भाजपा संसदीय बोर्ड द्वारा गत दिवस अनु.जनजाति समुदाय की द्रौपदी मुर्मू को एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाये जाने पर राजनीतिक जगत में किसी भी प्रकार का आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि बीते काफी समय से भाजपा खेमे में जिन नामों पर चर्चा चल रही थी उनमें श्रीमती मुर्मू के अलावा छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके , झरखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडे , केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अहमद नकवी और केरल के राज्यपाल आरिफ मो. खान शामिल थे | लेकिन श्रीमती मुर्मू की संभावना इसलिए ज्यादा बताई जा रही थीं क्योंकि भाजपा का ध्यान देश के बड़े अदिवासी वर्ग पर केन्द्रित है | आम तौर पर ये माना जा सकता है कि ऐसा उनके मत बटोरने की गरज से किया गया है परन्तु इसके पीछे बहुत ही दूरगामी सोच काम कर रही है | ये बात तो सही है कि आजादी के बाद आदिवासी समुदाय को जिसे सरकारी तौर पर अनु. जनजाति कहा जाता है , आरक्षण के जरिये सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में आगे आने के अवसर के साथ ही चुनावी राजनीति के कारण सत्ता प्रतिष्ठान में बैठने की पात्रता भी मिल सकी | लेकिन उनके बीच कार्यरत विदेशी ताकतें उन्हें हिन्दू समाज से अलग करने का जो अभियान चला रही हैं उसकी वजह से उनके समाज की मुख्य धारा से कटने का खतरा पैदा बढ़ता जा रहा है | दुर्भाग्य से हिन्दू धर्माचार्यों ने इस ओर जो दुर्लक्ष्य किया उसका लाभ लेकर विदेशी पैसे पर पलने वाली मिशनरियों ने आदिवासियों के मन में हिन्दू समाज के प्रति जहर भरना शुरू कर दिया | उनकी अशिक्षा और अज्ञानता का लाभ उठाकर उनके मन में ये बात बिठाने का सुनियोजित प्रयास किया जाता रहा कि वे हिन्दू समाज से अलग हैं | इस दुष्प्रचार का कुछ असर भी देखने भी मिला | इसी तरह नक्सलियों ने भी अपनी गतिविधियों को ज्यादातर आदिवासी क्षेत्रों में ही केन्द्रित किया | बिहार , छत्तीसगढ़ , उड़ीसा , आन्ध्र , तेलंगाना , महाराष्ट्र और म.प्र में नक्सली संगठनों का कार्यक्षेत्र मुख्यतः आदिवासी अंचलों में ही है | हालाँकि सरकार द्वारा इन इलाकों के विकास के लिए अनाप - शनाप धन खर्च किया गया किन्तु उसका ज्यादातर हिस्सा भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाने से अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सके | और इसी का लाभ उठाकर मिशनरियों एवं नक्सलियों ने आदिवासी समुदाय के बीच व्यवस्था के विरुद्ध गुस्सा भड़काने का खेल रचा | हालांकि बीते एक – दो दशक से राष्ट्रवादी शाक्तियां भी पूरी ताकत से आदिवासी अंचलों में सक्रिय हैं और हिन्दू धर्माचार्य भी अपने दायित्व बोध के प्रति गंभीर हुए हैं लेकिन उनके मन में भरे गये जहर को बाहर निकालने में काफी समय लगेगा | और इसके लिए ज़रूरी है कि आदिवासी समुदाय को ये एहसास करवाया जाए कि वे समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर आसीन होने की पात्रता रखते हैं | बीते तीन दशक से सामाजिक समरसता , समता मूलक समाज और पिछड़ी जातियों के उत्थान का मुद्दा राजनीति के केंद्र बिंदु में रहा | लेकिन जिन राजनेताओं ने समाज के वंचित – शोषित वर्ग के सामाजिक और आर्थिक विकास का बीड़ा उठाया उनकी समूची राजनीति उनके अपने कुनबे के विकास के इर्द – गिर्द सिमटकर रह गई | कहने को आदिवासी समुदाय के बीच से भी राजनीतिक नेतृत्व उभरा परन्तु या तो वह पिछलग्गू बनकर रहा या उसमें भी परिवारवाद का कीटाणु प्रवेश कर गया | इस बारे में किसी का नाम लेने की जरूरत नहीं क्योकि ऐसे लोगों के नाम और काम सर्वविदित हैं | उस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की प्रशंसा करनी होगी जिन्होंने पहले दलित वर्ग के रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया और अब आदिवासी समुदाय की बेहद साधारण पृष्ठभूमि से जुडी महिला को देश का संवैधानिक प्रमुख बनने का सुअवसर प्रदान किया | झारखंड की राज्यपाल रहने के पूर्व श्रीमती मुर्मू उड़ीसा सरकार में मंत्री भी रही हैं | पार्षद से अपनी राजनीतिक यात्रा प्रारम्भ करने के बाद उन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किये | उड़ीसा से राष्ट्रपति बनने वाली वे पहली उम्मीदवार होंगी और देश की दूसरी महिला जो राष्ट्रपति भवन को सुशोभित करेंगी | उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपनी पार्टी बीजू जनता दल का समर्थन उनको देने की घोषणा कर एनडीए के पास पर्याप्त बहुमत होने की व्यवस्था कर दी | ऐसे में संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी बनाये गए यशवंत सिन्हा की पराजय सुनिश्चित हो गयी है | विपक्ष ने पूर्व में भाजपा द्वारा सर्वसम्मति की पहल पर प्रत्याशी का नाम बताने की शर्त रखी और फिर श्री सिन्हा के नाम की घोषणा करते हुए उस सम्भावना को पलीता लगा दिया | लेकिन श्रीमती मुर्मू का नाम सामने लाकर भाजपा ने विपक्ष के सामने धर्मसंकट की स्थिति उत्पन्न कर दी है | राष्ट्रपति पद हेतु पहली बार आदिवासी समुदाय से किसी का चयन निश्चित तौर पर एक बड़े सामाजिक बदलाव का आधार बनेगा जिसे राजनीति के बजाय हिन्दू समाज में दरार पैदा करने के षडयंत्र को विफल करने के प्रयास के तौर पर देखना सही रहेगा | श्रीमती मुर्मू की जीत में कोई संदेह न होने से अब विपक्ष को चाहिये वह भी उन्हें अपना समर्थन देकर रचनात्मक सोच का परिचय दे | देश के करोड़ों आदिवासियों के बीच इस निर्णय का जो सकारात्मक सन्देश जायेगा उससे सामाजिक समरसता का उद्देश्य तो पूरा होगा ही लेकिन उसके साथ ही देश की एकता , अखंडता और आंतरिक शान्ति के लिए खतरा पैदा करने वाली राष्ट्रविरोधी ताकतों के भी हौसले पस्त होंगे | पूरी दुनिया को श्रीमती मुर्मू के चयन से ये सन्देश चला गया कि भारत में अपने सामजिक ढांचे को सुरक्षित रखने की इच्छाशक्ति , सामर्थ्य और सूझबूझ है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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