Tuesday 15 May 2018

कर्नाटक : राहुल एक बार फिर असफल


कर्नाटक विधानसभा चुनाव  की जो स्थिति निकलकर सामने आई है उसके अनुसार कोई बड़ा उलटफेर न हुआ तो भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। अंतिम परिणाम में यदि दो चार सीटें घटीं तब भी उसकी सत्ता आने की सम्भावना है क्योंकि कांग्रेस अपनी लगभग आधी सीटों को गंवा चुकी है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया दो जगहों से लड़े किन्तु एक सीट पर हार गए। इस तरह कांग्रेस के हाथ से उसका एकमात्र किला भी ढह गया। दक्षिण के इस दरवाजे की कुंजी भाजपा को मिल जाना राष्ट्रीय राजनीति में बहुत बड़े बदलाव का कारण बनेगा। कांग्रेस 2014 से लगातार एक के बाद एक राज्य हारती चली जा रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का सूपड़ा जिस तरह साफ  होता जा रहा है उससे पार्टी  के भविष्य पर फिर एक बार सवाल उठ खड़ा हो गया है। हालांकि कांग्रेस और भाजपा के मत प्रतिशत बराबरी पर है लेकिन जिस तरह से सत्ता उसके हाथ से खिसकी उससे एक बात तो तय है कि कांग्रेस में अपनी दम पर नरेंद्र मोदी का सामना करने की ताकत नहीं रही। कर्नाटक में देवेगौड़ा की जनता दल (सेकुलर) को तोडऩे की कोशिशों की बजाय यदि वह उससे गठबंधन कर लेती तब शायद जो स्थिति उसकी हो गई वह आज भाजपा की होती लेकिन गुजरात में हार्दिक पटेल , जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर के आगे घुटने टेक देने वाले राहुल कर्नाटक में सिद्धारमैया की कुटिलताओं को नहीं पढ़ सके और लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा देने की चाल को ब्रह्मास्त्र समझ बैठे। परिणामों से साबित हो गया कि वह दांव उल्टा पड़ गया और मुस्लिम समाज में भी अपने अधिकारों में बंटवारे को लेकर कांग्रेस से नाराजगी बढ़ गई जिसका प्रमाण मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को मिल रही उल्लेखनीय सफलता है। कर्नाटक के जितने भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण आये सभी में सिद्धारमैया को इकतरफा सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बताया गया था। एग्जिट पोल भी  भाजपा और कांग्रेस में मामूली अंतर बता रहे थे किंतु दोपहर लगभग 1 बजे तक भाजपा 108-109 सीटों के साथ बहुमत की दहलीज पर खड़ी हो गई थी। 222 सीटों के चुनाव हुए थे उस लिहाज से उसे विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए 2 मत चाहिए जो बड़ी बात नहीं होगी। लेकिन पूरे नतीजे आते-आते यदि ये आंकड़ा और नीचे गया तब भले ही कांग्रेस और जेडी (एस) मिलकर आखिरी कोशिश कर सकते हैं लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करने की नीति के चलते भाजपा आसानी से हाथ आई बाजी जाने देगी ये लगता नहीं है। इसीलिए मोटे तौर पर ये मान लिया गया है कि दक्षिणपंथी कही जाने वाली भाजपा ने दक्षिण भारत के अपने उस दुर्ग को पुन: जीत लिया जिसे आपसी लड़ाई में वह 5 साल पहले खो चुकी थी। इस तरह ये 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के लिए बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक विजय तो है ही लेकिन इसने एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की चुनाव जिताने में अक्षमता को उज़ागर कर दिया है। गुजरात में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के बाद उनका जो ग्राफ  उठता दिख रहा था वह फिर गिर गया। कर्नाटक के बाद मप्र,राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव आगामी लोकसभा के महा मुकाबले के पहले बेहद महत्वपूर्ण होंगे। कांग्रेस को लगने लगा था कि राहुल गांधी की आक्रामक शैली के सामने मोदी-शाह की जुगलबंदी बेअसर होकर रह जायेगी लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस जिस तरह हारी और भाजपा ने अपनी सीटें जिस बड़ी मात्रा में बढ़ाईं उसने कांग्रेस के माथे पर चिंताएं बढा दी हैं। यदि भाजपा कर्नाटक में काबिज होने में सफल हो गई तब कांग्रेस के पास पंजाब और पुडुचेरी जैसे दो छोटे से राज्य रह जाएंगे। इससे उसकी अखिल भारतीय पार्टी की छवि पर असर पड़े बिना नहीं रहेगा। सुबह जब कांग्रेस-भाजपा बराबरी पर थे तब ही कुमारस्वामी देवेगौड़ा ने बयान दिया कि 40 से ज्यादा सीटें मिलने पर जेडी(एस) मुख्यमंत्री पद पर दावा करेगी। दूसरी तरफ  ममता बनर्जी ने भी तंज कसा कि कांग्रेस यदि देवेगौड़ा से मिलकर लड़ती तब उसकी दुर्गति नहीं होती। जिन क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस दोयम दर्जे का समझती थी अब वे उसके नेतृत्व में गठबंधन करेंगे ये शंका के घेरे में आ गया है। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल का उत्साह इतना बढ़ गया गया कि वे 2019 में प्रधानमंत्री बनने के लिए रजामंदी देने लग गए लेकिन कर्नाटक के मतदाताओं ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। अभी जो स्थिति है उसमें कांग्रेस और जेडी(एस) मिलकर सरकार बनाने लायक संख्या हासिल कर भी लें तो देवेगौड़ा उस स्थिति में कड़ी सौदेबाजी करने से बाज नहीं आएंगे जिससे निपटना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि सिद्धारमैया को देवेगौड़ा परिवार फूटी आंखों से भी नहीं देखना चाहता। चुनाव पूर्व उनके 6 विधायकों को तोडऩे के कदम को देवेगौड़ा पिता-पुत्र भूले नहीं हैं। कुल मिलाकर स्थिति जो भी बने लेकिन ये चुनाव कांग्रेस की प्रतिष्ठा घटाने वाला साबित हुआ क्योंकि उसके पास न तो मोदी जैसा करिश्माई नेता है और न ही अमित शाह जैसा रणनीतिकार। कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा के अनुमान सही निकले तब भी ये तो साबित हो ही गया कि कांग्रेस में अकेले दम पर भाजपा का विकल्प बनने की योग्यता और क्षमता दोनों खत्म हो चुके हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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