Tuesday 28 June 2022

नशामुक्त गाँव : कल्पना तो अच्छी है लेकिन ....



म.प्र के  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जनता से सीधा जुडाव ही उनकी राजनीतिक सफलता का आधार है | समाज के सभी वर्गों से वे समय – समय पर जिस प्रकार संवाद करते हैं उसका बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है |  गत दिवस उन्होंने  प्रदेश भर में निर्विरोध जीतकर आये पंचों और सरपंचों का भोपाल में स्वागत किया और उनसे ग्रामीण  क्षेत्रों की समरस पंचायतों  में नशा मुक्ति हेतु सार्थक प्रयास करने कहा | इसके लिए उन्होंने आपससी बातचीत और प्रेरणास्पद आयोजनों की सलाह देते हुए आश्वासन दिया कि पूरी तरह नशामुक्त गाँव को दो लाख का पुरस्कार दिया जावेगा | श्री चौहान के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री उमाश्री भारती भी शराब की बिक्री के विरुद्ध बेहद आक्रामक हैं | कुछ  दुकानों में  तो वे तोड़फोड़ तक कर चुकी हैं | उनके द्वारा चलाये जा रहे शराब बंदी आन्दोलन को हालाँकि भाजपा की तरफ से किसी भी प्रकार का समर्थन  नहीं मिला परन्तु  तोड़फोड़ पर उनके विरुद्ध किसी भी तरह की कार्रवाई भी नहीं की गई | उमाश्री इस बारे में श्री चौहान से भेंट भी कर चुकी हैं | मुख्यमंत्री ने भी सैद्धांतिक तौर पर उनकी मांग को उचित तो माना लेकिन जहां बात राजस्व की आ जाती है वहां बाकी बातें भुला दी जाती हैं | शिवराज सिंह स्वयं बड़े ही सात्विक और आध्यात्मिक अभिरुचि के व्यक्ति हैं | लेकिन बतौर मुख्यमंत्री उनके लिए शराब बिकवाना मजबूरी है क्योंकि इससे प्रतिदिन करोड़ों की  जो आय होती है वह सरकार के खजाने को भरती है  | अरबों के कर्ज में डूबी राज्य सरकार यदि शराब की बिक्री रोक दे तो उसके पास दैनिक खर्च चलाने तक के लिए धन नहीं रहेगा | ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा नशामुक्त  ग्राम को दो लाख का पुरस्कार देने की योजना सतही तौर पर देखने में तो बहुत ही नेक लग रही है और इसका कुछ न कुछ असर तो पड़ेगा ही किन्तु जिन राज्यों में शराब बंदी है वहां भी चोरी – छिपे शराब की बिक्री होती है | ज्यादा बंदिश होने पर पीने के शौक़ीन पड़ोसी राज्य में जाकर गला तर कर आते हैं | आजकल आवागमन के पर्याप्त साधन होने से गाँव और शहर की दूरी कम हो गई है | ऐसे में किसी ग्राम विशेष को पूरी तरह से नशामुक्त्त करने की अपेक्षा पूरी होना आसान नहीं है | बावजूद इसके मुख्यमंत्री द्वारा पंचायतों के प्रतिनिधियों को दिया प्रस्ताव गुणात्मक दृष्टि से स्वीकार करने योग्य है | ये बात सौ फीसदी सच है कि शराबखोरी के मामले में अब गाँव और शहर में विशेष अंतर नहीं रहा | विशेष रूप से मनरेगा शुरू होने के बाद से तो ग्रामीण इलाकों में शराब की बिक्री में बेतहाशा वृद्धि हुई है | यहाँ तक कि जिस आदिवासी समुदाय को अपने उपभोग हेतु कच्ची शराब बनाने की  अनुमति है वह भी दूकान से खरीदकर पीने का आदी होता जा रहा है | मनरेगा के अंतर्गत मिलने वाला पारिश्रमिक चूँकि नगद होता है लिहाजा पीने वालों को सुविधा हो जाती है | लेकिन उनकी शराबखोरी परिवार वालों पर बहुत  भारी पड़ती है | घरेलू हिंसा और महिलाओं के उत्पीडन के पीछे शराब भी बड़ा कारण है | उस दृष्टि से श्री चौहान ने बहुत ही सही