Friday 11 May 2018

लोकार्पण जल्दी करो कि जनता आती है

कुछ बरस पहले दिल्ली को गुरुग्राम (गुडग़ांव) से जोडऩे के लिए बने रास्ते का निर्माण कार्य पूरा होने पर भी उसे जनता के लिए  इसलिए नहीं खोला गया क्योंकि तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह उसके लोकार्पण के लिए समय नहीं दे पा रहे थे। जब जनता का धैर्य जवाब दे गया तब उसने खुद ही उस मार्ग पर आवागमन प्रारम्भ कर दिया। बाद में जब डॉ. सिंह से औपचारिक लोकार्पण हेतु सम्बन्धित विभाग द्वारा आग्रह किया गया तब उन्होंने मना कर दिया क्योंकि उससे उनकी और सरकार दोनों की जगहंसाई होती। वैसा ही वाकया गत दिवस एक बार फिर सामने आया। हरियाणा में सोनीपत से पलवल होते हुए उप्र के गाजिय़ाबाद तक जाने वाले 135 कि.मी. एक्सप्रेस वे के लोकार्पण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने एनएचएआई (नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ  इंडिया) को लताड़ते हुए कहा कि यदि प्रधानमंत्री के पास उसके लोकार्पण का समय नहीं है तो आगे प्रतीक्षा किये बिना 1 जून से उसे यातायात हेतु खोल दिया जावे। यद्यपि इसे लेकर विरोधाभासी बयान सामने आए। पहले बताया गया कि एक्सप्रेस वे बनकर तैयार है लेकिन प्रधानमन्त्री से समय नहीं मिलने के कारण लोकार्पण टलता गया। बाद में हरियाणा सरकार ने कहा कि 81 प्रतिशत काम ही हुआ है और 30 जून तक निर्माण पूरा हो सकेगा। उसके उपरांत ही लोकार्पण सम्भव होगा। एनएचएआई और हरियाणा सरकार द्वारा अदालत के समक्ष रखी ही दो जानकारियों में कौन सी सही है ये जांच का विषय है किंतु सर्वोच्च न्यायालय का ये कहना जनभावनाओं को अभिव्यक्त करता है कि यदि एक्सप्रेस वे बनकर तैयार हो तब प्रधानमन्त्री के पास समय नहीं होने पर भी उसे जनता के लिए खोल दिया जावे। प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त मार्ग पर यातायात खुलने से राजधानी दिल्ली में यातायात का दबाव काफी कम हो सकेगा। सोनीपत से गाजिय़ाबाद तक 135 किमी के रास्ते पर हज़ारों वाहन बिना दिल्ली में घुसे अपने गंतव्य तक पहुँच जाएंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी बात कहते हुए कड़ाई भी दिखाई और कटाक्ष भी किये। लेकिन उसकी आदेशात्मक टिप्पणियों को केवल सोनीपत-गाजिय़ाबाद एक्सप्रेस वे तक सीमित न रखते हुए व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। हमारे देश में सरकार द्वारा करवाए जाने वाले ऐसे ढेर सारे कार्य इस कारण प्रारम्भ नहीं हो पाते क्योंकि उसका शिलान्यास अथवा लोकार्पण करने के लिए किसी नेता या मंत्री के पास समय नहीं होता। चूंकि ऐसे प्रकल्पों को बतौर उपलब्धि राजनेता चुनाव में भुनाते हैं इसलिए उन पर लगा शिलान्यास और उद्धघाटन का पत्थर उनकी जनसेवा का जीवंत प्रमाण बनता है। संसदीय प्रजातन्त्र के लिहाज से ये परिपाटी बुरी नहीं है लेकिन कोई भी परियोजना पूरी हो जाने के उपरांत इसलिए लोगों के काम न आए क्योंकि नेताजी के पास उसका उद्घाटन करने का समय नहीं है तब उसे शुरू नहीं करना एक तरह का अपराध है। दिल्ली और गुरुग्राम के बीच बनाया गया मार्ग प्रारम्भ होने से उस पर जाम लगना कम हो गया और आवाजाही करने वालों का समय भी बचने लगा। जिस एक्सप्रेस वे के उद्घाटन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने सम्बन्धित सरकारी एजेंसी को लताड़ लगाई उसे एक तरह की समझाइश और निर्देश मानकर उसका पालन किया जाना चाहिए। रही बात नेता के हाथ से लोकार्पण की तो तकनीक के इस जमाने में प्रधानमंत्री या और कोई विशिष्ट हस्ती बिना शारीरिक तौर पर उपस्थित हुए बिना भी वीडियो कांफे्रंसिंग के जरिये उस प्रकल्प का लोकार्पण कर सकती है। जनता को स्क्रीन पर उनका भाषण भी दिखाया-सुनवाया जा सकता है। ऐसा होने से किसी भी परियोजना के पूर्ण होने के बाद भी उसके प्रारम्भ न हो पाने की समस्या आसानी से हल हो जावेगी और सरकारी धन से बने प्रकल्प का लाभ भी जनता को जल्दी मिलने लगेगा। हालांकि प्रधानमंत्री से लेकर ग्राम पंचायत के पंच तक को ये सुझाव रास नहीं आएगा क्योंकि कुर्सी पर बैठते ही ऐसे -वैसे न जाने कैसे-कैसे हो जाते हैं। सत्ता मिलते ही सामंतवाद उनकी मानसिकता पर हावी हो जाता है जिसकी वजह से उन्हें लगता है कि किसी न किसी बहाने उनकी जय-जयकार होती रहे। अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने छोटे से दिखने वाले एक मुद्दे पर ध्यान देते हुए कड़े शब्दों में नसीहत दे ही डाली है तब राजनेताओं को भी उसका संकेत समझना चाहिए। वरना वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब इस तरह के प्रकल्पों की शुरुवात या लोकार्पण के लिए किसी नेताजी का इन्तेजार नहीं किया जाएगा और स्व.रामधारी सिंह  दिनकर की सुप्रसिद्ध कविता 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है , की तर्ज पर कहा जाने लगेगा कि लोकार्पण जल्दी करो कि जनता आती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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