Saturday 5 May 2018

शाह की बातें भाजपा की चिंता का संकेत

अमित शाह विचारक नहीं माने जाते। बावजूद इसके आंकड़ों की दृष्टि से वे भाजपा के सर्वाधिक सफल अध्यक्षों में अव्वल कहे जा रहे हैं तो महज इसलिए कि सफलता से बढ़कर कोई सफलता नहीं होती वाली कहावत को उन्होंने सही अर्थों में चरितार्थ कर दिखाया। प्रादेशिक राजनीति से निकलते हुए अचानक पार्टी का सिरमौर बनने तक तो ये कहा जाना गलत नहीं था कि नरेंद्र मोदी की वजह से उन्हें वह सब हासिल हो सका किन्तु पद पर आने के बाद श्री शाह ने खुद को साबित करने में जो पुरुषार्थ किया वह निश्चित रूप से उनके खाते में जायेगा। कतिपय विफलताओं के बावजूद वे अगले मोर्चे पर फिर हिम्मत के साथ जिस तरह डट जाते हैं उसके कारण पराजयबोध उन पर हावी नहीं हो पाता। गत दिवस वे मप्र आये। भोपाल में निचले स्तर से लेकर प्रथम पंक्ति के नेताओं से प्रत्यक्ष संवाद किया और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कोर कमेटी से भी मंत्रणा की। आम तौर पर जो नेता बोलते हैं वह सब श्री शाह बोले लेकिन उन्होंने एक बात बड़े ही मार्के की कही कि भाजपाई बड़ी लकीर खींचें। उनका आशय ये रहा कि विपक्ष की ज्यादा आलोचना की जगह अपनी उपलब्धियां जनता तक पहुचाएं। दूसरी बात उन्होंने ये कही कि भाजपा चेहरे पर नहीं वरन् संगठन के बल पर चुनाव लड़ेगी। दोनों बातें बेहद महत्वपूर्ण हैं। बड़ी लकीर खींचने जैसी समझाइश देकर पार्टी अध्यक्ष ने स्पष्ट संकेत दिया कि कार्यकर्ता सकारात्मक दृष्टिकोण लेकर मैदान में उतरें वहीं ये इशारा भी कर दिया कि किसी नेता विशेष की गणेश परिक्रमा करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला क्योंकि सारे निर्णय संगठन अपने आकलन के आधार पर लेगा। प्रश्न ये है कि क्या श्री शाह की नसीहत उन भाजपाइयों के पल्ले पड़ी जो भयंकर गर्मी के बावजूद दौड़े-दौड़े भोपाल जा पहुंचे। मप्र में 2003 से भाजपा सत्ता में है। इस वजह से वह कांग्रेस या अन्य किसी की आलोचना कर जनता को प्रभावित नहीं कर सकेगी क्योंकि जनता ने उसे भरपूर समय और अवसर दिया है। प्रश्न ये है कि क्या जैसा श्री शाह चाह रहे हैं भाजपाई शिवराज सरकार की उपलब्धियां लेकर जनता में जाने के लिए तैयार होंगे? सही बात ये है कि जिन बुराइयों के लिए भाजपा पहले कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया करती थी उन्हीं में वह खुद खड़ी हो गई। रही बात चेहरे की जगह संगठन की अगुआई में लडऩे की तो इसका कारण ये लगता है कि शिवराज सिंह का आकर्षण पहले जैसा रहा नहीं और उन्होंने किसी दूसरे को पनपने नहीं दिया जिसका खामियाजा है कि भाजपा के पास कोई विकल्प नहीं बचा वरना वह अब तक मुख्यमंत्री बदल चुकी होती। उस दृष्टि से श्री शाह की उपदेशात्मक सलाहें भाजपा की चिंताओं को प्रगट करने वाली हैं। शिवराज जी को जरूर ये अच्छा नहीं लगा होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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