Thursday 16 June 2022

कांग्रेस और गांधी परिवार खुद को कानून से ऊपर समझना बंद करें



नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ( प्रवर्तन निदेशालय ) द्वारा पूछताछ हेतु बुलाया जाना राहुल गांधी को बहुत ही नागवार गुजर रहा है | सवालों के जवाब में उनकी खिसियाहट साफ झलक रही है | जनतांत्रिक राज परिवार की ठसक कम होने का मलाल उनके गुस्से के तौर पर प्रकट हो रहा है | लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि कांग्रेस पार्टी ईडी  दफ्तर के सामने , जुलूस , धरना , प्रदर्शन कर परिवार भक्ति का प्रदर्शन करने में जुटी है | जिस दिन राहुल पहले मर्तबा ईडी पहुंचे उस दिन कांग्रेस के तमाम दिग्गजों की भीड़ शक्ति प्रदर्शन के उद्देश्य से जमा हुई जिसमें दो मुख्यमंत्री भी थे | हालाँकि पुलिस ने उन्हें वहां तक पहुँचने नहीं दिया | उसके बाद भी अगले दिनों में  कांग्रेसजन किसी न किसी रूप में ईडी कार्यालय के सामने अपने नेता से की जा रही पूछताछ का विरोध करने जमा होते रहे | पुलिस द्वारा रोके जाने पर वे वही सब करते हैं जो हमारे देश में आये दिन देखने मिलता है | कांग्रेस  एक राजनीतिक दल है जिसे लोकतान्त्रिक तरीके से सरकार का विरोध करने का पूरा अधिकार है | लेकिन न्यायालयीन प्रक्रिया के तहत चल रही किसी भी कार्रवाई का इस तरह विरोध करना ये दर्शाता है कि पार्टी में समझदारी पूरी तरह खत्म हो चुकी है | ईडी यदि गलत तरीके  से श्री गांधी से पूछताछ कर रही है तो उसे रुकवाने के लिए पार्टी के दिग्गज अधिवक्ता अदालत में गुहार लगा सकते थे | ईडी के सामने प्रदर्शन करने गये नेताओं के हुजूम में पी . चिदम्बरम जैसे देश के सुप्रसिद्ध  अधिवक्ता भी रहे | राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा ने गत दिवस कुछ केन्द्रीय मंत्रियों को पूछताछ का विवरण सार्वजनिक करने पर कानूनी  नोटिस भी दिया है | अभिषेक मनु सिंघवी और सलमान खुर्शीद जैसे नामी अधिवक्ता  भी पार्टी में हैं | ऐसे में यदि श्री गांधी और पार्टी को इस पूछताछ में अवैधानिकता प्रतीत हो रही है तो उनको  बेशक कानूनी लड़ाई लड़कर अपने आरोप साबित करने चाहिए | लेकिन ऐसा करने के स्थान पर पूछताछ स्थल के पास जाकर उत्पात मचाने का औचित्य शायद ही किसी की समझ में  आ रहा होगा | उससे भी बड़ी बात ये है कि इसके पहले भी अनेक कांग्रेस नेता ईडी और सीबीआई द्वारा पूछताछ अथवा जाँच हेतु बुलाये जा चुके हैं | श्री चिदम्बरम को तो सीबीआई द्वारा गिरफ्तार तक किया गया था | लेकिन उस समय क्या राहुल और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने उनके समर्थन में जाँच  एजेंसियों के कार्यालय पर जाकर ऐसा ही उत्पात मचाया था ? अभी हाल ही में श्री चिदम्बरम के सांसद बेटे कार्ति के यहाँ भी छापेमारी हुई किन्तु कांग्रेस पार्टी ने किसी भी प्रकार का जुलूस नहीं  निकाला | ऐसे में श्री गांधी के लिए जो कि वर्तमान में कांग्रेस के सांसद होने के अलावा कार्यसमिति सदस्य ही हैं , इतना बवाल काटने का कारण मात्र परिवार परिक्रमा ही है जिसकी वजह से कांग्रेस आज वर्तमान दुरावस्था से गुजरने मजबूर है | स्मरणीय है पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी  नेशनल हेराल्ड मामले में पूछताछ हेतु उक्त संस्था द्वारा बुलाया गया है किन्तु अस्वस्थ हो जाने से उन्हें अगली तिथि दी