Wednesday 9 May 2018

संकोच छोड़ो : हाथ तोड़ो


कश्मीर घाटी में पर्यटन लोगों की आय और रोजगार का प्रमुख जरिया है। यद्यपि अमरनाथ यात्रा के  दौरान अनेक मर्तबा आतंकवादी वारदातें हो चुकी हैं लेकिन आम तौर पर सैलानियों को नहीं छेड़ा जाता। जिसके पीछे सोच शायद ये रही होगी कि यदि सैर सपाटे के लिए कश्मीर आने वालों में दहशत पैदा हो गई तो घाटी के व्यापार और रोजगार दोनों पर बुरा असर पड़ेगा जिसके कारण स्थानीय जनता के नाराज होने का खतरा बढ़ सकता है। लेकिन गत दिवस पत्थरबाजी के कारण घायल तमिलनाडु के एक पर्यटक की मौत ने घाटी में पर्यटकों के आवाजाही झमेले में डाल दी है। गर्मियों के मौसम में जब घाटी में पर्यटकों की आवाजाही काफी होती है तब इस तरह की घटना से माहौल खराब होना स्वाभाविक ही है। हाल ही में पत्थरबाजों द्वारा स्कूली बच्चों की एक बस को भी निशाना बनाकर सनसनी फैलाई थी। ताजा घटना पर राज्य की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती ने शर्म से सिर झुकने जैसी प्रतिक्रिया दी है वहीं विपक्ष के नेता उमर अब्दुल्ला ने घटना को कश्मीर की मेहमानवाजी के लिए धब्बा बताया लेकिन ये वही लोग हैं जो पत्थरबाजी करने वालों के प्रति नरमी से पेश आने की वकालत करते आये हैं। ये बात तो जगजाहिर हो चुकी है कि पत्थरबाजी में लिप्त लड़के बेरोजगार हैं जिन्हें आतंकवादी संगठन पैसे का लालच देकर उनसे उत्पात मचवाते हैं। गत सप्ताह सुरक्षा बलों ने मारे जा चुके आतंकी सरगना बुरहान वानी गैंग के बचे खुचे सदस्यों को घेर कर मार दिया। उस दौरान भी उन पर खूब पत्थर बरसाए गए। सुरक्षा बलों को दो मोर्चों पर एक साथ लडऩा पड़ रहा था। एक तरफ तो घर में घिरे आतंकवादी ताबड़तोड़ गोलियां चला रहे थे वहीं बाहर सैकड़ों लड़के पत्थरों की बरसात उन पर कर रहे थे जिससे आतंकवादी भागने में कामयाब हो जाएं किन्तु सुरक्षा बलों के जवानों ने जमकर मोर्चेबन्दी की। सभी आतंकवादी भी मारे गए और पत्थरबाजी के जवाब में की गई कार्रवाई में पत्थर फेंकने वाले 5 लड़के भी ढेर हो गए। इससे बौखलाए आतंकवादी अब हताशा के शिकार होकर कभी स्कूली बस में बैठे छोटे-छोटे बच्चों पर पत्थरबाजी करवा रहे हैं वहीं गत दिवस दक्षिण भारत से आये एक पर्यटक की जान पत्थरबाजी में चली गई। भले ही कश्मीर की अलगाववादी ताकतें इस घटना से थोड़ी रक्षात्मक नजर आ रही हो, क्योंकि एक पर्यटक की हत्या को उचित ठहराने का कोई भी आधार किसी के पास नहीं है लेकिन इस तरह की वारदात को यदि बच्चों की साधारण गलती मानकर नजरअंदाज कर दिया गया तो आने वाली अमरनाथ यात्रा के दौरान घाटी में आने वाले लाखों हिन्दू तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ जाएगा और आतंकवादी भी यही चाहते हैं। गत एक वर्ष के दौरान कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों के सख्त रवैये ने आतंकवादी गुटों की कमर तोड़कर रख दी है। घाटी के भीतर छिपने की जगहों पर दबिश देकर उनका सफाया करने की मुहिम ने काफी असर दिखाया है। सीमा पार से घुसपैठ पर काफी नियंत्रण लगा है। ऐसा लगता है घबराहट में आतंकवादी गुटों ने दोबारा पत्थरबाजों का सहारा लेने की रणनीति बनाई है। गत वर्ष पैलेट गन की मार ने पत्थरबाजों की कमर तोड़कर रख दी थी लेकिन आतंकवादियों से सहानुभूति रखने वालों ने इसे लेकर खूब बवाल मचाकर पैलेट गन का उपयोग प्रतिबंधित करवा दिया वरना अब तक तो ये बीमारी काफी कुछ ठीक हो चुकी होती। अब जबकि पत्थरबाजों ने सुरक्षा बलों के साथ-साथ स्कूली बच्चों और पर्यटकों पर हमले शुरू कर दिए हैं तब ये जरूरी हो गया है कि उनके हाथ तोडऩे जैसी नीति पर काम फिर शुरू किया जाए। केंद्र सरकार की तरफ  से जो कोशिशें होती भी हैं वे मेहबूबा सरकार की ढिलाई से बेकार चली जाती हैं। भाजपा चूंकि खुद भी राज्य सरकार का हिस्सा है इसलिए वह मुख्यमंत्री या उनकी पार्टी पीडीपी पर ठीकरा फोड़कर अलग नहीं बैठ सकती। समय आ गया है जब भाजपा को अपनी नीति बदलते हुए मेहबूबा मुफ्ती से दो टूक बात करनी चाहिए क्योंकि कश्मीर घाटी के भीतर तो भाजपा का कोई जनाधार बनने वाला है नहीं चाहे वह सिर के बल खड़ी ही क्यों न हो जाए किन्तु यही स्थिति बनी रही तब जम्मू क्षेत्र में भी उसका प्रभाव घटते देर नहीं लगेगी। सीमा पर फौज पाकिस्तानी गोलीबारी का जो मुंहतोड़ जवाब दे रही है उसका असर दिखाई तो दे रहा है लेकिन ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि एक सर्जिकल स्ट्राइक छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया जिससे केंद्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय मिलता जबकि पाकिस्तान युद्धविराम तोडऩे और घुसपैठ करवाने का कोई मौका नहीं छोड़ता। ऐसे में पत्थरबाजी की घटनाओं में अचानक वृद्धि होना किसी नए खतरे का इशारा है। इसके पहले कि स्थिति और गम्भीर हो उससे निबटने के पुख्ता इंतज़ाम कर लिए जाने चाहिए। पैलेट गन या जो भी अन्य उपाय हों उनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हुए जब तक पत्थर फेंकने वालों के हाथ नहीं तोड़े जाते तब तक घाटी में जाने वाले पर्यटकों की सुरक्षा खतरे में पड़ी रहेगी। आतंकवादी संगठन सुरक्षा बलों की सख्ती से बौखलाहट में आकर अब कश्मीरी जनता और बच्चों के बाद सैलानियों के खून के  प्यासे तक हो रहे हैं तो उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जैसा नरभक्षी भेडि़ए के साथ किया जाता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment