Thursday 2 June 2022

नेशनल हेराल्ड सौदा : नैतिक आधार पर तो गलत लगता है



कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी को प्रवर्तन निदेशालय का समन मिलते ही राजनीति शुरू हो गयी | नेशनल हेराल्ड मामले में पूछताछ हेतु दोनों को बुलावा भेजा गया है | यह प्रकरण लम्बे समय से न्यायालय में  है | भाजपा नेता डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने कांग्रेस के मुखपत्र रहे नेशनल हेराल्ड नामक अखबार की संचालक कंपनी के  अधिग्रहण में  कथित हेराफेरी के लिए जिनको आरोपी बनाया उनमें गांधी परिवार के करीबी पूर्व पत्रकार सुमन दुबे , संचार विशेषज्ञ सैम पित्रोदा , कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे स्व. मोतीलाल वोरा , पूर्व केन्द्रीय मंत्र ऑस्कर फर्नांडीज सहित सोनिया जी और राहुल भी हैं | आरोप ये है कि इन लोगों ने यंग इंडिया लिमिटेड नामक कम्पनी बनाकर नेशनल हेराल्ड  ( अंग्रेजी )  , नवजीवन ( हिन्दी ) और कौमी आवाज ( उर्दू )  अखबारों की मालिक एसोसिएटेड जर्नल लिमटेड को अधिग्रहीत कर लिया | ये अख़बार आजादी के पहले से कांग्रेस पार्टी द्वारा शुरू किये  गये थे | कांग्रेस नेतओं और कार्यकर्ताओं के पास इसके शेयर   भी थे | आजादी के बाद ये अखबार कांग्रेस के मुखपत्र बन गये | नेशनल हेराल्ड के मुख्य पृष्ठ पर सबसे ऊपर जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित वाक्य अंकित रहता था | हालांकि उक्त पत्रों का देश की पत्रकारिता में कोई खास योगदान नहीं रहा लेकिन कांग्रेस का  एकछत्र राज होने से इनके संस्करण अनेक राज्यों की राजधानियों से प्रकशित कर सरकारी जमींने  सस्ती दरों पर प्राप्त  की गईं जिन पर कालान्तर में बड़ी – बड़ी अट्टालिकाएं तानकर व्यवसायिक परिसर बना दिए गये |  कांग्रेस का वर्चस्व पूरे देश पर रहने तक उक्त अखबार सरकारी विज्ञापनों की खुराक पाकर घिसटते रहे लेकिन अंततः 90 करोड़ तक का घाटा हो जाने पर  2008 में उनको बंद कर दिया गया | बाद में यंग इण्डिया नामक कम्पनी ने 2016 में मात्र 50 लाख रु. में  एसोसियेटेड जर्नल लिमिटेड का अधिग्रहण करते हुए उस पर लदे कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी भी ले ली | डा. स्वामी ने इसी बिंदु को पकड़कर आरोप लगाया कि कर्ज चुकाने के नाम पर  मात्र 50 लाख का भुगतान कर श्रीमती गांधी और राहुल के निकटस्थों की कम्पनी ने जिस कम्पनी का अधिग्रहण किया उसकी जो अचल संपत्तियां देश भर में फैली हुई हैं उनका बाजार मूल्य तकरीबन 2000 करोड़ रूपये है | इस तरह 50 लाख देकर अरबों की संपत्ति हासिल कर ली गयी | म.प्र की राजधानी भोपाल में भी उक्त अखबारों के स्वामित्व वाली इमारत महाराणा प्रताप नगर जैसे महंगे व्यवसायिक इलाके में स्थित है |  लखनऊ , दिल्ली और मुम्बई में नेशनल हेराल्ड की जो इमारतें हैं उनकी मौजूदा कीमत 2000 करोड़ से ज्यादा हो  तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये | डा. स्वामी द्वारा इस मामले को अदालत में ले जाए हुए भी लम्बा समय बीत चुका है | कंपनी नियमों में हेराफेरी के साथ राजनीतिक दल के कोष का दुरूपयोग आदि आरोप इस मामले में हैं | उल्लेखनीय है कि यंग इंडिया लिमिटेड के 75 फीसदी शेयर  सोनिया जी  और राहुल के पास हैं | और तो और जिस 50 लाख के भुगतान से उक्त सौदा किया गया वह भी कम्पनी  ने कांग्रेस से इस आधार पर उधार लिए कि अख़बारों को फिर शुरू किया जाना है | ये भी गौरतलब है कि एसोसियेटेड जर्नल लिमिटेड को यंग इण्डिया लिमिटेड द्वारा अधिग्रहीत किये जाने के निर्णय पर देश के पूर्व  कानून मंत्री शांतिभूषण और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डा.