Wednesday 2 May 2018

जिन्ना की तस्वीर का भारत में क्या औचित्य

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी किसी न किसी वजह से चर्चा और विवादों में घिरी रहती है। ताजा खबर ये है कि सांसद सतीश गौतम ने इस यूनिवर्सिटी परिसर के छात्रसंघ कार्यालय में लगी मो. अली जिन्ना की तस्वीर हटाने हेतु कुलपति को जो पत्र लिखा उस पर विवाद हो गया। यूनिवर्सिटी के मुस्लिम तबके से तो सांसद की मांग का विरोध हो ही रहा है लेकिन कभी बसपा में मायावती के खासमखास रहे और अब उप्र की योगी सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी जिन्ना को महापुरुष बताते हुए उनका चित्र हटाने की बात को बेतुका बता दिया। बयानों के तीर तरकश से निकलना शुरू हो गए हैं लेकिन राजनीति से परे हटकर देखें तो ये बात चौंकाने वाली है कि भारत के विभाजन के लिए जि़म्मेदार एक व्यक्ति की तस्वीर आजादी के 70 साल बाद भी उक्त विश्विद्यालय के छात्रसंघ कार्यालय में ससम्मान लगी रहे और उसे हटाने की मांग को अनुचित बताया जाए। जिन्ना को महापुरुष भाजपा सरकार का एक मंत्री बताए ये और भी शर्मनाक बात है। प्रश्न ये है कि जेएनयू में भारत विरोधी नारे गुंजाने वाले तो देश की नजरों में आ गए लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विभाजनकारी ताकतों का पर्दाफाश क्यों नहीं हो पाता। अपनी अल्पसंख्यक पहिचान को बनाये रखने के प्रति यह संस्थान सदैव सतर्क रहा है। इसके कुलपति और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर अधिकतर मुस्लिम ही नियुक्त होते रहे हैं। शिक्षा के स्तर के लिहाज से यहां का स्तर अब पहले जैसा तो नहीं रहा लेकिन अभी भी इसकी गणना देश के प्रमुख शिक्षा संस्थान के रूप में होती है। इसकी स्थापना 1875 में हुई थी। जिन्ना की तस्वीर छात्रसंघ कार्यालय में लगी होने के विवाद पर छात्रसंघ के प्रवक्ता का कहना है कि वह आज़ादी के पहले से वहां है क्योंकि महात्मा गांधी और जिन्ना दोनों को छात्रसंघ की मानद सदस्यता दी गई थी। एक तर्क ये भी दिया गया कि पाकिस्तान बनने के पहले जिन्ना ने भी आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। लेकिन आज़ादी की लड़ाई जब अंतिम दौर में आ गई तब तक जिन्ना अंग्रेजों के पिट्ठू बनकर धर्म के नाम पर अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए अड़ गए। उसका क्या नतीज़ा हुआ ये इतिहास का वह दर्दनाक अध्याय है जिसमें आबादी के सबसे बड़े हस्तातंरण के साथ ही लाखों निरपराध लोगों के नरसंहार का वर्णन समाया हुआ है। पाकिस्तान का निर्माण जिन कारणों से हुआ और नफरत की जो चिंगारी भड़की उसे भीषण आग में बदलने वाले जिन्ना प्रमुख व्यक्ति रहे। इसलिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ सभागार में उनकी तस्वीर को लगाए रखने की जि़द करना ठीक वैसे ही है जैसी जेएनयू में अफजल गुरु को महिमामंडित करना। जिन्ना इंग्लैंड से बैरिस्टरी पढ़कर भारत लौटे। उनकी गणना उस समय के बड़े वकीलों में होती थी। भारत आने और उसके काफी समय बाद तक वे पूरी तरह अंग्रेजी संस्कृति में रचे बसे रहे। उन्होंने विवाह भी पारसी लड़की से किया था जिसे लेकर तत्कालीन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने काफी नाराजगी भी व्यक्त की थी। अपनी शैक्षणिक योग्यता और पेशेवर दक्षता से उत्पन्न महत्वाकांक्षा के चलते वे कांग्रेस में उच्च स्थान चाहते थे किंतु सफल न होने पर निराशा में डूबकर