Tuesday 17 July 2018

राजनीति की दम पर पल रहे बाबा , ज्योतिष और तांत्रिक


वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन (शिक्षा) मंत्री रहे डॉ. मुरलीमनोहर जोशी ने जब तंत्र-मंत्र और ज्योतिष को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की कोशिश की तब देश के  प्रगतिशील तबके ने उनका जमकर विरोध किया। डॉ. जोशी भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक रह चुके हैं। राजनीतिक नेताओं ने इसे दकियानूसी सोच कहकर जोशी जी का मज़ाक उड़ाया लेकिन मप्र के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जो दिखाई दे रहा है उससे लगता है कि भले ही कितना भी  विरोध हो किन्तु हमारे देश की राजनीति धर्म, तंत्र-मंत्र और ज्योतिष से बहुत ही निकटता से जुड़ी हुई है। गुजरात और फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी का मंदिर-मठों में जाकर पूजन अर्चन करना ये दर्शाता है कि उन जैसा अत्याधुनिक व्यक्ति भी समझ बैठा है कि आम भारतीय को कौन सी बातें मनोवैज्ञानिक तौर पर प्रभावित करती हैं? उसके पूर्व उप्र के चुनाव अभियान की शुरुवात भी श्री गांधी ने अयोध्या में पूजन के उपरांत की थी। वे अकेले नेता नहीं हैं जो ऐसा करते हों। अब तो केरल में वामपंथी भी समझ गए हैं कि नास्तिकतावाद से ऊपर उठकर जनता की धार्मिक भावनाओं की कद्र न करने पर उनका प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ता जाएगा। लौटकर मप्र आएं तो हाल ही में कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भेंट किये नारियल को उनके द्वारा सड़क पर फेंक दिए जाने का वीडियो प्रसारित हो जाने से ये आरोप लग गया कि उन्होंने पवित्र नारियल का अपमान किया। ये भी कहा गया कि श्री सिंधिया ने किसी तांत्रिक कारण की वजह से वह नारियल रखने के बजाय  चलती कार से बाहर फेंक दिया। दूसरी तरफ  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उज्जैन से प्रारंभ जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुवात उनके रथ के पहिये के नीचे नारियल रखकर फोडऩे से किये जाने को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बड़े ही आधुनिक ख्यालों के समझे जाते हैं किन्तु उन्होंने उज्जैन में स्थापित ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर को पत्र लिखकर अपनी पार्टी की विजय के लिए आशीर्वाद मांगा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी जहां जाते हैं मंदिर-मठ में अनुष्ठान करना नहीं भूलते। अनेक ऐसे नेता भी हैं जो ऊपर से तो बड़े ही अनीश्वरवादी दिखाई देते हैं लेकिन उनकी पत्नी एवं परिजन पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और तांत्रिक उपायों का सहारा लेते हैं। इंदिरा गांधी जैसी प्रगतिशील राजनेता भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी के प्रभाव में रहीं। चंद्रशेखर यूँ तो खांटी समाजवादी थे लेकिन चंद्रास्वामी जैसे तांत्रिक के साथ उनका निकट संबंध सर्व विदित था। