Monday 30 July 2018

सरकारी बंगला :उनको दिया तो इनको भी दे देते


दिग्विजय सिंह राजनीतिज्ञ कैसे भी हों किन्तु मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं। उस दृष्टि से अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य सरकार यदि कोई सुविधा प्रदान करती है तब श्री सिंह को भी वह मिलनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बीते दिनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी बंगले खाली करने सम्बन्धी जो निर्णय किया गया उसके तहत भोपाल में पूर्व मुख्यमंत्रियों क्रमश: कैलाश जोशी, बाबूलाल गौर, दिग्विजय सिंह और उमाश्री भारती से बंगले खाली करवाने का आदेश जारी किया गया था। चूंकि फैसला सर्वोच्च न्यायालय का था इसलिए किसी ने ज्यादा चूँ-चपड़ नहीं की। लेकिन बीते सप्ताह शिवराज सरकार ने कैलाश जोशी, बाबूलाल गौर एवं उमाश्री भारती को दोबारा बंगला आवंटित कर दिया। लेकिन इस बार उनकी श्रेणी बदल दी गई। जोशी जी समाजसेवी हो गए तो गौर साहब वरिष्ठ विधायक वहीं उमा जी को भी विशिष्ट श्रेणी में सरकारी आवास की सुविधा बहाल कर दी गई। बहरहाल उनसे पहले के अपेक्षा कुछ ज्यादा किराया लिया जावेगा। लेकिन आश्चर्य ये है कि दिग्विजय सिंह को उपकृत नहीं किया गया। उन्होंने उक्त तीनों की तरह राज्य सरकार से बंगला मांगा या नहीं ये तो स्पष्ट नहीं है लेकिन तब भी सरकार को चाहिए था कि वह खुद होकर उनसे उस बारे में पूछ लेती या फिर राज्यसभा सदस्य होने के नाते उन्हें बंगला प्रदान करने की सौजन्यता दिखाती। हमारा आशय श्री सिंह से किसी भी प्रकार की हमदर्दी जताना नहीं अपितु राजनीतिक बड़प्पन की अपेक्षा करना है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सभी वर्गों में स्वागत किया गया था। जब राज्य की चारों पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले खाली करने के आदेश मिले तब भी लोग प्रसन्न हुये। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को बेअसर करते हुए जब तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला आवंटित कर दिया गया तब दिग्विजय सिंह की उपेक्षा किये जाने का औचित्य समझ से परे है। हो सकता है इसके पीछे कोई तकनीकी या प्रक्रिया साम्बन्धी अड़चन रही हो लेकिन बेहतर होता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद होकर श्री सिंह को भी वही सुविधा प्रदान करने की दरियादिली दिखाते। मप्र में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल पड़ी हैं। दिग्विजय सिंह कांग्रेस के प्रमुख नेता हैं। उन्हें देशद्रोही कहे जाने को लेकर मचा विवाद अभी थमा नहीं है। श्री सिंह बेहद अनुभवी और चतुर राजनेता होने के नाते स्थितियों का फायदा उठाने में सिद्धहस्त हैं। बंगला आवंटित न होने पर उनकी प्रतिक्रिया अभी तक तो बेहद संयत रही है लेकिन आगामी दिनों में वे इसे एक चुनावी मुद्दा बना सकते हैं। हो सकता है न भी बनाएं किन्तु अभी भी अच्छा होगा शिवराज सिंह इस गलती को सुधारें और दिग्विजय सिंह को भी बंगला देने की पेशकश करें। स्मरणीय है हाल ही में शिवपुरी में एक परियोजना के शिलान्यास के अवसर पर स्थानीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को न बुलाये जाने पर उठे विवाद में बजाय अडिय़लपन दिखाने के केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने लोकसभा में श्री सिंधिया से क्षमा याचना करते हुए मामले का सुखद पटाक्षेप कर दिया। उनसे सीख लेते हुए शिवराज सिंह को भी चाहिए था कि जिस तरह अपनी पार्टी के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को उन्होंने बंगला उपलब्ध करवाने का रास्ता निकाला वैसा ही  दिग्विजय सिंह के लिए भी करते। हो सकता है आगे वैसा हो भी जाये लेकिन फिलहाल तो यही कहा जा रहा है कि मप्र सरकार ने भाजपाई होने से श्री जोशी, श्री गौर और उमा जी को तो उपकृत कर दिया लेकिन कांग्रेसी होने की वजह से दिग्विजय सिंह को वंचित रखा। वैसे होना तो ये चाहिए था कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का पालन ईमानदारी से करते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों को प्रिवीपर्स की शक्ल में मिलने वाली सुविधाएं और अन्य विशेषाधिकार खत्म कर दिए जाते किन्तु जब बंदरबांट करना ही है तब फिर अपना पराया छोड़कर ऐसा निर्णय करना था जिससे कोई उँगली न उठा सके। वैसे शिवराज सिंह सौजन्यता और शिष्टता के मामले में काफी सतर्क और निष्पक्ष रहते हैं लेकिन उनकी सरकार का ये निर्णय उनकी प्रचलित छवि के विपरीत है, खासतौर पर जब अनेक छुटभैये भाजपाई भोपाल में सरकारी आवास की सुविधा ले रहे हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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