Tuesday 10 July 2018

सर्वोच्च न्यायालय :सीधे प्रसारण का स्वागत


फिल्मों में अदालत के दृश्य जितने नाटकीय होते हैं उतने असलियत में नहीं रहते। फिल्मकार जो कुछ करता है उसके पीछे दर्शकों को बांधे रखने का उद्देश्य होता है जबकि असली अदालत में होने वाली बहस कानूनी मुद्दों, दस्तावेजों और गवाहों पर केंद्रित होती है जिसका मकसद मनोरंजन न होकर न्याय करना है। उस दृष्टि से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपना चैनल प्रारम्भ करने का निर्णय अच्छी खबर है क्योंकि इससे देश भर में फैले अधिवक्ताओं और कानून के छात्रों को जहां बहुत कुछ जानने और सीखने मिलेगा वहीं सुशिक्षित और जागरूक किस्म के लोगों को सर्वोच्च स्तर पर चलने वाली न्याय प्रक्रिया का प्रत्यक्ष अवलोकन करने का अवसर घर बैठे मिलने की सहूलियत रहेगी । हाल ही में न्यायपालिका की विश्वसनीयता और पारदर्शिता को लेकर काफी हल्ला मचा ।  बड़े - बड़े वकील किस तरह जिरह करते हुए अदालत पर प्रभाव डालते हैं उसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चला करती हैं । कुछ विशेष प्रकरणों की सुनवाई का सीधा प्रसारण किये जाने सम्बन्धी व्यवस्था से देश में कानून के प्रति रुचि और सम्मान दोनों बढ़ेंगे । न्यायपालिका को लेकर लोगों के मन में आदर और विश्वास तो यथावत है किंतु ये कहना गलत नहीं होगा कि कतिपय घटनाओं की वजह से उसमें कमी आई है । न्यायाधीशों की नियुक्ति  कालेजियम के जरिये होने को लेकर भी न्यायपालिका पर उंगलियां उठी हैं । कई पूर्व न्यायाधीशों ने  इस बारे में खुलकर आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना जैसा मामला भी सामने  आया । टीवी के जरिये चुनिंदा मामलों की सुनवाई का सीधा प्रसारण न्यायपालिका को सीधे जनता से जोडऩे में सहायक होगा इसलिये इस निर्णय का स्वागत किया जाना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment