Thursday 31 May 2018

तो जनता भी भाजपा का तेल निकाल देगी


कल सुबह से रात तक पेट्रोल के दाम एक पैसा कम होने पर केंद्र सरकार और साथ में भाजपा की फज़ीहत होती रही। सोशल मीडिया पर तो ऐसे मुद्दों पर तीखे कटाक्षों की बाढ़ आ जाती है। पहले 60 पैसे की कमी के तत्काल बाद संशोधन करते हुए 59 पैसे की कमी वापिस लेते हुए उसे एक पैसा करने को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अधिकारी की गलती बताकऱ पल्ला झाड़ लिया। पूर्व की तरह श्री प्रधान ने एक बार फिर जीएसटी में पेट्रोलियम वस्तुओं को लाने की बात कहकर बहलाने की कोशिश की। यही नहीं तो केरल की वामपंथी सरकार द्वारा 1 जून से 1 रु.दाम घटाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होनें अन्य राज्यों को भी वैसा करने की सलाह दे डाली किन्तु उनकी अपनी पार्टी द्वारा शासित 20 से ज्यादा राज्यों के मुख्यमंत्रियों को दाम घटाने के लिए कहने से वे बचते रहे। इधर मप्र में वित्तमंत्री जयंत मलैया ने साफ कह दिया कि दाम घटाने की पहल केंद्र करे जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी जीएसटी का झुनझुना बजाकर दाएं-बाएं हो गये। स्मरणीय है मप्र देश के उन राज्यों में है जहां पेट्रोल-डीजल पर सर्वाधिक कर थोपे जाते हैं। जिस तरह से पेट्रोलियम के मूल्य बीते कुछ दिनों में लगातार ऊपर गए उनसे पूरे देश में जो नकारात्मक छवि केंद्र सरकार और भाजपा की बनी उसकी तनिक भी चिंता न होने के पीछे दो ही बातें हो सकती हैं। पहली तो ये कि भाजपा ने ठान लिया है कि उसे दोबारा सत्ता में  नहीं लौटना और दूसरा ये कि उसके पास अलादीन का जादुई चिराग आ गया है जिसके बलबूते वह मतदाताओं को दोबारा अपने पाले में खींच लाएगी। यदि भाजपा ने 2019 के चुनाव को भगवान भरोसे छोड़कर हम नहीं सुधरेंगे की कसम खा रखी हो तो फिर कोई बात नहीं। लेकिन अगर वह सोचती है कि चुनाव के एन पहले वह आम जनता की हितैषी बनकर सामने आ जायेगी और वोटों की फसल काट लेगी तो वह गलतफहमी में है। उससे भी बड़ा सवाल ये है कि सरकार का सारा ध्यान क्या चुनाव पर ही केंद्रित है और वह पहले परेशान करने के बाद आखिरी में खुश करने की नीति पर चल रही है? अनु.जाति/जनजति सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए अध्यादेश लाने पर आमादा मोदी सरकार जीएसटी काउंसिल पर पेट्रोलियम वस्तुओं को भी अपने दायरे में लाने के लिए दबाव क्यों नहीं बनाती? सर्वविदित है कि काउंसिल में भाजपा और एनडीए शासित राज्यों का प्रचंड बहुमत है और उसके मुखिया भी बिहार के वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी ही हैं जो भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से हैं। जब पेट्रोलियम मंत्री और भाजपा शासित अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री पेट्रोलियम वस्तुओं पर जीएसटी लगाकर उनके दाम घटाने के प्रति सैद्धान्तिक सहमति दे चुके हैं तब इस नेक काम में देरी से तो यही लगता है कि मुंह में राम बगल में छुरी वाला आचरण दोहराया जा रहा है। मोदी सरकार तेजी से फैसले करने का दावा करती है किन्तु इस सम्वेदनशील मुद्दे पर वह इतनी उदासीन या सुस्त क्यों बनी हुई है, ये समझ से परे है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को इतना नादान नहीं माना जा सकता कि वे पेट्रोल-डीजल की कीमतों से उबल रहे जनाक्रोश को नहीं अनुभव न कर पा रहे हों। जनता की नाराजगी का ही नतीजा रहा कि गुजरात में मोदी-शाह के गुजराती होने पर भी वहां उसे मामूली बहुमत ही मिल सका। कर्नाटक में भी भाजपा तमाम अनुकूलताओं के बावजूद यदि बहुमत की दहलीज पर अटक गई तो उसमें काफी कुछ पेट्रोलियम वस्तुओं की अनियंत्रित महंगाई ही थी। आज भी विभिन्न राज्यों से उपचुनाव के जो परिणाम आ रहे हैं उनमें भाजपा को जबरदस्त नुकसान होता दिख रहा है उसके लिए भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगी आग ही है। पता नहीं केन्द्र सरकार के दिमाग में क्या चल रहा है किंतु जनता के दिमाग में जो चल रहा है यदि उसे न समझा गया तो भाजपा के बुरे दिन आने से कोई नहीं रोक पायेगा। जहां तक बात विकास कार्यों के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने की है तो वह काम बजट के जरिये होने चाहिए। वित्त मंत्री पेट्रोलियम पदार्थों से कर के तौर पर जो राजस्व वसूलना चाहते हों उसकी राशि निश्चित कर दी जावे। ऐसा होने पर जनता के साथ रोज-रोज होने वाली लूटपाट पर विराम लग सकेगा। बेहतर हो केंद्र सरकार ये घोषणा करे कि जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में पेट्रोलियम से सम्बन्धित चीजों पर लगाए जा रहे सभी कर समाप्त कर केवल जीएसटी लगेगा जिसकी अधिकतम दर 28 प्रतिशत है। ऐसा अनुमान है तब पेट्रोल और डीजल के दाम कम से कम 20 रु. प्रति लीटर तो कम हो ही जायेंगे जिसका असर अन्य चीजों की कीमतों पर भी पड़ेगा जो परिवहन ख़र्च बढऩे से महंगी  होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है बीते कुछ दिनों में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छूने के कारण बसों व ट्रकों के साथ ही हवाई कंपनियां भी किराया बढ़ाने के लिए दबाव बना रही हैं। कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि पेट्रोल-डीजल के दामों को लेकर मोदी सरकार और भाजपा दोनों बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहे हैं। यदि उन्हें लग रहा कि केवल हिंदुत्व उनकी सत्ता में वापसी करवा देगा तो ऐसा सोचना मूर्खों के स्वर्ग में रहने जैसा ही है। मोदी जी कितने भी लोकप्रिय भले हों और अमित शाह चुनावी शतरंज के बहुत शातिर खिलाड़ी किन्तु उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि मतदाता उपभोक्ता भी होता है। यदि केवल हिंदुत्व और राममंदिर ही वैतरणी पार करवाते होते तो 1992 में बाबरी ढांचे के गिरने के बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा उप्र, मप्र, दिल्ली वगैरह में शिकस्त न खाती। यदि अब भी केंद्र सरकार और भाजपा जनता का तेल निकालने में लगी रही तो फिर जनता भी उसका तेल निकालने में संकोच नहीं करेगी। आज सुबह से आ रहे उपचुनावों के परिणामों से यदि मोदी-शाह और शिवराज जैसे नेताओं को कुछ अक्ल आ जाये तब भी  गनीमत है वरना 2004 की कहानी दोहराए जाने की सम्भावना दिन ब दिन मजबूत होती चली जायेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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