Saturday 11 June 2022

नमाज के बाद फसाद : ये कैसा इस्लाम



उ.प्र के कानपुर शहर में जुमे की नमाज से लौटे लोगों की भीड़ द्वारा किये गए दंगे की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि गत दिवस उ.प्र के प्रयागराज , सहारनपुर और मुरादाबाद आदि के अलावा झारखंड के रांची , और प. बंगाल के हावड़ा में भी नमाज से लौट रहे मुस्लिमों की भीड़ ने बेवजह पुलिस पर पत्थर फेंकने के साथ लूटपाट और आगजनी की | इसे सांप्रदायिक दंगा कहना गलत होगा क्योंकि जिन स्थानों पर भी नमाजियों ने फसाद के हालात उत्पन्न किये वहाँ अन्य धर्मावलम्बियों के साथ उनका किसी भी  प्रकार का विवाद नहीं हुआ | हालाँकि हावड़ा में भाजपा का कार्यालय भी जला दिया गया | पुलिस की मौजूदगी ज़ाहिर है एहतियातन ही थी | लेकिन जिस तरह से उसको निशाना बनाया गया उसका कारण समझ से परे है | भाजपा से निलंबित नूपुर शर्मा द्वारा की गयी  टिप्पणी के विरोध में मुस्लिम समुदाय को विरोध का पूरा अधिकार है | वैसे भी देश भर में अनेक स्थानों पर उनके विरुद्ध अपराधिक प्रकरण दर्ज हो चुके हैं | ऐसे में मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि वह प्रतीक्षा करे | बजाय पुलिस पर पत्थर फेंकने , आग लगाने और लूटपाट के जरिये दहशत फैलाने वालों का बचाव करने के देश के मुल्ला – मौलवियों और मुस्लिमों के स्वयंभू नेता बने फिर रहे असदुद्दीन ओवैसी यदि आतंकवादी संगठन  अल कायदा द्वारा भारत में धमाके करने की धमकी  के विरुद्ध मुंह खोलते तब उन्हें साहसी कहा जाता | ध्यान देने लायक बात ये है कि जो बात नूपुर ने कही वह तो सोशल मीडिया पर न जाने कब से प्रसारित की जाती रही है |  लेकिन तब मुसलमानों का गुस्सा नहीं जागा और न ही बैरिस्टर ओवैसी को ध्यान रहा कि उसके विरुद्ध कानूनी कदम उठाये जाते | इसी के साथ ही यू ट्यूब पर अनेक मौलवियों और मुस्लिम वक्ताओं के सैकड़ों  वीडियो उपलब्ध हैं जिनमें हिन्दू देवी – देवताओं के अलावा उनके धार्मिक ग्रन्थों के बारे में अनर्गल बातें कही गईं हैं | लेकिन किसी भी हिन्दू ने तो उनके विरुद्ध हिंसा का सहारा नहीं   लिया | इस्लाम दुनिया के सबसे नए धर्मों में है | उसका इतिहास लगभग 1500 साल पुराना ही है लेकिन उसके धर्माचार्य ऐसा प्रचारित करते हैं मानों दुनिया शुरू ही इस्लाम के आने के बाद हुई हो | अपने धर्म की श्रेष्ठता का प्रचार और उसके उपदेशों का प्रसार पूरी तरह जायज है | दुनिया में जो भी अच्छा विचार है उसका प्रचार – प्रसार धर्म  और देश की सीमाओं से ऊपर उठकर होना चाहिए | लेकिन जिन बातों से वैमनस्य फैलता है उनका तिरस्कार किया जाना भी आवश्यक है | उस दृष्टि से इस्लाम के  मानने वालों को ये  ध्यान रखना होगा कि जिस तरह वे अपने धर्म और उसके महापुरुषों के प्रति आस्था रखते हैं ठीक वैसी ही अन्य धर्मावलम्बी भी | इसलिए जब उन्हें ये अपेक्षा रहती है कि उनकी धार्मिक आस्था के प्रति दूसरे सम्मान और सहिष्णुता का भाव रखें तो इसके एवज में उन्हें भी वैसी ही  सौजन्यता दिखानी होगी | भारत में रहने वाले आम और ख़ास दोनों वर्गों के मुस्लिमों को ये बात साफ़ तौर पर समझ लेनी चाहिए कि ये मोहम्मद गौरी , चंगेज खान और नादिर शाह का दौर नहीं है और न ही ये वह हिन्दुस्तान है जिसे  आतंक के बल पर एक बार फिर बाँटा जा सके  | बेहतर हो मुस्लिम समुदाय के मुल्ला – मौलवी अपनी कौम को बजाय  मरने – मारने   जैसी  बातों  के प्रति उकसाने के इस बात की समझाइश दें  कि नमाज के बाद हिंसा करना इबादत नहीं शरारत है जिसे  कोई समझदार व्यक्ति शायद ही पसंद करेगा | गत दिवस जुमे की नमाज के बाद प्रयागराज के अलावा उ.