Thursday 9 June 2022

जहाँ ताकत दिखाना चाहिए वहां तो दिखाती नहीं कांग्रेस



आम जनता को न तो ई. डी ( प्रवर्तन निदेशालय ) समझ आता है और न ही उसे नेशनल हेराल्ड मामले से कोई सरोकार है | दरअसल उसका ई. डी से कोई वास्ता नहीं पड़ता और दूसरी तरफ नेशनल हेराल्ड की संपत्ति में हुई कथित हेराफेरी भी  उसके संज्ञान में नहीं है | भाजपा के राज्यसभा सदस्य रहे डा. सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत पर ये मामला अदालत के विचाराधीन है | लेकिन हाल ही में ई.डी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों को समन भेजकर पूछताछ हेतु बुलाया | श्रीमती गांधी तो कोरोना संक्रमित होने के कारण हाजिर नहीं हो सकीं वहीं राहुल ने विदेश में रहने के कारण 13 तारीख को पेश होने पर सहमति दी | लेकिन इसी के साथ ये समाचार भी आ गया कि श्री गांधी ई.डी के बुलावे पर अकेले नहीं जायेंगे | बल्कि कांग्रेस के समस्त सांसद एवं वरिष्ट नेता दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय से ई.डी कार्यालय  तक रैली की शक्ल में जायेंगे | पार्टी सूत्रों के अनुसार ये रैली कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन होगी | पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार ई.डी  के जरिये उसके नेताओं को परेशान कर रही है | उसी के विरोध स्वरूप ये रैली निकाली जायेगी | इस रैली का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि इसके लिए पार्टी के सभी सांसदों और वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली पहुँचने का निर्देश दिया गया है | लेकिन सवाल ये है कि पिछले दिनों जब कांग्रेस के कोषाध्यक्ष पवन बंसल से भी इसी प्रक्ररण में ई.डी द्वारा पूछताछ की गई थी तब कांग्रेस पार्टी को न ताकत दिखाने की याद रही और न ही उनके पक्ष में बयान जारी किये जाने की | श्री बंसल से ई.डी ने कब पूछताछ कर ली ये पता ही नहीं चला | लेकिन ज्योंही बात गांधी परिवार की आई त्योंही कांग्रेस को ताकत दिखाने का ध्यान आया | सवाल ये है कि अगर श्री गांधी 13 तारीख को साधारण तरीके से ई.डी के सामने पेश हो जाएँ तो क्या उससे कांग्रेस  की  कमजोरी जाहिर हो जायेगी ? और पार्टी मुख्यालय से ई.डी दफ्तर तक सांसदों और बड़े नेताओं की रैली निकालने से उसे ऐसा शक्तिवर्धक टॉनिक मिल जाएगा जो उसकी दुर्बलता को पलक झपकते ही दूर कर दे | पार्टी की मौजूदा हालत वाकई दयनीय है | संगठन के चुनाव लगातार टल रहे हैं | 2019 के  लोकसभा चुनाव में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी ने नैतिकता के नाम पर  अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया | अनेक महीनों तक  मान  – मनौव्वल  के बाद भी जब वे पद पर बने रहने को राजी नहीं हुए तब पार्टी ने  सोनिया जी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर गाड़ी खींचने का फैसला किया | वह एक तदर्थ व्यवस्था थी , नया अध्यक्ष चुने जाने तक | लेकिन जहां भाजपा और अन्य विपक्षी दल 2024 के आम चुनाव हेतु अपनी रणनीति बनाने में जुट गये  हैं तब कांग्रेस पूर्णकालिक अध्यक्ष से वंचित है | हाल ही  में उदयपुर में आयोजित नव संकल्प और चिंतन शिविर में परिवारवाद से परहेज किये जाने की बात उठी थी | और भी अनेक ऐसे फैसले लिए गए जिनसे लगा कि पार्टी अतीत में की गयी गलतियों को सुधारकर भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए कमर कसेगी | लेकिन उस शिविर के बाद ही सुनील जाखड़ , हार्दिक