Saturday 28 July 2018

5 दिन में फांसी : अनुकरणीय फैसला

देश के कोने - कोने से नित्य आने वाली दुष्कर्म की खबरें मन को विचलित भी करती हैं और भयभीत भी। मासूम बच्चियों के साथ जो लोग दरिंदगी करते हैं उन्हें मनुष्यों की इस दुनिया में रहने का अधिकार नहीं है और इसीलिए जब बलात्कारी को मृत्युदंड देने संबंधी कानून बना तो अपवाद स्वरूप कुछ लोगों को छोड़कर आम तौर पर इसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हुई। उसके बाद अनेक मामलों में आरोपियों को फांसी की सजा दी गई किन्तु मप्र के कटनी जिले में गत दिवस एक ऑटो चालक को फांसी की सजा सुनाया जाना अपने आप में अनोखा प्रकरण कहा जायेगा। राजकुमार कोल नामक उक्त आरोपी एक बच्ची को स्कूल ले जाने की बजाय किसी सुनसान जगह ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। गत 4 जुलाई को घटित वारदात पर 7 जुलाई को आरोपी गिरफ्तार हुआ। 12 को पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया। 23 से सुनवाई शुरू हुई और लगातार तीन दिनों तक चली। अदालत के निर्देश पर सभी गवाह समय पर पहुंचे और 5 दिन के भीतर आरोपी को मौत की सजा सुना दी गई। यद्यपि उसे फांसी पर लटकाए जाने में  समय लगेगा क्योंकि अभी न्याय प्रक्रिया की कई पायदानें शेष हैं। इसके पहले भी कई अदालतें बलात्कार के प्रकरणों में महीने भर के भीतर फांसी दे चुकी हैं। जिसमें सबसे पहले भोपाल की अदालत ने 15 दिनों के अंदर फैसला सुनाकर उदाहरण पेश किया था। यद्यपि कानून के जानकार ये कह सकते हैं कि दुष्कर्म के प्रत्येक मामले का निपटारा निचली अदालत से इतनी जल्दी किया जाना सम्भव नहीं होगा क्योंकि विवेचना और साक्ष्य एकत्र करने में समय लगता है। बावजूद इसके कटनी की जिस न्यायाधीश ने महज 3 दिनों तक  लगातार सुनवाई करने के उपरांत आरोपी बलात्कारी को फांसी सुनाई वे अभिनंदन की पात्र हैं।  उनके फैसले का ये हिस्सा काफी मार्मिक है कि पीडि़ता के जीवनकाल में उसके सामने आरोपी के आने पर उसे होने वाला मानसिक कष्ट मौत के बराबर ही होगा। इसलिए उसे मृत्युदंड देना ही उचित है क्योंकि मानव अधिकार मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण व्यक्ति के लिए हैं न कि अमानवीय कृत्य करने वाले के लिये। उक्त फैसले के विरुद्ध अपील में बचाव पक्ष के वकील ये तर्क दे सकते हैं कि निचली अदालत ने जल्दबाजी में निर्णय किया किन्तु समय आ गया है जब ऐसे प्रकरणों को इसी तरह निपटाया जावे। यही नहीं अपील होने पर ऊपरी अदालतें भी एक समयसीमा तय करते हुए आरोपी को उसके सही अंजाम तक पहुंचाने की पहल करें क्योंकि इस तरह के नरपिशाचों को ज्यादा दिनों तक जिंदा रखा जाना भी जघन्य अपराध जैसा ही है। ये कहना गलत नहीं होगा कि कटनी की महिला न्यायाधीश ने भावनावश प्रकरण के निपटारे में अतिरिक्त शीघ्रता दिखाई होगी किन्तु अभियोजन पेश करने एवं अन्य आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने में पुलिस ने जिस मुस्तैदी का परिचय दिया वह भी प्रशंसनीय है। मप्र दुष्कर्म के मामलों में जिस तरह देश के अग्रणी राज्यों में शुमार हुआ उसके मद्देनजर जरूरी प्रतीत होता है कि उस जैसे घिनौने कृत्य के लिए दंड प्रक्रिया को त्वरित गति से पूरा किया जावे। कटनी की महिला न्यायाधीश सुश्री माधुरी राजलाल ने पूरे देश के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर दिया है। सभी प्रकरण एक जैसे नहीं होते किन्तु इतना तो साबित हो ही गया कि यदि इच्छाशक्ति और कर्तव्यबोध हो तो न्याय प्रक्रिया को तेज किया जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दुष्कर्मी की सामाजिक और आर्थिक हैसियत इसमें आड़े नहीं आएगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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