Saturday 26 May 2018

फिलहाल तो सारा परिदृश्य मोदी के ईर्दगिर्द घूम रहा है

भारत सरीखे विविधताओं और समस्याओं से भरे देश में सरकार चलाना मामूली बात नहीं होती। करोड़ों लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली,  पीने का पानी, सड़क और यहां तक कि शौचालय तक उपलब्ध न हो वहां ढर्रे से हटकर काम करने का निर्णय दुस्साहसिक ही कहा जायेगा। उस दृष्टि से नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते चार साल में क्या किया इसका लेखा जोखा करने बैठें तो कहीं खुशी कहीं गम की स्थिति है। 60 महीनों में सबका साथ सबका विकास के वायदे के साथ सत्ता में आने के बाद श्री मोदी ने शुरुवात तो तेजी से की। समस्याओं की तह में जाकर उनका निराकरण करने की उनकी शैली ने सकारात्मक  प्रभाव भी दिखाया। आम जन को लाभ पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री ने जो पहल की उसके भी अच्छे नतीजे निकले हैं। सबसे अच्छी बात ये रही कि वे अपने निर्णयों को लागू करने में दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हैं। यही वजह है कि तमाम विरोधों के बावजूद उनकी लोकप्रियता खत्म नहीं हुई। बीते चार सालों में उनकी सरकार और पार्टी के पास गिनाने के लिए तमाम उपलब्धियां हैं वहीं विरोधियों के अनुसार ये सरकार पूरी तरह विफल रही। लेकिन इन सबसे हटकर आकलन करें तो ये मानना पड़ेगा कि श्री मोदी ने देश का आत्मविश्वास घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मोर्चों पर ऊंचा किया है। विपक्ष चाहे जितना मजाक उड़ाए किन्तु विदेशी दौरों के जरिये प्रधानमंत्री ने भारत की छवि को उज्ज्वल और सशक्त बनाने में शानदार कार्य किया। न केवल अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस , चीन बल्कि मंगोलिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे छोटे - देशों तक से राजनयिक सम्बन्ध सुदृढ़ करते हुए भारत के आर्थिक और सामरिक हितों का संवर्धन करने में  उनकी भूमिका बेहद सराहनीय रही। इसका सुपरिणाम ये हुआ कि वैश्विक स्तर पर भारत किसी एक देश या गुट पर अवलम्बित नहीं रहा। रक्षा सौदों पर अनिर्णय की जो स्थिति इस सरकार को विरासत में मिली उससे बाहर निकलकर सेना को साधन और शक्ति सम्पन्न करने के लिए बीते चार वर्ष में जो काम हुआ वह भले ही जनसाधारण के संज्ञान में नहीं आया हो किन्तु जो लोग रक्षा क्षेत्र के जानकार हैं वे इसे बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं। विशेष बात ये रही कि अरबों-खरबों के अस्त्र-शस्त्र और रक्षा सम्बन्धी तकनीक के सौदों में पारदर्शिता सर्वोच्च प्राथमिकता रही। दलालों को दरकिनार रखते हुए सीधे सरकार के स्तर पर खरीद हुई जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश खत्म हो गई। पाकिस्तान, चीन, म्यांमार, बांग्लादेश आदि के साथ सीमा विवाद के मामले में भी मोदी सरकार ने काफी दृढ़ता दिखाई है। डोकलाम विवाद पर चीन द्वारा बनाए गये दबाव का सामना साहस और चतुराई के साथ किया जाना इसका प्रमाण है। विश्व के लगभग सभी राष्ट्राध्यक्षों के साथ निजी सम्बन्ध स्थापित करना आसान काम नहीं था लेकिन इस मोर्चे पर श्री मोदी की कामयाबी हर दृष्टि से उल्लेखनीय रही। विदेश यात्राओं के दौरान भारतीय समुदाय के साथ सीधा संवाद स्थापित करने की उनकी शैली का जबरदस्त प्रभाव हुआ जिससे अप्रवासी भारतीयों के मन में अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना विकसित हुई। जहां तक बात घरेलू मोर्चे की है तो प्रधानमंत्री ने जो भी योजनाएं और कार्यक्रम बनाए उनमें से अधिकाँश दूरगामी लक्ष्यों पर केंद्रित होने से भले ही तात्कालिक रूप से परिणाम न दे पा रहे हों लेकिन भविष्य में देश को उनसे फायदा होना सुनिश्चित है। स्वच्छता मिशन, शौचालय और स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाओं का कोई भी समझदार व्यक्ति विरोध नहीं कर सकता। इसी तरह मुफ़्त रसोई गैस कनेक्शन भी स्वागतयोग्य कदम है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत शहरी और ग्रामीण आबादी के बेघरबार लोगों को सस्ते मकान देने का कार्य क्रांतिकारी कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने पहले दिन से ही केंद्रीय सचिवालय का ढर्रा सुधार दिया जहां से सचिव स्तर तक के अधिकारी भी कार्यालयीन समय में गायब रहा करते थे। वे स्वयं समय से पूर्व दफ्तर आ जाते हैं। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे निर्णयों को जबरदस्त विरोध के बावजूद लागू करवाना उनके खाते में बड़ी उपलब्धि कही जाएगी जिसकी वजह से भाजपा का परम्परागत मतदाता भी उससे रूष्ट हुआ किन्तु प्रधानमंत्री विचलित नहीं हुए। मोदी सरकार की सफलता की फेहरिस्त और लंबी बन सकती थी किन्तु हर समय चुनाव-चुनाव का माहौल बना रहने से कई ऐसे निर्णय अधर में अटके पड़े रह गए जिनका लाभ देश को मिल सकता था। रही बात राजनीति की तो ये कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री ने भाजपा को सही मायनों में अखिल भारतीय पार्टी बना दिया जो बहुत बड़ी बात है। लेकिन कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनकी वजह से मोदी सरकार के प्रति 2014 में नजर आने वाले उत्साह और काफी हद तक विश्वास में कमी आई है। विदेशों से काला धन वापिस लाकर हर देशवासी के खाते में 15 लाख जमा करने को  भले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जुमला कहकर हवा-हवाई कर दिया हो किन्तु विपक्ष के लिए वह आज भी सबसे बड़े हथियार के तौर पर है। काले धन के खात्मे की दिशा में भी मोदी सरकार ने सिवाय नोटबन्दी के और ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे जनता आश्वस्त हो पाती। इसी तरह किसानों को खुश करने के मामले भी यह सरकार कठघरे में खड़ी की जाती है। एक और आरोप प्रधानमंत्री पर लगता है कि उन्होंने सरकार और पार्टी दोनों के भीतर एकाधिकारवादी रवैया अपनाकर बाकी सबको दरकिनार करते हुए इंदिरा गांधी के दौर की स्मृतियां सजीव कर दीं। सरकार में इक्का-दुक्का को छोड़ दें तो किसी मंत्री की हैसियत और हिम्मत नहीं है जो प्रधानमंत्री से असहमत होना तो दूर खुलकर बात तक कर सके। यही हाल पार्टी का भी है जहां मोदी और अमित शाह ने सबको बौना साबित बना दिया है। उनकी यही छवि उनके विरोधियों के लिए मददगार बन गई और देखते ही देखते प्रधानमंत्री को असहिष्णुता का प्रतीक बनाकर ऐसा साबित करने का प्रयास हुआ कि अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली गई हो। सांप्रदायिकता फैलाने को लेकर भी मोदी सरकार पर जबरदस्त आरोप लगते हैं। तीन तलाक़ के विरुद्ध चलाई मुहिम को भी आधार बनाया गया। मुसलमानों और ईसाइयों में भरोसा पैदा करने में भी ये सरकार अपेक्षानुसार सफल नहीं रही तो उसकी वजह वे हिन्दू संगठन हैं जिनकी स्वछन्दता सरकार के लिए मुसीबतें पैदा करती रही है। इस सरकार की बड़ी विफलताओं में कश्मीर समस्या का हल न ढूंढ पाना भी है। पीडीपी के साथ सत्ता में साझेदारी जिस मकसद से की गई उसका औचित्य जनता तो क्या खुद भाजपाइयों को भी नहीं समझाया जा सका। इसी तरह बिना बहुमत आए भी जोड़तोड़ से कई राज्यों में सरकारें बना लेने से नौतिकता की कसौटी पर मोदी सरकार के अंक घटे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के ताजा विवाद पर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाते हुए एक लॉबी विशेष ने ये प्रोपेगंडा शुरू कर दिया कि न्यायपालिका स्वतन्त्र नहीं है लेकिन कर्नाटक के सियासी विवाद पर आए फैसले ने उसे गलत साबित कर दिया। कुल मिलाकर बीते चार वर्ष में नरेंद्र मोदी ने ऐसे प्रधानमंत्री की छवि तो बनाई जिसमें निर्णय लेने की क्षमता है। वे ऐसे कप्तान के रूप में भी सामने आए हैं जो कप्तानी पारी खेलकर मुकाबले को मोडऩे में सक्षम है। उनकी कार्यशैली को अहंकारी मानने वाले भी ये तो स्वीकार करेंगे ही कि तमाम विवादों के बावजूद प्रधानमंत्री ने एक ऐसे दमदार नेता के रूप में स्वयं को स्थापित किया है जो सत्ता के साथ ही व्यवस्था बदलने की सोच रखता है। यही वजह है कि हाल ही में जो भी सर्वेक्षण आए उन सभी में नरेंद्र मोदी भारी पड़ते नजर आए। उनका विरोध जनता के बीच उतना नहीं जितना एक लॉबी विशेष कर रही है। पेट्रोल-डीजल को छोड़कर बाकी जीवनोपयोगी वस्तुओं के दाम नियंत्रण में हैं। विदेशी मुद्रा भंडार लबालब है, अर्थव्यव्यस्था मंदी से उबरकर गति पकड़ रही है। सबसे बड़ी बात ये है कि प्रधानमंत्री के सत्ता में लौटने के भय से काँग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होने मज़बूर हो गईं। 2019 में ये सरकार फिर लौटेगी या जनता परिवर्तन करेगी ये फिलहाल कहना कठिन है क्योंकि आज की राजनीति भी सीमित ओवरों का क्रिकेट मैच बनकर रह गई है जिसमें आखिरी क्षण तक अनिश्चितता बनी रहती है। फिलहाल तो सारा परिदृश्य प्रधानमंत्री के इर्द गिर्द ही घूम रहा है। आप चाहे उनकी प्रशंसा करें या आलोचना लेकिन उपेक्षा नहीं कर सकते। उन्हें विफल बताने वाले भी इस आशंका से ग्रसित हैं कि ये शख्स अन्तिम ओवरों में मैच अपने पक्ष में करने की कला में माहिर है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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