प्र के कुछ और शहरों सहित अन्य राज्यों में जो कुछ भी  मुसलमानों की भीड़ ने किया उसकी  यदि मुल्ला – मौलवी निंदा नहीं करते तो ये मान लेना गलत न होगा कि वह सब उनकी जानकारी और सहमति से  ही हो रहा है | लेकिन सबसे बड़ा सवाल  है कि ये सब करने से मुसलमानों को हासिल क्या हो रहा है ? उलटे उनके विरुद्ध समाज में नकारात्मक सोच बढ़ती ही जा रही है | मस्जिद से नमाज पढ़कर लौटते व्यक्ति का मन तो शुद्ध और तनावरहित होना चाहिए | लेकिन मस्जिद में जाते समय नमाजी और लौटते समय फसादी का रूप धारण कर लेने वाले मुसलमान कैसे भी हों लेकिन बतौर इंसान उन्हें बेहद घटिया दर्जे का कहा जावेगा | वैसे भी इस तरह की भीड़ में अधिकतर कबाड़ी , मिस्त्री और पंचर जोड़ने वाले तबके के ज्यादा होते हैं  जिनकी अशिक्षा का लाभ लेकर उन्हें बलवा करने के लिए प्रेरित किया जाता है | लेकिन मुस्लिम समाज में जो पढ़ा – लिखा और तथाकथित तरक्की पसंद तबका है , ऐसे फसादों पर उसके मौन रहने  से  ये शक होने लगता है कि इस समुदाय में गलत बात का विरोध करने का साहस किसी में नहीं बचा है | बीते कुछ महीनों में करौली , खरगौन , जहांगीर पुरी , कानपुर और उसके बाद गत दिवस नमाज के बाद विभिन्न शहरों में जिस तरह की घटनाएं हुईं वे किसी धारावाहिक की पटकथा का हिस्सा प्रतीत होती  हैं  | हिन्दुओं के  जुलूस निकलते समय हुए विवाद का दंगे में बदल जाना एक बारगी समझ भी आता है  किन्तु पहले कानपुर और फिर कल नमाज के बाद मस्जिद से निकली भीड़ ने जिस तरह का हिंसक व्यवहार किया वह सरासर आतंकवाद है जिसका उद्देश्य देश की सत्ता को चुनौती देना है | जरूरी हो गया है जब नमाज पढने वालों का रिकॉर्ड  मस्जिद में दर्ज किया  जावे जिससे पता चल सके कि वहां से बाहर निकले किन  लोगों ने दंगा फैलाने का आपराध किया | प. बंगाल और झारखंड में तो गैर भाजपा सरकारें हैं लेकिन उ.प्र की  योगी सरकार का दंगाइयों से निपटने का तरीका पूरी तरह जायज है क्योंकि मजहब के नाम पर अंधे लोगों को प्यार – मोहब्बत की भाषा समझ में नहीं आती | यदि आने वाले जुमे पर भी यही  रवैया रहा तो फिर  मस्जिदों में  नमाज पढने वालों का पंजीयन कर उन्हें पहिचान पत्र  दिया जाना अनिवार्य करना पड़ेगा | वरना पुलिस के साथ ही कानून का पालन करने वाले नागरिकों में निराशा और नाराजगी  बढ़ेगी | इसके पहले कि जुमे की नमाज या अन्य किसी अवसर पर संगठित  पत्थरबाजी , आगजनी , लूटपाट और पुलिस बल पर हमले नियमित गतिविधि का रूप ले लें ,  इस प्रवृति पर ही  बुलडोजर चलाना जरूरी है | कश्मीर घाटी में अंतिम सांस गिन रहा आतंकवाद देश के भीतरी हिस्सों में न फैलने पाए ये देखना आन्तरिक  सुरक्षा के लिए बेहद आवश्यक  है | जिन उपद्रवियों ने पुलिस के जवानों और अधिकारियों को घायल किया है उनको  हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया जाना चाहिये | दरअसल  दंगा महज एक अपराध नहीं अपितु मानसिकता है जिसे कड़ाई से कुचलना जरूरी है | धर्मनिरपेक्ष देश में शांति के साथ नमाज का अधिकार प्रत्येक मुसलमान को है लेकिन फसाद का किसी को भी नहीं |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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