पटेल और कपिल सिब्बल ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया | राज्यसभा चुनाव के लिए जिस तरह के प्रत्याशियों का चयन पार्टी नेतृत्व ने किया उसकी चौतरफा आलोचना हुई | भाजपा के घोर विरोधी पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों तक ने ये  कहने में लेशमात्र संकोच नहीं किया कि कांग्रेस का भविष्य खतरे में है क्योंकि बजाय  सुधार करने के वह गलतियों को दोहराने पर आमादा है | उच्च सदन के लिए  प्रत्याशी चयन चूंकि गांधी परिवार द्वारा ही किया गया इसलिये वही सबके  निशाने पर आ गया | अनेक राज्यों में पार्टी विधायक पाला न बदल लें  इसलिए उनकी घेराबंदी की गयी है |  लेकिन इस सबके बीच जब पता लगाया गया कि श्री गांधी कहां हैं तब पता चला वे किसी आयोजन में गत माह लंदन गये थे | उनके साथ गए अन्य विपक्षी नेता तो कार्यक्रम के बाद देश आ गये लेकिन श्री गांधी लंबे समय तक वहीं रुके रहे | वैसे भी जब – जब देश में बड़ा  राजनीतिक घटनाक्रम होता है  तब आम तौर पर वे विदेश में ही होते हैं | जहां तक नेशनल हेराल्ड मामले में उनसे पूछताछ होनी है तो वह एक कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है | ई.डी उनसे पूछताछ करना चाह रही है तो उस दौरान पार्टी द्वारा रैली निकालकर शक्ति प्रदर्शन करने का क्या औचित्य है और इससे पार्टी या राहुल को कौन सी संजीवनी मिल जायेगी ये बड़ा सवाल है | यदि वे निर्दोष हैं तो ई.डी अथवा अदालत उन्हें जबरन तो दण्डित करेगी नहीं क्योंकि ये प्रकरण दस्तावेजी प्रमाणों पर आधारित है जिसमें सब कुछ खुला – खुला है और झूठी गवाही जैसी कोई आशंका भी नहीं है | बेहतर हो कांग्रेस अपनी ताकत वहां दिखाए जहां उसकी जरूरत है | गांधी परिवार के निजी मामलों में पार्टी के सांसद और अन्य नेताओं की रैली निकालने का उसका निर्णय परिवार - परिक्रमा से ज्यादा  कुछ  भी साबित नहीं होगा | उ.प्र में कुछ दिनों बाद ही  लोकसभा उपचुनाव होने वाले हैं जिनमें पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला कर अपनी हताशा उजागर कर दी | जबकि  विधानसभा चुनाव में पार्टी की जो दुर्गति हुई उसके बाद जरूरत इस राज्य में ताकत दिखाने की है जहाँ से लोकसभा की 80 सीटें हैं | इस बारे में ये कहना गलत न होगा कि मोदी सरकार की तीखी ज़ुबानी आलोचना करने वाले राहुल ने बीते आठ साल में कांग्रेस की ओर से सरकार के विरोध में एक भी ऐसा प्रदर्शन दिल्ली में नहीं किया जिससे आम जनता को ये लगता कि वे  विपक्ष की भूमिका में अपने दायित्वबोध के प्रति सतर्क हैं  |  इसी उदासीनता का लाभ लेते हुए आम आदमी पार्टी उसके प्रभाव क्षेत्र पर कब्जा करने में सफल हो रही है | हिमाचल और गुजरात विधानसभा के आगामी चुनाव हेतु वह जिस तरह से मोर्चेबंदी कर रही है उससे कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान होना तय है | लेकिन इस सबसे बेखबर पार्टी में दरबारी संस्कृति के पैरोकार गांधी परिवार का महिमामंडन करने में ही जुटे रहते हैं | जी – 23  नामक समूह भले ही अपनी मुहिम में नाकामयाब रहा लेकिन उसने जो मुद्दे उठाये और प्रशांत किशोर ने भी पार्टी को दुबारा उभरने के लिये जो सुझाव दिए उनको नजरंदाज करते हुए पुराने ढर्रे को जारी रखने की गलती पार्टी को लगातार गर्त में ले जा रही  है | ऐसे में श्री गांधी के समर्थन में रैली निकालने से  पार्टी को कोई लाभ नहीं होने वाला |  

- रवीन्द्र वाजपेयी


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