Friday 3 June 2022

अलगाववाद की जड़ें खोदे बिना कश्मीर में चुनाव करवाना नुकसानदेह होगा



 कश्मीर घाटी से आ रही खबरें चिंता पैदा करने वाली हैं | बीते  कुछ दिनों में  जिस तरह से वहां कश्मीरी पंडितों की हत्याएँ हुईं उससे उनमें भय व्याप्त है | शासकीय कार्यालय के कर्मचारी के बाद एक शिक्षिका को जिस तरह गोली मारी गयी उससे   हिन्दुओं में दहशत  है | उल्लेखनीय है धारा 370 हटने के बाद से अनेक पंडित परिवार घाटी में लौट आये जिन्हें अस्थायी आवासों में रखा गया है | लेकिन अनेक ऐसे भी हैं जो या तो अपने घरों में रह रहे हैं या हाल ही में जम्मू क्षेत्र से आकर घाटी   में सरकारी नौकरी कर रहे हैं | आतंकवादियों को ये बात समझ आ चुकी है कि वे बड़ी वारदात को अंजाम शायद नहीं दे सकंगे इसीलिये अब उन्होंने नई शैली अपनाई | उनको इस बात की चिंता है कि यदि हालात सामान्य होते गए तब घाटी में रहने वाले मुस्लिम भी अलगाववाद के आकर्षण से मुक्त होकर आर्थिक विकास के बारे में सोचने लगेंगे | ये कहना गलत नहीं है कि धारा 370 हटने के बाद कश्मीर घाटी के भीतर पाकिस्तान समर्थक तत्वों का सफाया तेजी से हो रहा है | यही कारण है कि बड़ा धमाका  करना उनके लिए संभव नहीं हो पा रहा | इस वर्ष जिस बड़ी संख्या में पर्यटक कश्मीर घाटी पहुंचे उसकी वजह से वहां व्यवसायिक गतिविधियों में तेजी आई और आम कश्मीरी को  दो वर्ष बाद अच्छी – खासी कमाई होने से वह धारा 370 और राज्य की विशेष स्थिति जैसे मुद्दे भूलने लगा | अमरनाथ यात्रा का मौसम भी आ गया | अगस्त 2019 में इस यात्रा के चलते ही धारा 370 हटाये जाने का फैसला संसद में हुआ था और यात्रा बीच में ही रोक दी गई थी | उसके साल भर बाद तक  हालात सामान्य नहीं हो सके और फिर आ गया कोरोना | इस कारण पर्यटन पूरी तरह चौपट होकर रह गया था | इस साल घाटी में सैलानियों की आवक जिस तरह से बढ़ी उससे अलगाववादी काफी परेशान हैं | घाटी के लोगों को संतुष्ट देखकर भी उन्हें अपने भविष्य की चिंता होने लगी है | अमरनाथ यात्रा के लिए न सिर्फ देश भर में उत्साह है अपितु कश्मीर घाटी के लोग भी बेसब्री से उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि यात्रा मार्ग पर रहने वाले स्थानीय लोग यात्रियों से काफी कमाई कर लेते  हैं | इसके अलावा अमरनाथ आने वाले अधिकतर यात्री घाटी के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर भी करते हैं जिससे  वहां के पर्यटन उद्योग को जबरदस्त सहारा  मिल जाता है | सच ये है कि अलगाववादी ताकतों के पास पहले  जैसा ढांचा तो नहीं रहा और न ही उतने हथियार तथा गोला बारूद |  विदेशों से आने वाले धन के रास्ते भी बंद कर दिए गये हैं | इसीलिये अब वे छोटी – छोटी वारदातों के जरिये अपने अस्तित्व का ऐलान करते रहते हैं | उन्हें ये लगता है कि कश्मीरी पंडितों के अलावा  हिन्दुओं के अन्य वर्गों को आतंकित करने से घाटी का जनसँख्या संतुलन मुस्लिमों के पक्ष में ही झुका रहेगा | स्मरणीय है निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होने के बाद घाटी के नेता इस बात से चिंतित हैं कि जम्मू के हिन्दू