Friday 17 June 2022

बुलडोजर गैरकानूनी तो पत्थरबाजी किस कानून का हिस्सा है ?



 मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा – ए – हिन्द की ओर से  प्रस्तुत की गई याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उ.प्र में दंगाइयों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाये जाने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया | हालाँकि अदालत ने राज्य सरकर को बुलडोजर रूपी कार्रवाई को कानून सम्मत और निष्पक्ष रखने की हिदायत देते हुए  तीन दिनों में जवाब पेश करने कहा है | याचिका में इस बार पर आपत्ति की गयी है कि उपद्रव के नाम पर उ.प्र सरकार बिना नोटिस दिए अचल संपत्ति को जमींदोज कर रही है | और ये भी कि अवैध निर्माण तोड़ना स्थानीय निकाय का काम है , न कि राज्य सरकार का | दूसरी  तरफ सरकार की तरफ से कहा गया कि जिन संपत्तियों पर बुलडोजर चलाये गए उन्हें हालिया दंगों के पूर्व ही सम्बंधित स्थानीय निकाय द्वारा नोटिस दिए जा चुके थे | तीन दिन बाद सरकार का उत्तर आने पर  अदालत का रुख पता चलेगा | इस बारे में ये कहना पूरी तरह सही है कि किसी का भी  मकान या अन्य अचल संपत्ति तोड़ने के पहले कानून का पालन किया जाना जरूरी है | अन्यथा प्रशासनिक अराजकता का बोलबाला हो जायेगा | लेकिन दूसरी तरफ ये भी  सही है कि जिस तरह से पत्थरबाजी को पुलिस और सरकार के विरुद्ध बतौर हथियार उपयोग किये जाने का चलन बढ़ रहा है , यदि उसे न रोका गया तो कश्मीर घाटी जैसे खतरनाक हालात पूरे देश में पैदा होना सुनिश्चित है | इस बारे में ये बात ध्यान रखनी होगी कि कश्मीर में अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता स्व. सैयद अली शाह जिलानी ने घाटी के बेरोजगार नौजवानों को पैसे देकर पत्थर फेंकने के काम में झोंका | बाद में लड़कियां भी उसमें शामिल होने लगीं | सुरक्षा बलों द्वारा किसी आतंकवादी को घेर लिए जाने पर पत्थरबाज उनके काम में व्यवधान पैदा करते हुए ये प्रयास करते थे कि आतंकवादी सुरक्षित भाग जाएँ | इसी तरह सैन्य टुकड़ियों पर पथराव कर उनकी गश्त में बाधा डालने का सुनियोजित अभियान लम्बे समय तक चला | मानवीयता के आधार पर सुरक्षा बलों को बहुत ज्यादा मजबूरी  में ही गोली चलाने के निर्देश थे | इस कारण पत्थरबाज बेखौफ होने लगे | इस पर पैलेट गन का प्रयोग किया जाने लगा जिससे निकलने वाले छर्रे उपद्रवियों को घायल तो करते किन्तु उनकी जान बच जाती थी | पैलेट गन का उपयोग काफी कारगर रहा क्योंकि उसकी वजह से हजारों उपद्रवी शारीरिक तौर पर कमजोर हुए और कुछ विकलांगता के शिकार भी | उसके विरुद्ध  सर्वोच्च न्यायालय में राज्य की  बार कौंसिल द्वारा गुहार लगाई गई जिस पर न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि वह  सरकार को इस बारे में निर्देश दे सकता है बशर्ते पत्थरबाजी रुके | केंद्र सरकार ने उस मामले में पैलेट गन को अंतिम विकल्प बताया था | उ.प्र सहित अनेक राज्यों में हालिया दंगों के दौरान जिस तरह से पुलिस बल पर पत्थरबाजी की गई वह हूबहू कश्मीर घाटी की याद दिलाने वाली है | लेकिन वहाँ के  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी देखादेखी म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी   दंगे के बाद बुलडोजर का इस्तेमाल करते हुए दंगाइयों और उनके सरपरस्तों के आशियाने ढहाने शुरू किये तो उपद्रवी तत्वों खास तौर पर मुस्लिम समुदाय में खलबली मच  गयी | यहीं नहीं तो मुस्लिम  वोटों के लालची राजनेताओं को  भी बुलडोजर के उपयोग में तानशाही और योगी में हिटलर नजर आने लगे | लेकिन अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो किसी भी मुस्लिम संगठन और धर्मगुरु के अलावा ओवैसी जैसे मुसलमानों के नये – नये रहनुमा ने इस पत्थरबाजी के विरुद्ध जुबान नहीं खोली | लेकिन जब दंगाइयों को  प्रोत्साहन तथा संरक्षण देने वाले माफिया सरगनाओं के निर्माणों को ध्वस्त किया जाने लगा तो छाती पीटकर मातम मनाने का सिलसिला शुरू हो गया | देश के अधिकतर राजनीतिक दल महज इसलिए बुलडोजर के उपयोग का विरोध करने आगे – आगे आ रहे हैं क्योंकि उसकी चपेट में आये ज्यादतार लोग मुस्लिम समुदाय से थे | लेकिन ये वर्ग इस हकीकत से आँख मूँद लेता है कि मस्जिदों से नमाज पढ़कर निकली मुस्लिमों की भीड़ ने ही अकारण पत्थरबाजी , लूटपाट और आगजनी को अंजाम दिया | ये बात सही है कि हमारे देश में जनांदोलनों के साथ हिंसा अनिवार्य रूप से जुडती जा रही है | चाहे आरक्षण का आन्दोलन हो या किसानों का , उसमें किसी न किसी रूप में हिंसा हो ही गई | बीते  दो दिनों से सेना में भर्ती हेतु शुरू की जा रही अग्निपथ योजना के विरोध में भी जो आन्दोलन देश के अनेक हिस्सों में हो रहे हैं उनमें भी हिंसा , तोड़फोड़ , आगजनी की  जा रही है | सेना जैसी अनुशासित संस्था में भर्ती होने के इच्छुक नवयुवक यदि कानून की धज्जियां उड़ायेंगे तो फिर वे सैनिक  बनने का दावा किस मुंह से करेंगे ? ये देखते हुए  जनादोलनों अथवा विरोध प्रदर्शनों की भी आचार संहिता बननी चाहिए जिसका उल्लंघन करने वालों को कड़ा दंड दिया जावे | वरना पटेल , जाट , गुर्जर और मराठा आरक्षण के दौरान अरबों – खरबों  के सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के जिम्मेदार नेता बाद में किसी राजनीतिक दल में घुसकर बेदाग़ बरी होते रहेंगे  | ताजा उदाहरण हार्दिक पटेल का है | फिर भी  मुस्लिम समाज का ये आरोप गलत  है कि बुलड़ोजर के जरिये उनको धमकाया जा रहा है क्योंकि  अनेक गैर मुसलमान अपराधियों की संपत्ति भी इसके जरिये ध्वस्त की गयी है | सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में क्या फैसला करता है ये देखने वाली बात होगी क्योंकि दंगा या उस जैसी किसी भी घटना को अंजाम देने वाले समाज विरोधी तत्वों को  प्यार और दुलार की भाषा समझ में नहीं आती | इसलिए पुलिस पर बेवजह पत्थरबाजी करने और करवाने वालों के घरों को ही नहीं अपितु मंसूबों को भी ध्वस्त करना देश हित में आवश्यक है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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