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव भी चन्द्रास्वामी के शिष्य थे। आजकल राजनीति में साधु-संतों की भीड़ भी बहुत बढ़ गई है। उनमें से कुछ तो अपने पूजा-पाठ को लेकर उपहास का पात्र भी बनते हैं। दिल्ली या किसी प्रदेश की राजधानी में ज्योतिषियों और तांत्रिकों को राजनेताओं के इर्दगिर्द मंडराते आसानी से देखा जा सकता है। प्रश्न ये भी है  कि जब अधिकतर राजनेता अपने भाग्य और भविष्य को संवारने के लिए बाबाओं, तांत्रिकों, और ज्योतिषियों के फेर में फंसने के लिए तैयार बैठे रहते हैं तब फिर इन विषयों की विधिवत शिक्षा में क्या बुराई है? बड़े नेताओं की देखासीखी उनके चेले-चपाटी भी ऐसे ही किसी न किसी से चिपककर अपना बेड़ा पार करवाना चाहते हैं। पहले टिकिट, फिर चुनाव जीतना और जीतने के बाद मंत्री या कोई अन्य पद हासिल के लिए गृह-नक्षत्र सहित अन्य विघ्न बाधाओं को दूर करने हेतु बाबा, ज्योतिषी अथवा तांत्रिक की सेवाएं लेना राजनीति का अभिन्न हिस्सा बन गया है। सिद्ध कहे जाने वाले धार्मिक स्थानों पर अनुष्ठान करते हुए मन्नत मांगना भी इसमें शामिल है। बंगाल में तीन दशक से ज्यादा राज करने वाले कामरेड ज्योति बसु तो साम्यवादी विचारधारा के अनुयायी होने की वजह के ईश्वर को काल्पनिक और धर्म को अफीम मानते रहे लेकिन उनकी पत्नी पूरी तरह आस्तिक थीं और दुर्गा पूजा में पूरे विधि-विधान का पालन करती रहीं। इससे भी बढ़कर बात ये है कि हमाम में अधिकतर लोग एक सी अवस्था में होने पर भी दूसरों का मजाक बनाना नहीं भूलते। मप्र में शिवराज जी जहां कमलनाथ और श्री सिंधिया पर दकियानूसी होने का आरोप लगा रहे हैं तो कांग्रेस पलटकर मुख्यमंत्री के उज्जैन से यात्रा शुरू करने को लेकर कटाक्ष करने से नहीं चूक रही। राजनीतिक जमात ज्योतिषियों, बाबाओं और तंत्र विद्या के जानकारों के फेर में कब से आई ये तो शोध का विषय है किंतु ये सच है कि चंद अपवाद छोड़कर अधिकतर राजनेता इन सब में विश्वास रखते हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय राजनीति चाहकर भी धर्म और उससे जुड़े विश्वास अथवा अंधविश्वास से दूर नहीं जा सकती क्योंकि आम भारतीय के मन पर बचपन से पडऩे वाले संस्कारों में  ऐसा करना सिखाया जाता है। इसे देखते हुए अच्छा ही होगा यदि डॉ. जोशी की इच्छानुसार ज्योतिष, तंत्र-मंत्र और कर्मकांड की शिक्षा दी जाए जिससे योग्यता प्राप्त व्यक्ति इस क्षेत्र में आ सकें। केवल हिन्दू धर्म के अनुयायी नेता ही अंधविश्वासी नहीं होते। और इस क्षेत्र में धर्म की सीमाएं भी रुकावट नहीं बनतीं। बड़ी संख्या में हिंदु नेता  मस्जि़द और मज़ारों पर जाकर चादर चढ़ाते देखे जा सकते हैं। जो खुद नहीं जाते वे अपने प्रतिनिधि के हाथों भेज देते हैं। शिवराज सिंह चौहान हर साल एक-दो बार अजमेर शरीफ  में चादर भिजवाना नहीं भूलते। लोगों को अन्धविश्वास से बचने की सलाह देने वाले अनेक प्रशासनिक अधिकारी और न्यायाधीश तक ज्योतिषियों और तांत्रिकों की सलाह लेते दिख जाते हैं। भले ही आधुनिक और वैज्ञानिक सोच वाले ज्योतिष, तंत्र-मंत्र और कर्मकांड को पिछड़ेपन से जोड़कर देखते हैं लेकिन देश के स्वनामधन्य नेता इन विधाओं के सबसे बड़े संरक्षक बने हुए हैं। इसीलिए समाज के साधारण लोग भी उनके फेर में फंसने के लिए लालायित रहते हैं। दमोह और सागर के बीच पथरिया नामक छोटे से स्टेशन पर अधिकतर रेलगाडिय़ां केवल इसलिए रुकना शुरू हुईं क्योंकि वहां स्व. विद्याचरण शुक्ल के आध्यात्मिक गुरु रहा करते थे। ये सब देखते हुए बेहतर हो इन प्राचीन विद्याओं के प्रति राजनेता अपनी राय खुलकर व्यक्त करें क्योंकि उनक़ा अनुसरण करते हुए अन्य लोग भी इनके फेर में फंसते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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