Saturday 4 June 2022

कानपुर दंगा : विधानसभा चुनाव में हार की खीझ का परिणाम



ऐसे समय जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कानपुर के समीप स्थित अपने गृहग्राम के प्रवास पर हों और प्रधानमन्त्री तथा मुख्यमंत्री भी उनके साथ थे , तभी कानपुर में सामप्रदायिक तनाव उत्पन्न हो गया जिसे दंगा कहना गलत न होगा |  एक भाजपा नेत्री की टिप्पणी के विरोध में बाजार बंद करवाने पर हुए  विवाद ने सांप्रदायिक तनाव का रूप ले लिया | और उसके बाद वही सब हुआ जो बीते कुछ महीनों में देश के अनेक हिस्सों में देखने मिला | उ.प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना के बाद देर रात प्रशासन की  बैठक में  दंगाइयों के घरों पर बुलडोजर चलाने के निर्देश जारी कर दिए | उपद्रवियों की पहिचान की जा रही है लेकिन पत्थरबाजी करने वाले अनेक युवकों ने उससे बचने के लिए अपना चेहरा ढंक रखा था | इससे ये साफ़ हो जाता है कि दंगा आकस्मिक न होकर पूर्व नियोजित था | प्राप्त जानकारी के मुताबिक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में  भाजपा नेत्री के बयान के विरोध में जब दुकानें बंद करवाने के लिए जबरदस्ती की गयी तब उससे  पैदा हुआ विवाद  सांप्रदायिक  दंगे में बदल गया | वैसे बात उतनी बड़ी थी नहीं जितनी बना दी गयी | ऐसा लगता है उ.प्र में योगी आदित्यनाथ के दोबारा मुख्यमंत्री बनने से उन मुल्ला – मौलवियों का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है जो मानकर बैठे थे कि अखिलेश यादव की सरकार आने वाली है और उनके सुनहरे दिन लौट आयेंगे | विधानसभा चुनाव में  'बाबा तो गयो' का नारा भी खूब सुनाई देता रहा | दूसरी तरफ भाजपा ये कहते हुए वोट मांगती रही कि पांच वर्षीय योगी राज में एक भी दंगा नहीं हुआ और गुंडे – बदमाशों को पकड़कर सीखंचों के पीछे  भेज दिया गया | कुछ दुर्दांत अपराधी एनकाउन्टर में मारे भी गये | इस कारण अपराधों के लिये कुख्यात उ.प्र में  क़ानून व्यवस्था जिस चमत्कारिक ढंग से सुधरी उसने भाजपा को  विधानसभा चुनाव जिताने में बहुत  बड़ा योगदान दिया | हालाँकि  समाजवादी पार्टी ने भाजपा और विशेष रूप से योगी  आदित्यनाथ की कट्टर हिन्दू छवि को आधार बनाकर मुस्लिम  समुदाय का जबरदस्त ध्रुवीकरण अपने पक्ष में किया था | आम बातचीत तक में मुस्लिम मतदाता भाजपा को कोसते और अखिलेश की तारीफ में कसीदे पढ़ते सुने जा सकते थे | दरअसल किसान आन्दोलन के कारण पश्चिमी उ.प्र के जाट समुदाय के मन में भाजपा से नाराजगी के कारण लोकदल नेता जयंत चौधरी और अखिलेश यादव के बीच जो चुनावी गठबंधन हुआ उससे मुस्लिम समुदाय के ठेकेदारों को ये विश्वास हो गया कि योगी  सरकार चलाचली की बेला में है और इसीलिये वे खुलकर उसके विरोध में आ गये | लेकिन दांव उल्टा पड़ गया और न सिर्फ पश्चिमी अपितु उ.