Friday 25 May 2018

पेट्रोल-डीजल : इसके पहले कि मामला हाथ से निकल जाए ...

पेट्रोल और डीजल की कीमतों के लगातार बढऩे से मोदी सरकार की जबरदस्त किरकिरी हो रही है। पिछली सरकार के कार्यकाल में उक्त चीजों के दाम बढऩे पर वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा व्यक्त की गईं प्रतिक्रियाओं को प्रस्तुत करते हुए उनसे सवाल पूछे जा रहे हैं। हालांकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बीच हुई बैठक के बाद लगा था कि राहत की बरसात होगी लेकिन मूल्य सूरज की गर्मी की तरह बढ़ते ही जा रहे हैं। निश्चित रूप से साग-सब्जियां, दालें, चीनी आदि के दाम कम होना केंद्र सरकार की उपलब्धि मानी जा सकती है लेकिन दूसरी तरफ  ये भी सही है कि 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद पेट्रोल-डीजल के दामों में आई कमी को अपने नाम लिखने वाली केंद्र सरकार बढ़ती कीमतों को रोक पाने में जिस तरह असहाय नजर आ रही है उससे लगता है कि या तो वह जान-बूझकर पेट्रोलियम कम्पनियों को लूटमार करने की छूट दिए हुए है जिनमें सरकारी और रिलायंस सरीखी निजी कंपनी भी है या फिर सरकार चला रहे लोगों के दिमाग काम नहीं कर रहे। हकीकत जो भी हो लेकिन जब कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बेहद कम थीं तब पेट्रोल-डीजल के दाम उस अनुपात में कम नहीं करने के पीछे तर्क दिया जाता था कि ऑयल पूल के पिछले घाटे की पूर्ति हेतु वैसा करना पड़ रहा था। ये आश्वासन भी दिया गया कि जब वैश्विक स्तर पर मूल्य बढ़ेंगे तब सरकार उपभोक्ता को राहत देने के लिए अपने खजाने से मदद देगी। पिछली सरकार द्वारा ईरान को चुकाई जाने वाली बकाया राशि के नाम पर भी मूल्य वृद्धि के औचित्य को सिद्ध किया जाता रहा। लेकिन  धीरे-धीरे जो तथ्य सामने आते गए उनसे स्पष्ट हो गया कि केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें पेट्रोल-डीजल को अपनी कमाई का जरिया बना चुकी हैं। जो आकंड़े आए हैं उनके मुताबिक तो कीमत से ज्यादा टैक्स थोपा जा रहा है। जब चारों तरफ  से आलोचना होने लगी और बचाव का कोई वाजिब बहाना नहीं बचा तब केंद्र के मंत्री पेट्रोल-डीजल से होने वाली अंधाधुंध कमाई को विकास कार्यों में खपाए जाने की बात कहने में जुट गए। उनके तर्कों को स्वीकार कर लिया जाए तो भी ये तो कहना ही पड़ेगा कि परिवहन में प्रयुक्त होने वाले पेट्रोलियम पदार्थों की बेलगाम होती कीमतों का असर अंतत: महंगाई बढऩे के तौर पर आता है। मान भी लें कि केंद्र सरकार की नीयत में किसी भी प्रकार की खोट नहीं है और वह जो भी कर रही है वह देश हित में है लेकिन आम जनता का तेल निकालकर किया जाने वाला विकास सैद्धांतिक दृष्टि से कितना भी सही हो लेकिन व्यवहारिक तौर पर देखें तो वह किसी संवेदनशील सरकार से अपेक्षित नहीं होता। विगत दिनों सरकार की तरफ  से संकेत आए कि वह पेट्रोल-डीजल की कीमतों को युक्तियुक्तपूर्ण बनाने के लिए कोई दूरगामी प्रबंध करने जा रही है किंतु कीमतों में हो रही दैनिक वृद्धि के चलते उसकी बात पर भरोसा नहीं होता। केंद्र चाहे तो एक्साइज वहीं राज्य सरकारें वैट घटाकर आम उपभोक्ता को राहत दे सकती हैं लेकिन ऐसा लगता है दोनों में पहले आप, पहले आप की होड़ मची है। गत दिवस नीति आयोग ने भी खुले शब्दों में वैट घटाने की समझाइश दे डाली। पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने के लिए सिर्फ  महाराष्ट्र सरकार