Thursday 3 May 2018

प्रदूषित शहर : शर्मनाक और चिंताजनक स्थिति


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित जिन 15 शहरों की सूची जारी की गई उनमें 14 भारत के होने से देश में पर्यावरण की स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कानपुर, वाराणसी, दिल्ली, जयपुर सहित तमाम बड़े शहर इस सूची में हैं। ये हालत शर्मनाक भी है और चिन्ताजनक भी क्योंकि प्रदूषण से जनता के स्वास्थ्य पर तो बुरा असर पड़ता ही है, पर्यावरण को भी जबरदस्त क्षति पहुंच रही है जिसकी वजह से भावी पीढ़ी को सांस लेने तक में परेशानी होने की परिस्थिति उत्पन्न होने की आशंका है। जिस तरह आज शुद्ध पेयजल की उपलब्धता न होने से बोतलबंद पानी का कारोबार चल पड़ा है वैसा ही ज्यादा दूर न सही आने वाले एक दशक के भीतर ऑक्सीजन का होने की संभावना बन रही है। आबादी के विस्फोट और बढ़ते शहरीकरण ने भारत में  प्रदूषण को जिस खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है उसका सबसे ज्वलन्त उदाहरण राजधानी दिल्ली है जहां साल में कई मर्तबा हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि लोगों का घर से निकलना दूभर हो जाता है। सवाल किसी एक या कुछ शहरों का न होकर पूरे देश का है क्योंकि बाकी जगह के हालात भी कोई बहुत अच्छे हों ये कहना या मान लेना सच्चाई को झुठलाना होगा। सवाल ये उठता है कि इसका निदान कौन करेगा? केवल सरकार कर सकती तो ये नौबत ही नहीं आती। पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, एनजीटी जैसी संस्थाएं तो हैं ही उच्च और सर्वोच्च न्यायालय तक बहुत सख्त हैं। बावजूद इसके स्थितियां बेकाबू हो रही हैं तो उसके लिए पूरा समाज सामूहिक तौर पर जिम्मेदार है। प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है जिसमें घास के तिनके से लेकर आकाशगंगा में विचरते नक्षत्रों तक को देव स्वरूप मानकर पूजित किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आंकड़ों से निराश या हीनता से ग्रसित होने की जगह बेहतर होगा प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर इसे चुनौती मानकर हालात सुधारने में योगदान दे। जिसे हमने बिगाड़ा है उसे हम सुधार भी सकते हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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