Saturday 25 June 2022

आपातकाल : लोकतंत्र की हत्या का असफल प्रयास



आज 25 जून है | कहने को ये कैलेंडर की एक तारीख मात्र है लेकिन स्वाधीन भारत के इतिहास में ये तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण है | 47 साल पहले आज ही आधी रात के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या का दुस्साहसिक प्रयास किया था | 12 जून 1975 को अलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 1971 में रायबरेली से श्रीमती गांधी  के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़े प्रख्यात समाजवादी नेता स्व. राजनारायण की चुनाव याचिका को स्वीकार करते हुए उस चुनाव को अवैध निरुपित कर दिया | स्व. जगमोहनलाल सिन्हा नामक न्यायाधीश के उस फैसले ने राजनीतिक भूचाल ला दिया | उस लोकसभा चुनाव ने इंदिरा जी को सर्वशक्तिमान बना दिया था | उसके बाद बांग्ला देश के  निर्माण ने तो उन्हें अपने पिता पंडित नेहरु से  भी बड़ा नेता बना दिया | पूरी दुनिया में उनके नाम का डंका बजने लगा | ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय द्वारा उनका चुनाव अवैध घोषित किये जाने के कारण अचानक  उनकी गद्दी खतरे में आ गई | लेकिन उन्होंने पद छोड़ने के बजाय लोकतान्त्रिक मूल्यों को छोड़ना बेहतर समझा | देश भर में न्यायमूर्ति स्व. सिन्हा के पुतले जलाए गये | इंदिरा जी के पुत्र स्व. संजय गांधी को तो ये कहते तक सुना गया कि करोड़ों मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रधानमंत्री को भला एक न्यायाधीश कैसे हटा सकता है ? दूसरी तरफ विपक्षी दल इंदिरा जी से  पद त्यागने की मांग कर रहे थे | संसद में विशाल बहुमत के बावजूद वे तेजी से लोकप्रियता खो रही थीं | 1974 में शुरू हुआ गुजरात का छात्र आन्दोलन बिहार होता हुआ स्व. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रांति के आह्वान में बदल चुका था | 6 मार्च 1975 को दिल्ली में लालकिले से बोट क्लब तक निकली सर्वदलीय रैली ने इंदिरा जी की सत्ता को हिला दिया | घपले – घोटालों की चर्चा के कारण संसद चल नहीं पा रही थी | कांग्रेस के भीतर भी नेताओं का एक समूह श्रीमती गांधी के तानाशाही रवैये और संजय गांधी की स्वेच्छाचारिता से नाराज था | ऐसी स्थितियों में जब उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद इंदिरा जी चारों तरफ से घिरने लगीं तब उन्होंने लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को ही अवरुद्ध करने का दुस्साहस कर डाला और 25 तथा 26 जून 1975 की दरम्यानी रात में जब  पूरा देश निद्रामग्न था तब तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को जगाकर उनसे अध्यादेश पर हस्ताक्षर करवाकर आपातकाल घोषित कर दिया | सुबह होते तक जयप्रकाश नारायण , आचार्य कृपालानी , अटल बिहारी वाजपेयी , चौधरी चरण सिंह , लालकृष्ण आडवाणी , चन्द्रशेखर , मधु लिमये , राजनारायण , मधु दंडवते , नानाजी देशमुख , प्रकाश सिंह बादल आदि गिरफ्तार कर  लिए गये |  उनके साथ ही देश भर में प्रदेश , जिला और तहसील स्तर तक के विपक्षी नेता जेल भेज दिए गए | समाचार पत्रों पर सेंसर लगा दिया गया | अभिव्यक्ति की आजादी के साथ ही  मौलिक अधिकार भी निलंबित कर दिए गए | जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन को  आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए उनकी तुलना हिटलर से की जाने लागी | सरकारी प्रचार तंत्र ये साबित करने में जुट गया कि  विपक्ष इंदिरा जी की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने के षडयंत्र में लिप्त था | यद्यपि इस कुकृत्य को वाजिब ठहराने के लिए कुछ समाज विरोधी तत्वों  को भी गिरफ्तार  कर लिया गया | लेकिन आपातकाल का असली कारण अलाहाबाद उच्च न्यायालय का उक्त  फैसला  ही था जिसके आधार पर  इंदिरा जी को  सत्ता छोड़ देना चाहिए था | लेकिन वे कुर्सी से हटने के बजाय लोकतंत्र के रास्ते से ही हट गईं | 19 महीने देश में लोकतंत्र के नाम पर श्रीमती गांधी की तानाशाही  चली | लोकसभा का कार्यकाल  एक साल बढ़ाकर अनेक ऐसे प्रावधान कर दिए गए जिनके आधार पर उच्च न्यायालय का फैसला बेअसर होकर रह गया | जब उन्हें लगा कि अब विपक्ष दम तोड़ बैठा है तब उन्होंने मार्च 1977 में लोकसभा  चुनाव करवाए  जिसमें कांग्रेस पराजित हुई और नई नवेली जनता पार्टी की सरकार बन गयी | आपातकाल के दौरान जो जनता डर के मारे चुप रही  उसने मतदान के जरिये अपना गुस्सा इस कदर व्यक्त किया कि श्रीमती गांधी  रायबरेली और संजय  गांधी अमेठी से चुनाव हार गये | ये पहला अवसर था जब दुनिया के किसी देश का प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी  संसद का चुनाव तक हार गया था | हालांकि जनता पार्टी की सरकार भी अपने अंतर्विरोधों के कारण महज 27 महीने में चल बसी और 1980 में इंदिरा जी की वापिसी हो गई | लेकिन आपातकाल लगाने का अपराधबोध उन पर हावी रहा | और यही वजह रही कि वे राजनीतिक तौर पर पूर्व की तरह प्रभावशाली नहीं हो सकीं | जनता पार्टी की सरकार ने एक काम तो अच्छा कर दिया जिससे भविष्य में  आपातकाल लगाये जाने की आशंका नहीं रही  | आज जो लोग लोकतंत्र और संविधान को खतरे में बताते हैं वे इंदिरा जी द्वारा थोपे गये आपातकाल और उसके दौरान हुए अत्याचारों के बारे में पढ़ें और जानें तब उनको एहसास होगा कि 19 माह का वह दौर कितना भयावह था | हालंकि उस दौर की  जनता बधाई की हकदार है जिसने इंदिरा की तानाशाही को मतपत्र की ताकत से उखाड़ा फेंका | तबसे हमारा लोकतंत्र मजबूत तो हुआ लेकिन जनता पार्टी की लहर में ऐसे लोग भी प्रथम पंक्ति के नेता बन बैठे जिन्होंने जयप्रकाश जी द्वारा सम्पूर्ण क्रान्ति के नाम पर जिस व्यवस्था  परिवर्तन का प्रारूप पेश किया उसकी धज्जियां उड़ाते हुए  जातिवाद का जो  जहर फैलाया वही आज  भरतीय राजनीति की पहचान बन गया है | जहाँ तक बात आपातकाल की है तो 25 जून हर लोकतंत्र प्रेमी के लिए आत्मावलोकन का  दिन है | ये भी अजीब संयोग है कि उस आपातकाल के शिकार नेता और उनकी पार्टियां आज उसी कांग्रेस की बगलगीर बनी हुई हैं जिसके माथे पर लोकतंत्र की हत्या के प्रयास का कलंक लगा हुआ है | युवा पीढ़ी के लिए भी 1974 से 1980 तक के कालखंड का अध्ययन करना जरूरी है जिससे उन्हें ये एहसास हो सके कि लोकतंत्र की जरूरत और अहमियत क्या है ?


-रवीन्द्र वाजपेयी


No comments:

Post a Comment