई को समाप्त होने वाला है | पिछली मर्तबा श्री कोविंद आसानी से चुन लिए गये थे | दलित होने के नाते उनको भाजपा के विरोधी दलों का समर्थन भी मिला था | लेकिन इस बार केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के पास तकरीबन 10 हजार मत कम पड़ रहे हैं जिनकी भरपाई उड़ीसा के नवीन पटनायक और आंध्र के जगन मोहन रेड्डी से किये जाने की उम्मीद भाजपा कर रही है | चूंकि अभी तक उसने अपने उम्मीदवार के बारे में कोई संकेत नहीं दिया इसलिए अन्य दलों से समर्थन की सम्भावना स्पष्ट नहीं है किन्तु प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी  सहित गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए पांसे चलने शुरू कर दिए हैं | श्री मोदी और श्री पटनायक की हाल में हुई मुलाकात को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है | देश के वर्तमान राजनीतिक माहौल में चूंकि भाजपा के विरुद्ध ममता बैनर्जी , स्टालिन , विजयन , चन्द्रशेखर राव , उद्धव ठाकरे और हेमंत सोरेन  जैसे विपक्षी मुख्यमंत्री सक्रिय हैं वहीं कांग्रेस किसी भी सूरत में भाजपा प्रत्याशी का समर्थन नहीं करेगी | राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकार है जबकि महाराष्ट्र में वह शिवसेना और रांकपा तथा झारखंड में  गठबंधन सरकार का हिस्सा है | भाजपा की तरह ही विपक्ष  भी अभी तक राष्ट्रपति चुनाव के बारे में कोई नाम तय नहीं कर सका है |  जो गणित सामने आया है उसके अनुसार एनडीए के पास निर्वाचक मंडल के 49 और विपक्ष के पास 51 फीसदी मत है | हालांकि  विपक्ष में एकजुटता  और सामंजस्य का अभाव होने से भाजपा अपना उम्मीदवार जिताने के प्रति आश्वस्त तो है लेकिन उसके  सबसे प्रमुख सहयोगी जनता दल ( यू ) के तेवर देखते हुए  उलट – पुलट होने की आशंका भी है | कुछ समय पहले तक ये चर्चा थी कि बिहार के मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार को भाजपा राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनाने की सोच रही है | लेकिन बीते कुछ महीनों से वे  जिस तरह से उसको परेशान कर रहे हैं उसकी वजह से  लगता है उस सम्भावना की भ्रूण हत्या हो गई है | नीतीश सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना का फैसला निश्चित तौर पर भाजपा को चिढाने वाला है | लालू यादव के परिवार के साथ उनके मेल – मुलाक़ात और सौजन्यता के आदान –प्रदान से भी ये अटकलें हवा में तैर रही हैं कि नीतीश एक बार फिर अपने पुराने साथी के साथ चले जायेंगे | हालाँकि अब तक  उनकी तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया किन्तु उनकी सियासत को जानने वाले ये अनुमान लगा रहे हैं कि वे भाजपा  को बड़ा झटका देने की तैयारी में हैं और उस दृष्टि से राष्ट्रपति चुनाव सबसे अच्छा अवसर हो सकता है | उल्लेखनीय है विपक्ष के पास देश के संवैधानिक प्रमुख हेतु सबसे वजनदार प्रत्याशी शरद पवार नजर आते हैं लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर वे हारने के लिए मैदान में नहीं उतरना चाहेंगे | ऐसे में नीतीश यदि भाजपा से नाता तोड़कर विपक्ष के साझा उम्मीदवार बनते हैं तब भाजपा की मुश्किलें और बढ़ जावेंगी क्योंकि अभी जो अंतर मामूली नजर आ रहा है वह और बड़ा हो जाएगा | यदि नीतीश इस चुनाव  में भाजपा के विरुद्ध उतर गए तब मुकाबला बेहद कडा होने के साथ ही रोचक हो जाएगा क्योंकि उनके भाजपा का साथ छोड़ते ही 2024 का विपक्षी गठबंधन आकार लेने लगेगा | हालाँकि उसमें प्रधानमंत्री पद को लेकर काफी खींचातानी है लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए नीतीश कुमार विपक्ष के लिए मुंह माँगी मुराद साबित होंगे | उनके विपक्ष के साथ आने से बड़ी बात नहीं नवीन  पटनायक और जगन मोहन रेड्डी भी भाजपा को ठेंगा दिखा दें | हालाँकि फ़िलहाल इस बात पर यकीन कर पाना कठिन लगता है लेकिन नीतीश बेहद अनुभवी और चतुर राजनेता हैं | वे इस बात को अच्छी तरह जान  चुके हैं कि बिहार में अब उनके पास करने के लिए   कुछ बचा नहीं है और भाजपा जिस तरह अपने पैर वहां जमाती जा रही है उसके कारण अगला विधानसभा चुनाव उनके लिए मुश्किल भरा होगा | ऐसे में यदि वे विपक्ष के प्रत्याशी बनकर राष्ट्रपति चुनाव जीत  जाते हैं तो राष्ट्रपति भवन में बैठने के बाद भी वे राजनीति में प्रासंगिक बने रहेंगे क्योंकि केंद्र सरकार के लिए उनकी उपेक्षा करना  आसान नहीं होगा | 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल न कर पाने का मलाल उनको अभी तक है | लेकिन  राजनीतिक मजबूरियों वश न चाहते हुए भी उनको श्री मोदी के साथ आना पड़ा जिनके कारण उन्होंने एनडीए छोड़ा था | लेकिन यदि उनको लगता है कि वे इस मुहिम में सफल नहीं होंगे तब वे श्री पवार को समर्थन देकर भाजपा को गच्चा देने का  दांव खेल सकते हैं | मौजूदा हालात में विपक्ष बुरी तरह से बिखरा हुआ एवं हताश है | कांग्रेस अपने अंतर्द्वंद में ही उलझी  हुई है | तीसरे मोर्चे के स्तम्भ रहे नेता धीरे – धीरे हाशिये पर चले गए | और फिर विपक्षी एकता में प्रधानमंत्री पद पाने की हसरत भी बाधा बन जाती है | परन्तु राष्ट्रपति के चुनाव में यदि नीतीश भाजपा को शह देने के लिए विपक्ष के साथ खड़े हो जाएँ तो श्री मोदी के सामने कठिन स्थिति बन जायेगी |   हालाँकि मोदी - शाह की जोड़ी भी नीतीश सहित विपक्ष की  किसी भी संभावित चाल पर पैनी नजर रख रही होगी  लेकिन  विपक्ष अपने छोटे – छोटे मतभेद  किनारे रख दे तो राष्ट्रपति  चुनाव के जरिये वह प्रधानमंत्री के लिए परेशानी पैदा करने में सफल हो जाएगा | ये सम्भावना किस हद तक वास्तविकता में बदलेगी ये कहना कठिन है क्योंकि जिस तरह श्री मोदी अपने विरोधियों को चौंकाने में सिद्धहस्त हैं ठीक वही गुण श्री पवार और नीतीश में भी है | ये देखते हुए आगामी कुछ सप्ताह राष्ट्रीय राजनीति में बेहद उथल - पुथल भरे होंगे | हालाँकि 1969  के राष्ट्रपति चुनाव में ही सबसे बड़ा धमाका हुआ  जब  इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के विरुद्ध वीवी गिरि को उतारकर आत्मा की आवाज पर मत देने का आह्वान कर दिया था | श्री गिरि की विजय ने कांग्रेस के दो टुकड़े करवा दिए लेकिन इंदिरा जी राजनीतिक तौर पर शक्तिशाली नेता के तौर पर स्थापित हो गईं | एक बात और उल्लेखनीय है कि इक्का – दुक्का अवसरों को छोड़कर राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री से टकराव लेने की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी लेकिन फिर भी डा. राजेन्द्र प्रसाद के अलावा किसी और राष्ट्रपति को दूसरा कार्यकाल नहीं दिया गया | और वह भी क्योंकि राजेंद्र बाबू उसके लिए अड़ गये थे वरना पंडित नेहरु उन्हें नापसंद करने लगे थे | इसी तरह  डा.एपीजे कलाम को दोबारा राष्ट्रपति बनाने की मुहिम चली भी किन्तु कांग्रेस राजी नहीं हुई | उस दृष्टि से श्री कोविंद मोदी सरकार के  लिए काफी अनुकूल थे किन्तु उनको राष्ट्र्पति भवन में दूसरी पारी शायद ही नसीब हो |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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