Monday 27 June 2022

अखिलेश से विरासत संभल नहीं रही : मुस्लिम - यादव समीकरण बेअसर



गत दिवस देश के अनेक राज्यों में लोकसभा  और विधानसभा की कुछ सीटों के लिए हुए उपचुनाव के परिणाम घोषित किये गए  | इनमें सर्वाधिक चर्चा उ.प्र की आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट को लेकर हो रही है जो क्रमशः अखिलेश यादव और आज़म खान द्वारा विधायक बनने पर खाली की गई थीं | मुस्लिम - यादव समीकरण के कारण ये सीटें समाजवादी पार्टी के गढ़ के रूप में जानी जाती रही हैं | लेकिन इस उपचुनाव में मतदाताओं ने उलटफेर करते हुए भाजपा को जिता दिया | आजमगढ़ से भोजपुरी फिल्मी सितारे दिनेश लाल यादव निरहुआ और रामपुर से घनश्याम लोधी ने जीत हासिल की | आजमगढ़ में तो सपा की हार का कारण बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली बने जिन्होंने तकरीबन दो लाख मत हासिल कर लिए |  उन्हें बड़ी संख्या में मुस्लिम मत मिलने से सपा को भारी  नुकसान हुआ | इस सीट पर अखिलेश ने अपने चचेरे भाई धर्मेन्द्र को उतारा था | लेकिन रामपुर में 55 फीसदी मुस्लिम मतदाता होने के बावजूद सपा के आसिम राजा का 42 हजार से हार जाना सपा की चिंता बढाने वाली बात है | इन परिणामों ने उ.प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक कद को और ऊंचा कर दिया | सबसे अच्छी बात  ये हुई कि उ.प्र में जाति आधारित राजनीति अपना असर खोती जा रही है वहीं  मुस्लिम मतदाताओं की भाजपा विरोधी  गोलबंदी भी कारगर साबित नहीं हो रही | कहा जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय का कुछ हिस्सा भाजपा की तरफ झुक रहा है जिसकी वजह सपा की गिरती साख और धाक है | मुलायम सिंह यादव के अस्वस्थ होने के कारण अखिलेश के हाथ जबसे पार्टी की कमान आई है तबसे वह लगातार बिखराव और भटकाव का शिकार हो रही है | मुसलमानों के मन में ये बात घर करने लगी है कि सपा के भरोसे वे अपना राजनीतिक महत्व बरकरार नहीं रख पा रहे | कांग्रेस डूबती नाव है और बसपा अपने बनाये जाल में फंस चुकी है | इस कारण उ.प्र के मुसलमानों के मन भी उथल – पुथल है | राम मंदिर का निर्माण तेजी से होने के साथ ही एक तरफ  ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद गरमाया और दूसरी तरफ  मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के मामले  को भी हवा मिलने लगी |  इस सबके बीच सपा या अन्य गैर भाजपा पार्टियाँ जिस तरह असहाय बनी हुई हैं उससे मुसलमानों को लगने लगा है कि या तो उनका अपना नेतृत्व होना चाहिए अथवा भाजपा के अंधे विरोध  से  बचकर  उसके साथ  समन्वय बनाकर चलना चाहिए | अनेक मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी ज्ञानवापी और हाल ही में उठे नूपुर शर्मा विवाद पर जिस तरह का समझौतावादी रुख अपनाया वह इस बात का संकेत है कि मुस्लिम समुदाय के बीच भाजपा को लेकर विमर्श  शुरू हो गया है | हालाँकि मस्जिदों से निकले नमाजियों द्वारा किये गए हालिया दंगों से ये संकेत भी मिला कि मुसलमानों को मुख्यधारा में आने से रोकने का षडयंत्र जारी है | लेकिन आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजे इस बात का प्रमाण हैं कि वे  एक सीमा से बाहर  जाकर हेकड़ी दिखायेंगे तो जवाब में हिन्दू ध्रुवीकरण स्वाभाविक रूप से होगा |  अखिलेश के उपचुनाव में प्रचार हेतु नहीं जाने को लेकर भी पार्टी के भीतर ही सवाल उठने लगे हैं | दोनों