Monday 28 May 2018

21 वीं सदी भारत की तभी होगी जब ..........

गत दिवस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो विश्वस्तरीय सड़कों का लोकार्पण किया। दिल्ली से मेरठ तक बन रहे हाइवे के पहले चरण के साथ ही 135 किमी लम्बे ईस्टर्न पैरिफेरल एक्सप्रेस वे को जनता को समर्पित कर दिया। पहली सड़क के पूरा होने पर जहां दिल्ली से मेरठ की दूरी महज 40 मिनिट में पूरी की जा सकेगी वहीं दूसरे एक्सप्रेस वे के शुरू हो जाने के बाद हरियाणा से दिल्ली होते हुए उप्र जाने वाले वाहन बाहर-बाहर निकल जाएंगे। इससे दिल्ली में प्रतिदिन अनुमानित 50 हजार वाहनों की आवाजाही रुकेगी जो यातायात और प्रदूषण की समस्या से निजात दिलवाने में सहायक बनेगी। महत्वपूर्ण बात ये है कि इनका निर्माण समय सीमा के पहले ही कर लिया गया। उनकी विशेषताओं और उपलब्ध सुविधाओं के बारे में समाचार माध्यम काफी कुछ बता चुके हैं जिनसे लगता है कि दोनों हाइवे वाकई 21 वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक बने होंगे। लोकार्पण के समय को लेकर भी काफी बवाल मचा। दिल्ली-मेरठ हाईवे पर श्री मोदी ने जो रोड शो गत दिवस किया उसे उप्र की कैराना लोकसभा सीट पर आज हो रहे उपचुनाव के मतदान से जोड़कर देखा जा रहा है। यद्यपि प्रधानमन्त्री वहां चुनाव प्रचार हेतु नहीं गए किन्तु पड़ोसी बागपत क्षेत्र में आयोजित उनकी विशाल जनसभा के पीछे कैराना का उपचुनाव ही था। इसी तरह ईस्टर्न पैरिफेरल एक्सप्रेस वे का लोकार्पण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई लताड़ के कारण एक जून के पूर्व करना पड़ा। बावजूद इसके ये तो मानना ही पड़ेगा कि राष्ट्रीय राजधानी के निकटवर्ती शहरों तक जाने वालों के लिए उक्त दोनों हाईवे एक सौगात की तरह हैं। 135 किमी लम्बे एक्सप्रेस वे पर वाहनों को 120 किमी प्रति घन्टा की गति से चलाया जा सकेगा। ये दूरी महज 70 मिनिट में तय की जा सकेगी जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह किस स्तर का है। इस प्रकल्प को निर्धारित समय सीमा के पहले तैयार करने के लिए मोदी सरकार के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी बधाई के हकदार हैं। देश में विश्वस्तरीय राजमार्गों का विकास करने के अभियान को सफलतापूर्वक संचालित करने में श्री गडकरी जिस तरह रुचि लेकर काम कर रहे हैं उसकी तो विरोधी भी प्रशंसा करते हैं। महाराष्ट्र में लोक निर्माण मंत्री रहते हुए उन्होनें मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे का प्रकल्प भी अनुमानित राशि से क़म खर्च तथा समय सीमा से पहले बनवाकर पूरे देश में प्रसिद्धि और प्रशंसा अर्जित की थी। मुंबई में सी लिंक नामक मार्ग भी उन्हीं की परिकल्पना थी। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे का काम भी एक दो दिन में शुरू करने की घोषणा उन्होंने की है। इसके बन जाने पर राष्ट्रीय राजधानी से आर्थिक राजधानी तक महज 12 घण्टे में पहुंचा जा सकेगा। आज़ादी के सात दशक व्यतीत हो जाने के बाद भी देश में अच्छे हाइवे न बना पाना इस बात का प्रमाण है कि मूलभत अधोसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास के प्रति कितनी उदासीनता बरती जाती रही। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनते ही न सिर्फ  राष्ट्रीय राजमार्गों अपितु ग्रामीण क्षेत्रों तक पक्की सड़कें बनवाने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। स्वर्णिम चतुर्भुज नामक प्रकल्प के जरिये देश के सभी हिस्सों को एक दूसरे से जोडऩे का कार्य बहुत बड़ा निर्णय था। ये कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिये कि उनकी सरकार के बाद वह कार्य ढीला पड़ गया वरना 10 सालों में मनमोहन सरकार देश भर में उच्च स्तरीय राजमार्गों का निर्माण पूरा कर सकती थी। मोदी सरकार ने इस दिशा में कदम उठाते हुए तेजी से काम प्रारम्भ किया। श्री गड़करी सदृृश अनुभवी और कार्यकुशल मंत्री को परिवहन विभाग सौंपना निश्चित तौर पर एक बुद्धिमत्ता भरा फैसला था जिसके सुपरिणाम सामने आने लगे हैं। आर्थिक मंदी के दुष्प्रभाव के बावजूद यदि विकास दर 7 फीसदी को छू सकी तो उसमें अधोसंरचना सम्बन्धी