मार्कंडेय काटजू ने भी ये कहते हुए आपत्ति जताई कि उनके पास भी उक्त कम्पनी के शेयर  हैं  जो उनके  पिता द्वारा खरीदे गए थे | उस आधार पर कम्पनी का सौदा किये जाते समय उन्हें भी बतौर अंशधारक सूचित किया जाना था किन्तु ऐसा नहीं किया गया | प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसे और भी अंशधारक देश  भर में होंगे जिन्हें इस सौदे का रत्ती भर भी भान नहीं है | कुल मिलाकर मामला आर्थिक गड़बड़ी का है | चूंकि ये न्यायालय में विचाराधीन है अतः इसके वैधानिक परिणाम के बारे में कुछ कहना गलत होगा |  लेकिन सोनिया जी और राहुल के 75 फीसदी शेयर  जिस कम्पनी में  हों उसे कांग्रेस के कोष से 50 लाख रु.  दिया जाना और पार्टी के कोषाध्यक्ष स्व. वोरा जी का इस कम्पनी में निदेशक बन जाना , सवाल खड़े करने के लिए पर्याप्त है | देश के पूर्व कानून मंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की आपतियां भी इस संदेह को बल देती हैं कि दाल में कुछ न कुछ काला तो है | कांग्रेस पार्टी यदि अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित समाचार पत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए ये सब करती तब  उसे सामान्य प्रक्रिया मान  लिया जाता परन्तु श्रीमती गांधी और राहुल के वर्चस्व वाली गैर कारोबारी कम्पनी द्वारा कांग्रेस से धन  लेकर जो व्यवसायिक लेन - देन किया गया वह कानूनन कितना गलत है ये तो अदालत तय करेगी परन्तु नैतिकता और सार्वजनिक जीवन में जिस शुचिता की आवश्यकता  गांधी जी  बताकर गये उसके लिहाज से उक्त सौदा पूरी तरह गलत प्रतीत  होता है | क्योंकि इसके जरिये पार्टी के लिए शुरू किये गए समाचार पत्रों से जुड़ीं सम्पत्ति का तीन-चौथाई स्वामित्व गांधी पारिवार के दो सदस्यों के पास आ गया  | हालांकि 1938 में स्थापित एसोसियेटेड जर्नल लिमिटेड की बेशकीमती संपत्तियों के बारे में आम कांग्रेसजन के साथ ही जनता भी अनजान रही लेकिन डा. स्वामी द्वारा इस सौदे के साथ जुड़ीं  तमाम बातों को सार्वजनिक कर न सिर्फ गांधी परिवार अपितु कांग्रेस को भी कठघरे में ला खड़ा किया | कांग्रेस का ये कहना गलत नहीं है कि इसके एवज में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया  किन्तु इससे प्रकरण का कानूनी पक्ष प्रभावित नहीं होता | प्रवर्तन निदेशालय ने हाल ही में कांग्रेस के नए कोषाध्यक्ष पवन बंसल से भी पूछ्ताछ की थी | श्रीमती गांधी और राहुल को भी उसी सिलसिले में बुलाया गया है जिसे कांग्रेस पार्टी राजनीतिक बदला और  प्रताड़ना बताकर सरकार को घेर रही है | जाहिर है ऐसे मामलों में राजनीति होती है लेकिन जब कानूनी एजेंसी किसी को बुलाये तो उसके पास जाना हर नागरिक का दायित्व है | मामला प्रवर्तन निदेशालय के पास क्यों आया और जिसके पास हजारों प्रकरण लंबित हैं , जैसे सवाल कोई मायने नहीं रखते | यदि श्रीमती गांधी और राहुल को  ये भरोसा है कि उक्त सौदे में कुछ भी  अवैधानिक नहीं है तब उनको बिना डरे पूछ्ताछ हेतु जाना चाहिए | प्रधानमंत्री  बनने के पहले नरेंद्र मोदी भी तो केन्द्रीय जाँच एजेंसी के सामने घंटों बैठकर जवाब दे चुके हैं | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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