इंग्लैंड वापिस चले गए। लेकिन तब तक अंग्रेजों को उनमें भारत विभाजन की अपनी कार्ययोजना का नायक नजर आ गया था। उन्होंने जिन्ना की महत्वाकांक्षा को और परवान चढ़ाया जिसके बाद वे फिर भारत लौटे और मुस्लिम राजनीति के केंद्र बन गए। तब तक देश में हिन्दू और मुसलमानों के बीच दंगे फसाद के जरिये दो देश सिद्धांत ( टू नेशन थ्योरी ) का जिक्र जोर पकड़ चुका था। जिन्ना को गाँधीजी ने काफी मनाया किन्तु वे अंग्रेजों के दलाल की तरह पूरी तरह अड़ गए और अंतत: पाकिस्तान लेकर ही माने। इस्लाम के मौलिक रीति -  रिवाजों से सर्वथा दूर बने रहने वाले जिन्ना अंग्रेजी वेशभूषा त्यागकर शेरवानी और टोपी पहिनने लगे। प्रारंभिक जीवन में पूरी तरह आज़ाद खय़ाल रखने वाले जिन्ना ने पाकिस्तान को इस्लामिक देश बना दिया। ऐसे व्यक्ति को भारत में सम्मान मिलना किसी भी सूरत में समझ से परे है। इस सम्बंध में उल्लेखनीय है भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान स्थित जिन्ना की कब्र पर जाकर जब उन्हें धर्मनिरपेक्ष सोच वाला व्यक्ति बताया तो अन्य दलों को तो छोड़ दें खुद भाजपा में उनके उस बयान का जोरदार विरोध हुआ जो अंतत: उनके राजनीतिक पतन का आधार बनता गया। ऐसे में जब देश और उप्र दोनों में राष्ट्रवादी होने का दावा करने वालों की सर्वाधिकार सत्ता हो तब किसी सरकारी सहायता प्राप्त केंद्रीय विश्वविद्यालय में भारत का विभाजन कराने वाले जिन्ना की तस्वीर महात्मा गांधी सहित अन्य महापुरुषों के साथ लगा होना उन विभूतियों का अपमान है जिन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। सांसद श्री गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति को जो पत्र लिखा उस पर राजनीति की बजाय राष्ट्रनीति के मद्देनजर विचार होना चाहिए। स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिन्ना को महापुरुष बताकर जिस तुष्टीकरण का परिचय दिया वह उनके पुराने राजनीतिक संस्कारों का प्रभाव लगता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने मंत्री के उस बयान पर उनसे पूछताछ करना चाहिये और वे जिन्ना की तरफदारी करने पर आमादा रहें तो उनसे मंत्रीपद छीनने में संकोच नहीं करना चाहिए। बेहतर हो सारे दल मिलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लगी जिन्ना की तस्वीर को हटाने की मांग का समर्थन करें। ये सवाल हिन्दू-मुस्लिम का नहीं अपितु भारत और पाकिस्तान का है। धर्मनिरपेक्षता अपनी जगह है लेकिन देश के टुकड़े करवाने के षडय़ंत्र के मुख्य सूत्रधार का प्रशस्तिगान देशभक्ति नहीं हो सकती। पाकिस्तान में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को महापुरुष मानकर उन्हें सम्मान नहीं दिया जाता तो हम जिन्ना को क्यों ढोयें? याद रहे हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जीवन लगा देने वाले गांधी जी की मौत पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए जिन्ना ने उन्हें एक महामानव की बजाय एक महान हिन्दू कहकर अपनी संकीर्णता उजागर कर दी थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की पाकिस्तान के निर्माण में जो भूमिका रही उसे देखते हुए उसके परिसर में लगी जिन्ना की तस्वीर इस बात का प्रमाण है कि जिन्ना के मानसपुत्र सरकारी खर्चे से चल रहे इस संस्थान में आज भी बने हुए हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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