प्रकल्पों की बड़ी भूमिका है। रही बात राजनीतिक नफे-नुकसान की तो बेहतर यही होता है कि विकास के किसी भी काम को केवल राष्ट्रहित के नजरिये से देखा जाए। और सड़क, बिजली, पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों पर सरकार बदलने का असर न हो। प्राथमिकताएँ भले ही बदल जाएं लेकिन आधारभूत ढांचे की लेकर विद्वेष, असंतुलन और पक्षपात नहीं होना चाहिए क्योंकि उनसे किसी एक विचारधारा या धर्म का व्यक्ति प्रभावित न होकर देश के हर नागरिक को लाभ मिलता है। बिना लाग-लपेट के कहा जा सकता है कि इन सब में किये गये दुर्लक्ष्य की वजह से भारत पश्चिम के विकसित देशों को तो छोड़ दें एशिया के ही अनेक छोटे-छोटे देशों तक से पिछड़ गया। यदि वाजपेयी सरकार के बाद बनी यूपीए की सत्ता ने भी राष्ट्रीय राजमार्गों सहित फ्लायओवर आदि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी होती तब दिल्ली के ईर्दगिर्द कल लोकार्पित एक्सप्रेस हाईवे कभी के बन चुके होते। यद्यपि डॉ. मनमोहन सिंह को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि बतौर वित्त मंत्री उन्होंने अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ ही अधोसंरचना के महत्व को देश के सामने रखा। लेकिन प्रधानमंत्री बनने पर पहले कार्यकाल में उनकी सरकार जहाँ  वामपंथियों के दबाव में रही वहीं दूसरी पारी आते तक घपले-घोटालों के चलते अनिर्णय में उलझकर रह गई। मोदी सरकार ने पहले दिन से ही रुके हुए काम तो शुरू करवाए ही वहीं पूरे देश में नए उच्चस्तरीय राजमार्गों के प्रकल्प भी प्रारंभ किए। पूर्वोत्तर राज्यों में सड़कों का जाल बिछाना देश की एकता और अखंडता के मदद्देनजऱ बड़ी आवश्यकता थी। अरुणाचल में चीन के खतरे की वजह से सड़कों का उन्नयन जरूरी था। उधर म्यांमार (बर्मा) तक सड़क पहुंचाने से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों तक आवागमन सुलभ हो जाने की स्थिति में हमारा व्यापार उन देशों से बढ़ जाएगा। यद्यपि देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है जिसकी नजर में एक्सप्रेस हाईवे जैसे प्रकल्प पूंजीवादी सोच से प्रभावित हैं। जिस देश में रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी जरूरत से करोड़ों जन वंचित हों वहां विकसित देशों की तर्ज पर एक्सप्रेस हाईवे बनाने को फिजूलखर्ची मानने वाले भी कम नहीं हैं। वाजपेयी सरकार जब स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना लेकर आई तब सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने ये कहकर उसका मजाक उड़ाया था कि वह बहुराष्ट्रीय ऑटोमोबाइल  कंपनियों की मंहगी कारों की बिक्री बढ़ाने के लिए थी। हालांकि बाद में उन्हीं के विदेश शिक्षित पुत्र अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते यमुना एक्सप्रेस हाईवे बनवाकर स्वयं को विकास पुरुष साबित करवाने हेतु खूब ढिंढोरा पीटा। इससे सिद्ध होता है कि बुनियादी ढांचे के विकास का विरोध महज दिखावा है। देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जरूरी है इस तरह के काम निश्चित समय सीमा में पूरे किए जाएं। इनसे अर्थव्यव्यस्था गतिशील होने के साथ ही रोजग़ार का सृजन भी होता है। परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ऐसे दूरदर्शी राजनेता हैं जो केवल स्वप्न नहीं देखते अपितु उन्हें साकार भी करते हैं। इस सम्बंध में उल्लेखनीय है कि गांवों तक सड़कों का जाल बिछाने जैसा ऐतिहासिक कार्य शुरू करने के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को मतदाताओं ने फिर अवसर नहीं दिया लेकिन उसकी वजह से विकास संबंधी मूलभूत काम रोक दिये जाएं ये देश के किये अच्छा नहीं होगा। कल प्रधानमंत्री ने जिन दो अत्याधुनिक सुविधायुक्त हाईवे का लोकार्पण किया वे विकास के जीवंत स्मारक हैं। सरकारें आती-जाती रहेंगी लेकिन विकास के पहिये नहीं रुकना चाहिए। 21 वीं सदी भारत की तभी बनेगी जब हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर तेज गति से चल ही नहीं दौड़ भी सकें।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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