जावेगी | क्या उनके ईडी जाते समय कांग्रेस इससे भी बड़ा आन्दोलन करेगी ? और फिर उसके बाद अदालत में पेशियाँ होंगी तब पार्टी के नेता और कार्यकर्ता क्या उसका भी घेराव करेंगे  ? निश्चित रूप से कांग्रेस में गांधी परिवार की हैसियत बहुत  बड़ी होगी | लेकिन जहां  क़ानून की बात आती है तब पार्टी के पद या किसी व्यक्ति  का सार्वजनिक आभामंडल अर्थहीन हो जाता है | राजनीति में बड़े पदों पर विराजमान लोग जब अपने आपको सर्वशक्तिमान मानकर कानून को अपनी मुट्ठी में रखने लग जाते हैं तब इस तरह की मानसिकता सहज रूप से विकसित होती है जिसका प्रत्यक्ष अनुभव आये दिन हमारे देश में होता है | यद्यपि ये भी  काफी हद तक सही है कि राजनीतिक विद्वेषवश भी अनेक प्रकरण नेताओं पर दर्ज होते हैं जो बाद में सबूतों के अभाव में  दम तोड़ देते हैं | लेकिन संदर्भित प्रकरण दस्तावेजी  साक्ष्य पर आधारित होने से वजनदारी रखता है और इसीलिये श्री गांधी और उनकी माताजी ने ईडी द्वारा पूछताछ हेतु भेजे  गए समन को अदालत में चुनौती देने का साहस दिखाने की बजाय सड़कों पर राजनीतिक विरोध करने जैसी  गलती कर दी | ईडी ने क्या सवाल राहुल से पूछे और उन्होने उनका क्या उत्तर दिया ये तो उन दोनों को ही पता होगा लेकिन इस घटनाक्रम को यदि वे सहजता से लेते हुए एक सामान्य नागरिक की तरह पूछ्ताछ की प्रक्रिया से गुजरते तब शायद नेशनल हेराल्ड की खरीदी – बिक्री के विवाद की विस्तृत जानकारी लोगों को न हुई होती | बेहतर हो गांधी परिवार और उनको घेरे रखने वाले दरबारी संस्कृति वाले समर्थक  अपने तौर तरीके बदलकर इस सच्चाई को समझें कि अब वह दौर नहीं रहा जिसमें गांधी परिवार और कांग्रेस के सौ खून माफ़ हुआ करते थे | 1977 में जब कांग्रेस के हाथ से सत्ता गई और इंदिरा गांधी और संजय गांधी तक क्रमशः रायबरेली और अमेठी की पुश्तैनी सीटों पर हारे तब  देश की जनता में ये आत्मविश्वास जाग गया कि नेहरु – गांधी परिवार के बिना भी देश चल सकता है | उसी के बाद केंद्र में सत्ता  परिवर्तन का सिलसिला शुरू हुआ | 1984 में राजीव गांधी जिस लहर पर सवार होकर सत्ता में आये थे वह दरअसल इंदिरा जी की हत्या की  प्रतिक्रिया थी | और इसीलिए महज पांच साल बाद जनता ने उन्हें हटा दिया | तब से 2014 तक का कालखंड राजनीतिक अनिश्चिता का  रहा लेकिन बीते आठ साल से देश ने एक दिशा तय की है | बेहतर हो गांधी परिवार के साथ कांग्रेस भी इस बात को समझ ले कि 21 वीं  सदी में भारतीय जनमानस अब व्यक्ति और परिवार की  अंधभक्ति से ऊपर उठकर मुद्दों पर बात करना और सुनना पसंद करता है | खुद को महिमामंडित करने वाली राजनीति के दिन लद चुके हैं | ऐसे में नेताओं को चाहे वे गांधी उपनाम धारी हों या दूसरा कोई  , ये समझना होगा कि संसद में बैठकर कानून बनाने वाले भी उससे ऊपर नहीं हैं | और ये भी कि यदि कोई भी एजेंसी जाँच अथवा पूछताछ हेतु किसी को बुलाती  है तो वहां सामान्य तरीके से जाने पर नेता की प्रतिष्ठा बढ़ती है | इस दृष्टि से श्री गांधी और कांग्रेस पार्टी दोनों ने बदलते हुए समय को पहिचानने में भूल कर दी | यदि आगे भी वे  इसी तरह की गलतियाँ करते रहे तब जो हाल प. बंगाल और उ.प्र में कांग्रेस का हुआ वैसा ही पूरे देश में होने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी



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