बहुल इलाके की सीटें बढ़ गईं | उसके अलावा घाटी में कुछ सीटें आरक्षित कर दी गईं जिनमें गुर्जर  समुदाय का वर्चस्व है | इसी के साथ ही देश के विभाजन के समय कश्मीर घाटी में रह रहे जिन सफाई कर्मचारियों को राज्य का नागरिक न मानकर मताधिकार से वंचित कर दिया गया था ,  उन्हें और उनके परिजनों  को  सभी नागरिक सुविधाएं  और अधिकार दे दिए गए | इस वजह से  वे  पहली मर्तबा मत डालेंगे जिससे अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के इर्द - गिर्द घूमती  राजनीति में नए समीकरण जन्म ले सकते हैं | ऐसे में अलगाववादियों का हताश होना स्वाभविक है | गत दिवस जिस बैंक अधिकारी की हत्या की गयी वह राजस्थान का रहने वाला था | इसके अलावा बिहार और पंजाब से आकर काम  कर रहे एक – एक मजदूर को भी मौत के घाट उतारकर ये एहसास करवाने का प्रयास किया गया कि घाटी में केवल मुस्लिम ही बर्दाश्त किये जायेंगे | दरअसल ये एक तरह की मनोवैज्ञानिक लड़ाई है | लेकिन ध्यान देने  योग्य बात ये है कि जिन दफ्तरों में हिन्दू कर्मचारी कार्यरत हैं वहां के मुस्लिम सहकर्मी भी ह्त्या जैसी घटना के बाद खामोशी धारण कर लेते हैं | ये प्रवृत्ति  घाटी के नेताओं की उस बात के सर्वथा विपरीत है कि पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है | हाल ही  में जो हत्याएं हुईं उन्हें यासीन मलिक को आजीवन कारावास दिए जाने की रोषपूर्ण प्रातिक्रिया भी माना जा रहा है | लेकिन घाटी में रहने वाले पंडित और अन्य हिन्दू जिस तरह घाटी छोड़ने पर आमादा हैं और हिन्दू शासकीय  कर्मचारी अपना तबादला जम्मू क्षेत्र में करने का दबाव बना रहे हैं उसकी वजह से अलगाववादियों का हौसला बढ़ रहा है | अनेक छोटे शहरों और कस्बों में हत्या जैसी  घटना न होने के बावजूद हिन्दू सामान लेकर जम्मू की  तरफ कूच करते देखे जा रहे हैं | उनको रोकने के लिए न फारुख अब्दुल्ला आये और न ही महबूबा मुफ्ती | घाटी में  भाजपा का प्रभाव भी कम है | उससे जुड़े कुछ पंचों और सरपंचों की जिस तरह से ह्त्या कर दी गई उससे बाकी  भी डरे  बैठे हैं | केंद्र सरकार स्थिति से निपटने के लिए जिस तरह लगातार उच्चस्तरीय बैठकें कर रही है उससे लगता  है जल्द ही आतंकवाद के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई की जावेगी  | लेकिन उसके बाद भी  जब तक घाटी में हिन्दुओं के सुरक्षित रहने की अचूक  व्यवस्था नहीं  हो जाती तब तक कश्मीर विधानसभा के चुनाव करवाने में जल्दबाजी नहीं करना चाहिए क्योंकि वैसा होने पर कुछ  सीटों पर देश विरोधी तत्वों का जीतकर आना तय है  और तब वे अपनी संवैधानिक स्थिति का लाभ उठाकर अलगाववादियों को संरक्षण और सहायता देने में सक्षम हो जायेंगे | कश्मीर घाटी के मौजूदा हालात देश विरोधी ताकतों की हताशा का परिचायक हैं | केंद्र सरकार को चुनाव प्रक्रिया शुरू करने से पहले अलगाववादी  ताकतों के ताबूत  में आखिरी कील ठोकने का काम करना चाहिए क्योंकि उसके बिना घाटी में शांति नहीं आ सकेगी |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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