सीटों पर कम मतदान  होने का अर्थ सपा समर्थकों में व्याप्त उदासीनता और निराशा माना जा रहा है | बसपा ने आजमगढ़ में जिस तरह मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर सपा के हाथ से जीत छीन ली वह भी काफी रोचक है | इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी दस विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा है | ऐसे में निरहुआ का जीत जाना अखिलेश के लिए बड़ा धक्का है | परिणाम आने के बाद आजम खान और शिवपाल यादव की प्रतिक्रिया से साफ़ झलकता है कि पार्टी में बिखराव की प्रक्रिया रुकने का नाम नहीं ले रही | विधानसभा चुनाव में मिली हार के झटके से अखिलेश अभी तक उबर नहीं पाए हैं | यदि यही हाल रहा तो 2024 का लोकसभा चुनाव आते – आते तक सपा भी शिवसेना जैसी हालत में आ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि मुलायम सिंह यादव के हाशिये पर चले जाने के बाद अखिलेश का जो रवैया है उसकी वजह से पार्टी का एकजुट बने रहना संभव नहीं लगता | यादवों  के साथ मुसलमानों को जोड़कर बनाया गया  एम. वाय समीकरण काठ की हांडी साबित हो चुका है | 2014 और 2019 के लोकसभा के अलावा  2017   तथा 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उ.प्र में जिस तरह अपने प्रभावक्षेत्र में वृद्धि की वह साधारण बात नहीं है | भाजपा जहां अपने मौलिक एजेंडे पर चलते हुए 80 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करती जा रही है वहीं सपा आत्ममुग्धता की शिकार होकर अपने मजबूत  किले गंवाती जा रही है | कल के नतीजों के लिए सपा के नए सहयोगी ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वे अपने वातानुकूलित कमरे से ही बाहर नहीं निकले और नामांकन  के अंतिम दिन प्रत्याशी घोषित किये | उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि यदि वे स्वयं और उनके साथी आजमगढ़ में मोर्चा नहीं सँभालते तो हार लाखों में होती | दरअसल विरासत में मिली राजनीति को सहेजकर रखना हर किसी के बस में नहीं होता | अखिलेश को भी अपने पिता से सत्ता और सियासत दोनों बतौर उत्तराधिकार मिल तो गये किन्तु उनसे उसका वजन सम्हल नहीं रहा | हालाँकि  वे अकेले नहीं हैं जिन्हें पारिवारिक सम्पत्ति के तौर पर पार्टी मिली हो | आज की राजनीति पर नजर डालें तो नवीन पटनायक , राहुल गांधी , तेजस्वी यादव , चिराग पासवान , चौटाला बंधु , हेमंत सोरेन , उद्धव और आदित्य ठाकरे ,जगन मोहन रेड्डी और स्टालिन जैसे नेता हैं जिन्हें उनके परिवार  की राजनीतिक सम्पति हासिल हुई | इनमें नवीन , जगन , स्टालिन और कुछ हद तक हेमंत ने तो अपनी काबलियत साबित कर दी किन्तु शेष सभी विरासत की रक्षा करने में विफल रहे तो उसका कारण उनमें दूरदर्शिता का अभाव होने के साथ ही नेता पुत्र होने का अहंकार है | आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव परिणाम अखिलेश यादव के लिए बहुत बड़ा झटका है | इससे अपनी पार्टी के भीतर भी उनकी वजनदारी में कमी आयेगी | और सबसे बड़ी बात  ये है कि सपा  संस्थापक मुलायम सिंह अब उस स्थिति में नहीं रह गये कि उनकी ढाल बन सकें | ऐसे में शिवपाल यादव और आज़म खान ज्यादा दिन खामोश नहीं बैठेंगे | वैसे भी समाजवादी शब्द और बिखराव एक दूसरे के समानार्थी माने जाते हैं |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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