Tuesday 14 June 2022

तेल के खेल में आम जनता का बजट फेल



भारत के कुछ राज्यों  में पेट्रोल और डीजल की  किल्लत के समाचार आ रहे हैं | एक पेट्रोलियम कंपनी द्वारा आपूर्ति कम किये जाने से उसके  पेट्रोल  पम्प बंद हो गए हैं | इसका दबाव अन्य कंपनियों पर भी पड़ने लगा है | जानकार सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में पेट्रोल - डीजल की आपूर्ति में कमी आने की आशंका है | इसकी वजह से कुछ लोगों ने बिना जरूरत के इनकी खरीदी करना शुरू कर दिया है | इस संकट की वजह तेल कंपनियों के घाटे को बताया जा रहा है | लेकिन दबी जुबान ये भी चर्चा है कि भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा मो. पैगम्बर के बारे में की गयी टिप्पणी के बाद तेल उत्पादक मुस्लिम देशों ने जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं दीं उससे भारत सरकार के कान खड़े हो गए | हालाँकि अभी तक उनमें से किसी  भी देश ने तेल आपूर्ति रोकने की बात नहीं की और न ही उसकी  संभावना ही नजर आ रही है | लेकिन रूस से सस्ते कच्चे तेल के सौदे की वजह से हो सकता है भारत सरकार ने अरब देशों  से मिलने वाले महंगे कच्चे तेल के आयात में कमी करने की पहल की हो | रूस से आयात किये गये कच्चे तेल को उपयोग लायक बनाने में समय लगने की वजह से भी आपूर्ति में कमी आ सकती है | बहरहाल सरकार ने ये आश्वस्त किया है कि देश में पेट्रोल – डीजल की कमी नहीं है | बावजूद इसके आशंकित लोग जमाखोरी में जुट गए हैं | लेकिन जहां तक घाटे का प्रश्न है तो तेल कम्पनियों का जो आय – व्ययक प्रकाशित होता है और समय – समय पर  उनकी ओर से अधिकृत आंकड़े आते हैं , उनसे तो यही बात उजागर होती है कि उनको भारी कमाई होने से उनके पास अपार नगदी उपलब्ध है और इसी के कारण वे सस्ता तेल मिलने पर तत्काल सौदा करने में सफल हो जाती हैं | वरना रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के दौरान रूस से सस्ता तेल खरीदकर जमा करने की हिम्मत न पड़ती | तेल कम्पनियाँ बीच – बीच में ये भी प्रचारित करती हैं कि उनको अमुक अवधि में इतनी राशि  का मुनाफा हुआ | कोरोना काल में जब कच्चे तेल के दाम गिरे तब इन कम्पनियों ने अनाप – शनाप कमाई की किन्तु उसका लाभ उपभोक्ता को देने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि पिछले घाटे की भरपाई की जा रही है | सही बात तो ये है इस बारे में असलियत सामने नहीं आती | ज्यादातार तेल कम्पनियाँ चूंकि सरकारी हैं इसलिए उनके क्रियाकलापों में सरकार का हस्तक्षेप भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तरीके से रहता है | लेकिन उनके द्वारा दाम ऊंचे  रखे जाने की वजह से निजी क्षेत्र की तेल कंपनियों को भी जमकर  मुनाफाखोरी करने का अवसर मिल जाता है | बीच – बीच में सरकार पेट्रोल – डीजल की  कीमतों को पूरी तरह बाजार के भरोसे छोड़ देती है | उसके बाद उनकी कीमतें सोने – चांदी की तरह लगभग रोजाना ही कम या ज्यादा होने लगती हैं किन्तु ज्योंही चुनाव करीब आते हैं , दाम स्थिर कर दिए जाते  हैं | गत वर्ष दीपावाली के ठीक पहले प्रधानमत्री ने पेट्रोल – डीजल सस्ता कर दिया था क्योंकि पांच राज्यों की विधानसभा के चुनाव होने वाले थे | चुनाव संपन्न होते  ही स्थितियां पूर्ववत होने लगीं और दामों में वृद्धि होने लगी | लेकिन इस बीच जिस तेजी से दाम  रोजाना बढ़ना शुरू हुए उसकी वजह से महंगाई का हल्ला मचा | विपक्ष को भी केंद्र सरकार पर ये ताना कसने का अवसर मिला कि पेट्रोल –  डीजल के दाम बाजार द्वारा नियंत्रित होने की बात सरासर झूठ है क्योंकि सरकार जब चाहे दाम घटाकर वाहवाही लूट लेती है | लेकिन  कीमतों के रोजाना बढ़ते समय निर्विकार बनकर बैठ जाती है | पेट्रोल – डीजल की कमी होने से आपूर्ति का जो संकट है उससे लोग इस बात से आशंकित हैं कि इसकी वजह से जमाखोर तबका कालाबाजारी शुरू कर सकता है | इस बारे में जनता की अपेक्षा है कि कच्चे तेल के तिलिस्म को लेकर व्याप्त आनिश्चतता सरकार दूर करे |  इस बात का जवाब मिलना चाहिए कि सरकारी तेल कम्पनियां घाटे में क्यों हैं , जबकि k  निजी क्षेत्र की तेल कम्पनी जबरदस्त मुनाफे में हैं | ये मुद्दा इसलिए उछलता है क्योंकि कच्चा तेल तो सभी को एक जैसे दाम पर मिलता है |  ऐसे में सरकारी कम्पनियाँ कभी तो भारी कमाई का ढोल पीटती हैं और कभी घाटे का रोना लेकर बैठ  जाती हैं | सबसे बड़ी बात है पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले केंद्र  और राज्य के भारी  – भरकम कर | हाल ही में केंद्र सरकार ने उनमें थोड़ी कटौती की तो दाम भी धडाम से नीचे आ गये | लेकिन अभी भी इस बारे में और गुंजाईश है | बेहतर हो केंद्र और राज्य मिलकर पेट्रोल – डीजल के दाम और उनमें लगने वाले करों के पहाड़ को छोटा करें जिससे आम उपभोक्ता को  राहत  महसूस  हो | सरकार को ये ध्यान रखना चाहिए कि महंगाई के वैसे तो अनेक कारण हैं लेकिन पेट्रोल – डीजल की उनमें मुख्य भूमिका होती है | प्रधानमंत्री ,  गरीब कल्याण योजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं | राज्य सरकारें भी खुद को जन हितैषी साबित करने के लिए खजाना लुटाने में संकोच नहीं करतीं किन्तु पेट्रोल – डीजल उनकी नजर में विलासिता की वस्तु है | जबकि ये भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर आम जनता के बजट पर असर डालती हैं | 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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