सीमा से एक अच्छी खबर आई कि सीमा सुरक्षा बल द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तानी सेना के हौसले पस्त हो गए और उसने लड़ाई रोकने का सन्देशा भेज दिया। विगत कई दिनों से सीमा पार से बरस रहे गोलों से भारतीय नागरिक की मौत के साथ सीमावर्ती इलाकों के रहवासियों में अफरा-तफरी मची थी। दहशत में लोग घर बार छोड़कर जाने लगे थे। उसके बाद भारत ने पलटवार करते हुए पाकिस्तानी सेना के बंकर सहित कई ठिकाने नष्ट कर दिए। जिससे घबराकर उसकी तरफ से शांति का पैगाम आ गया। हालांकि ये पहला अवसर नहीं है जब भारतीय सुरक्षा बलों की जबरदस्त गोलाबारी ने पाकिस्तानी फौज का मनोबल तोड़ा हो। लेकिन कुछ समय बाद ही कुत्ते की पूंछ की तरह वह फिर टेढ़ा हो जाता है और अकारण गोलाबारी करते हुए निर्दोष नागरिकों के जानमाल का नुकसान पहुंचाकर भारत को उकसाता है। रमज़ान लगते ही कश्मीर घाटी में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के आग्रह पर सुरक्षा बलों ने तो अपना अभियान रोक दिया किन्तु पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी सरगनाओं ने युद्ध विराम से इंकार कर दिया। और उसी के बाद से पाकिस्तानी सेना की गोलाबारी तेज होती गई। जवाब में सीमा सुरक्षा बल ने जब अपना जोर दिखाया तो उस तरफ से रहम की गुहार होने लगी। भारत भी व्यर्थ के युद्ध में चूँकि रुचि नहीं रखता इसलिये उस प्रस्ताव को स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है किंतु ये सतर्कता बरतनी होगी कि उसकी आढ़ में शत्रु कोई नई चाल तो नहीं चल रहा। बहरहाल सीमा पर हमारे जवानों के बुलंद हौसले ने तो देश को आश्वस्त किया किन्तु छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से आई खबर ने एक बार फिर विचलित कर दिया। नक्सलियों द्वारा बिछाई गई बारूदी सुरंग की चपेट में आकर पुलिस का एक वाहन नष्ट हो गया जिसमें सवार 5 जवानों ने मौके पर और 2 घायलों ने बाद में दम तोड़ दिया। बीते काफी समय से सुरक्षा बल नक्सलियों पर हावी दिखाई दे रहे थे। बड़ी संख्या में उनके नेता मारे गए तथा अड्डे भी नष्ट किये गये। इसी वर्ष के अंत में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राज्य की रमन सिंह सरकार दावा करती रही है कि उसने नक्सलियों के जाल को छिन्न-भिन्न करते हुए उन्हें बेहद कमजोर कर दिया है लेकिन गत दिवस हुई वारदात से साबित हो गया कि उनकी जड़ें अभी भी बस्तर में फैली हुई हैं। ये क्षेत्र चूंकि राज्य की सीमा पर है इस वजह से वारदात करने के बाद आंध्र, उड़ीसा और झारखंड भाग जाने में आसानी रहती है लेकिन सुरक्षा प्रबंध चाक-चौबंद होने के बावजूद थोड़े-थोड़े अंतराल पर इस तरह की घटनाओं से लगता है कहीं न कहीं कुछ कमी है। बस्तर सहित अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास खास तौर पर अधो संरचना के कार्य तेजी से चालाए जा रहे हैं जिससे वहां रहने वाले आदिवासी विकास की मुख्यधारा में आ सकें। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की उपलब्धता से ही इन क्षेत्रों में देश विरोधी ताकतों का सफाया सम्भव है। इसी वजह से नक्सली विकास कार्यों को रोकने में लगे रहते हैं। गत दिवस भी जिस पुलिस वाहन को विस्फोट में उड़ाया गया वह निर्माणाधीन सड़क पर कार्यरत लोगों की सुरक्षा हेतु जा रहा था। प्रश्न ये है कि जब हम सीमा पार बैठे शत्रु की कमर तोडऩे में सक्षम हैं तब घर के भीतर बैठे इस नक्सलियों की जड़ें खोदने में हमारा सुरक्षा तंत्र पूरी तरह से सफल क्यों नहीं हो पा रहा? यद्यपि इसकी एक वजह कश्मीर घाटी जैसे हालात भी हैं जिनमें स्थानीय लोग भी देश के दुश्मनों को सहायता और संरक्षण दोनों देते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्र अधिकतर आदिवासी बहुल हैं। जिसकी वजह से छिपने के लिए जंगल वगैरह में काफी आसानी होती है। आदिवासी समुदाय भयवश उनकी मदद करने बाध्य हो जाता है क्योंकि वैसा न करने पर उन्हें नक्सलियों का कोप सहन करना पड़ता है और जरूरत के समय पुलिस या प्रशासन उनकी सहायता नहीं कर पाते। कमोबेश ऐसी ही स्थिति कश्मीर घाटी में भी देखने मिलती है लेकिन दोनों में अंतर केवल इतना है कि आदिवासी जनता नक्सलवाद और अलगाववाद के उद्देश्य से अनभिज्ञ है और उसकी देशभक्ति पर सन्देह नहीं किया जा सकता जबकि कश्मीर घाटी में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अलगाववादियों के साथ पूरे मन से जुड़कर देश की अखंडता के लिए ऐलानिया खतरा बने हुए हैं। ऐसी स्थिति में सुरक्षा बल जिस मुस्तैदी से घाटी के भीतर कार्रवाई कर पाते हैं वैसी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में करने के दौरान तरह-तरह की व्यवहारिक कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं। बावजूद इसके देश के भीतरी हिस्सों में सशस्त्र विद्रोह करने पर आमादा नक्सलियों का आतंक समूची आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती बन गया है। यही वजह है कि सीमा से आई एक अच्छी खबर से पैदा हुई खुशी दंतेवाड़ा के हादसे से चिंता और दुख में बदल गई। हालाँकि ऐसे मामलों में सुझाव देना तो बेहद आसान होता है लेकिन नक्सली आतंक जिस तरह पाँव पसारता जा रहा है उसे देखते हुए जरूरी हो गया है कि केंद्र व नक्सल प्रभावित राज्यों की सरकारें मिलकर ऐसी कार्ययोजना बनाएं जिसके ठोस नतीजे निकलें क्योंकि नक्सलियों की वजह से देश का एक बड़ा हिस्सा विकास से वंचित होने की वजह से पिछड़ा बना हुआ है। दंतेवाड़ा की ताजा घटना से एक बात स्पष्ट हो गई कि नक्सली छत्तीसगढ़ के चुनाव के दौरान किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं। उल्लेखनीय है अतीत में भी वे ऐसा कर चुके है जिसमें विद्याचरण शुक्ला सहित काँग्रेस के अनेक नेता मारे गए थे। नक्सली भी चीन के पाले हुए सांप हैं अत: उनका फन कुचलने में संकोच नहीं करना चाहिए। दुश्मन चाहे सीमा के पार बैठा हो या घर के भीतर, उसके साथ एक जैसा सलूक किया जाना चाहिए।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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