प्र के सभी हिस्सों में भाजपा को खासी सफलता  मिली | हालाँकि सपा के मत प्रतिशत और सीटों में काफी  वृद्धि भी हुई लेकिन ले - देकर सुविधाजनक बहुमत के साथ योगी सत्ता में लौट आये | इस कारण सपा तो खिसियाई है ही लेकिन मुस्लिम समुदाय की रहनुमाई करने वालों के पेट का मरोड़ रुकने का नाम नहीं ले रहा | इसी बीच वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का प्रकरण गर्माने से मुस्लिम समुदाय की बेचैनी और बढ़ गई | जिस तरह से कानपूर के बेकनगंज थाने के यतीम बाजार इलाके में गत दिवस जुमे की  नमाज के बाद लौट रही भीड़ ने दुकानें बंद कराने के लिए उपद्रव शुरू करते हुए पत्थरबाजी की , उसे देखने के बाद ये कहना  गलत नहीं है कि एक भाजपा नेत्री द्वारा टीवी चैनल पर बहस के दौरान की गई टिप्पणी को बहाना बनाकर ये दंगा किया गया | मुस्लिम समुदाय इस बात को अच्छी तरह जानता था कि राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कानपुर  से महज 50 किमी दूर हैं | ज़ाहिर है ऐसे अवसरों पर प्रशासन और पुलिस का ध्यान अति विशिष्ट हस्तियों की व्यवस्था पर लगा रहा होगा | इसीलिये अवसर का लाभ लेकर दंगे के हालात बना दिये गए | ध्यान देने योग्य है कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद अदालत में है  जिसे  लेकर दोनों समुदायों द्वारा ये आश्वासन दिया जा चुका है कि अदालत के फैसले को स्वीकार करेंगे | हाल ही में देश भर के उलेमाओं के देवबंद सम्मेलन में ही  ये तय किया गया था कि मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतरने से परहेज करेगा | यहाँ तक कि वाराणसी शहर तक में किसी भी प्रकार का विवाद देखने नहीं मिला |  काशी विश्वनाथ मंदिर तथा ज्ञानवापी मस्जिद दोनों जगह धार्मिक क्रियाकलाप  पूर्ववत जारी हैं | वाराणसी में सांप्रदायिक सौहाद्र भी बना हुआ है | ऐसे में देवबंद सम्मलेन में की गई अपील के बाद कानपुर में नमाज के बाद लौट रही  भीड़ जिस प्रकार हिंसा पर उतारू हुई, वह तात्कालिक प्रतिक्रिया न होकर सुनियोजित प्रतीत होती है | घटना के बाद जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार इस दंगे की तैयारी बीते अनेक दिनों से हो रही थी | ऐसे में ये गुप्तचर एजेंसी की भी विफलता है | आम तौर पर जब राष्ट्पति या प्रधानमंत्री जैसी हस्तियाँ कहीं जाती है तो  ख़ुफ़िया तंत्र ये पता लगाता है कि उस दौरान किसी  अप्रिय घटना की आशंका तो नहीं है जिसकी वजह से उनकी सुरक्षा खतरे में पड़े | और यहाँ तो कानपुर के समीप  देश और प्रदेश की वे हस्तियाँ एक साथ उपस्थित थीं जिन्हें सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा हासिल है | ऐसे में इस दंगे के पीछे  बड़ी साजिश के होने से इंकार नहीं किया जा सकता | मुस्लिम समुदाय के जिम्मेदार लोगों और मुल्ला – मौलवियों को सामने आकर इस दंगे की खुलकर आलोचना करते हुए कसूरवारों की पहिचान करने में प्रशासन की मदद करनी चाहिए । अन्यथा पूरी बिरादरी पर संदेह की सुई लटकती रहेगी | इस तरह की घटनाओं में सभी मुस्लिम शामिल भले न हों किन्तु करौली , खरगौन और जहांगीरपुरी के दंगों में पत्थरबाजी का एक जैसा तरीका बहुत कुछ कह जाता है | और वैसी ही पत्थरबाजी कानपुर में भी हुई | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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