सलाह दी है किन्तु इसका पालन करने के लिए  केवल पंच और सरपंच ही काफी नहीं हैं | दरअसल  हमारे देश की चुनाव प्रणाली इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि  नशामुक्ति अभियान शुरू करने का नैतिक साहस खो चुके हैं | इसका एक कारण ये भी है कि पंचायत चुनाव में भी शराब बांटने का काम  बड़े पैमाने पर होता है | ऐसे में शराबखोरी के बल पर चुनाव जीतकर आया जनप्रतिनिधि किस मुंह से पियक्कड़ों से शराब छोड़ने की बात कहेगा ? मुख्यमंत्री द्वारा नशामुक्त ग्राम को दो लाख रूपये बतौर पुरस्कार देने का जो प्रस्ताव दिया वह भी फर्जी आंकड़ों के जाल में फंसकर न रह जाए ये देखना जरूरी है क्योंकि पंचायती राज आने के बाद भ्रष्टाचार की जड़ें देश  की राजधानी से गाँव की चौपालों तक में फ़ैल चुकी हैं | और यही कारण है कि प्रदेश और केंद्र सरकार की अनेक जनकल्याणकारी योजनायें कागजों में सिमटकर रह गईं हैं और उनके लिए आया धन नेता और नौकरशाहों की जेब में चला गया | पंचायत चुनाव लड़ने वाले जिस तरह से पैसा खर्च करते हैं उसके कारण जीते हुए जनप्रतिनिधि से नैतिकता और आदर्श की उम्मीद करना बेमानी लगता है | शहरों में भी कमोबेश यही स्थिति है | शराब माफिया सत्ता प्रतिष्ठान के सिर पर सवार होकर धड़ल्ले से वैध – अवैध काम करता है | उसे संरक्षण देने वालों में पक्ष और विपक्ष दोनों शामिल हैं | शराब दूकानों में कहीं खुलकर और कहीं परदे के पीछे से नेताओं की हिस्सेदारी के चलते शासन और प्रशासन कोई कार्रवाई करने के पहले दसियों बार सोचते हैं | दूकानों को खोलने के लिए बनाये गए नियमों की धज्जियां भी खुलकर उडाई जाती है | अनेक दूकानों में तो पुलिस और प्रशासन से जुड़े लोगों की अघोषित भागीदारी होने से उन्हें  अभयदान मिल जाता है | आबकारी विभाग सरकार के सबसे बेईमान महकमों में माना जाता है | इसलिए शराब के कारोबार में होने वाला भ्रष्टाचार बेरोकटोक चला करता है | ऐसे में मुख्यमंत्री  द्वारा पंचायत प्रतिनिधियों से नशा मुक्त ग्राम बनाने का जो  आह्वान किया गया है वह तभी पूरा हो सकेगा जब पंचायतों में चुनकर आये पंच – सरपंच पूरी तरह से ईमानदार और नैतिकता के प्रति समर्पित हों | आज तो आलम ये है कि प्रधानमंत्री  आवास योजना की राशि स्वीकृत करने में भी पंचायत के पंच – सरपंच धडल्ले से कमीशन खाते हैं | यद्यपि मुख्यमंत्री ने बहुत ही सामयिक प्रस्ताव दिया है किन्तु उसे मूर्तरूप देने के लिए उन्हें खुद होकर आगे आना पड़ेगा क्योंकि राजनीति चाहे शहर की हो या गाँव की , उसका शराब के साथ नजदीकी रिश्ता बन गया है | ग्रामीण क्षेत्रों में शराब दूकानों  और पीने वालों  की संख्या में निरंतर वृद्धि राजनीतिक न होकर सामाजिक समस्या है | ग्रामीण इलाकों में भी जिस तेजी से शराब को सामाजिक स्वीकृति मिलने लगी है उसे देखते हुए नशा मुक्त गाँव की कल्पना निश्चित रूप से बड़ी चुनौती  है | मुख्यमंत्री के ईनामी प्रस्ताव को  पंचायत प्रतिनिधियों का कितना समर्थन मिलता है ये देखने वाली बात होगी क्योंकि शराबखोरी रोकना जहां सामाजिक तौर पर जरूरी है वहीं दूसरी ओर शराब सरकारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन चुकी है |   

-रवीन्द्र वाजपेयी



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