ने अपनी सहमति दी है जबकि टैक्स के मामले में महाराष्ट्र और मप्र सबसे आगे हैं। आश्चर्य की बात है कि भाजपा शासित गोवा में पेट्रोल-डीजल सबसे सस्ता है तब सवाल उठता है कि बाकी भाजपा शासित राज्यों ने गोवा फार्मूले को क्यों नहीं स्वीकार किया? जहां तक सवाल जीएसटी का है तो देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों का राज है। जीएसटी काउंसिल में भी उन्हीं का बहुमत है। ऐसे में काउंसिल की बैठक में पेट्रोल-डीजल पर विचार क्यों नहीं होता इसका उत्तर देने कोई सामने नहीं आ रहा। पूरे देश में इन चीजों की कीमतों में लगी आग से जनता गुस्से से उबल रही है। विपक्षी दलों को भी मोदी सरकार को घेरने का अवसर मिल गया है। कर्नाटक में सरकार बनाते-बनाते रह गई भाजपा को भी मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव की चिंता सता रही है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें यदि इसी तरह बढ़ती गईं तो भाजपा उक्त राज्यों में अपनी सरकारें बचाने में सफल नहीं होगी। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि मोदी सरकार की कथित उपलब्धियों के नाम पर भाजपा 2019 में फिर एक बार मोदी सरकार का नारा लोगों के गले नहीं उतार पाएगी। प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छता, उज्ज्वला, जनधन, मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन के अलावा देश भर में राष्ट्रीय राजमार्गों के अलावा फ्लाईओवर, जैसे काम  तेजी से चल रहे हैं। नोटबन्दी और जीएसटी के विपरीत प्रभाव भी धीरे-धीरे  कम होने लगे हैं। प्रधानमंत्री की छवि भी अच्छी है। आम धारणा है कि वे एक ईमानदार और मेहनती इंसान हैं जो देश के चौतरफा विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। विदेश नीति के मोर्चे पर भी उनका प्रदर्शन बेहद प्रभावशाली रहा है। बावजूद इस सबके पेट्रोल-डीजल की क़ीमतों के आसमान की तरफ  उठते जाने से जनता के मन में जबरदस्त असन्तोष है। अगर अंतर्राष्ट्रीय कीमतें कम होने के समय मोदी सरकार उनका लाभ भारतीय उपभोक्ता तक पहुंचने देती तब आज की स्थिति में मूल्य वृद्धि का औचित्य सिद्ध करने का पूरा अवसर और अधिकार उसके पास होता। बीते दिनों सरकारी तेल कंपनियों के मुनाफे सम्बन्धी जो आंकड़े उजागर हुए उनके कारण भी आम जनता के मन में ये धारणा घर करती जा रही है कि सरकार पूरी तरह मुनाफाखोर हो गई है और जनता की जेब काटने का कोई मौका वह नहीं चूकती। भाजपा के भीतरखानों में भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर जबर्दस्त आक्रोश है किन्तु मोदी-शाह के दबदबे के चलते किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही जुबान खोलने की। हालांकि लगातार ये संकेत मिल रहे हैं कि अतिशीघ्र केंद्र सरकार कोई न कोई ऐसा कदम उठाएगी जिससे दाम नीचे लाये जा सकें। देखादेखी राज्य भी टैक्सों का भार घटा सकते हैं। कम से कम एनडीए शासित प्रदेशों को तो ऐसा करना चाहिए क्योंकि उससे अन्य राज्यों पर भी जनमत का दबाव बढ़ेगा। भाजपा और मोदी सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि देर से लिया गया सही निर्णय भी अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाता। इसके पहले कि मामला हाथ से निकल जाए उसे संभालने में ही बुद्धिमानी होती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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