Tuesday 10 July 2018

दुष्कर्म : दंड प्रक्रिया को संक्षिप्त और तेज किया जावे

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्भया कांड के तीन दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखने का निर्णय देकर अपने कर्तव्य का निर्वहन कर दिया। दोषियों ने पहले दिए गए फैसले पर पुनर्विचार की जो अपील की थी उसे न्यायालय ने सिरे से खारिज कर दिया। इस तरह उन तीनों की फांसी का रास्ता साफ  हो गया लेकिन जो जानकारी आईं उसके अनुसार अभी उनके पास सर्वोच्च न्यायालय में अपील का एक अवसर और है जो 5 न्यायाधीशों की अदालत में होगी। वहां से भी निराशा हाथ लगने पर राष्ट्रपति के पास दया याचिका अंतिम विकल्प होगा। लेकिन जैसा अब तक देखा गया उसके अनुसार तो अदालत का रुख बदलने का कोई अंदेशा नहीं है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति भी दया याचिका को स्वीकार नहीं करेंगे। इन सबके चलते ये माना जा रहा है कि तीनों दोषियों की जि़ंदगी फांसी के तख्ते पर लटककर खत्म होना तय है लेकिन 16 दिसम्बर 2012 को हुए उस वीभत्स अपराध के दोषी इतने बरस बाद भी जिंदा हैं ये सुनकर आश्चर्य कम और दुख ज्यादा होता है। माना कि न्याय प्रक्रिया की अपनी कार्यप्रणाली और मर्यादाएं हैं किंतु निर्भया काँड कोई साधारण अपराधिक कृत्य नहीं था। जिन लोगों ने उस युवती के साथ अमानुषिक अत्याचार किये उन्हें इतने लंबे समय तक जिंदा रखने वाली व्यवस्था पर भी सवाल उठना गलत नहीं है। कहा जा रहा है कि यदि सब कुछ त्वरित गति से चला तब भी तीनों दोषियों को मृत्युदंड मिलने में कम से कम 6 से 8 महीने लग जाएंगे। वह भी तब जब राष्ट्रपति उसकी दया याचिका को प्राथमिकता के आधार पर अस्वीकृत कर दें। निर्भया कांड के बाद केंद्र और राज्य दोनों ने दुष्कर्म के विरुद्ध कड़े कानून बनाने के साथ ही इन पर फास्ट ट्रेक कोर्ट जैसे जल्दी फैसला करने की व्यवस्था तो बना दी जिसकी वजह से कुछ मामलों में तो निचली अदालत में महीने दो महीने में ही सजा सुना दी गई किन्तु उसके बाद अपील दर अपील होने से अंतिम फैसला होने तक कई बरस बीत जाते हैं। जनअपेक्षा है कि दुष्कर्म सरीखे जघन्य अपराध के दोषियों को दंडित करने की समूची कानूनी प्रक्रिया एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरी की जाए जिससे अपराध करने वालों को कानून का भय लगने के साथ ही समाज को भी ये सन्देश जाए कि बलात्कार जैसे अपराध को कानून भी असाधारण मानकर उस पर जल्द कार्रवाई करता है। निर्भया कांड के पहले भी दुराचार के अनेकानेक चर्चित प्रकरण सामने आए थे लेकिन इसमें जिस तरह का अमानुषिक कृत्य दोषियों द्वारा किया गया वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था। पूरा देश उसे लेकर गुस्से में उबल पड़ा था। संसद तक आवेश में आ गई जिसके बाद दुष्कर्म पर मृत्युदंड दिए जाने जैसा कानून अस्तित्व में आया। इसका असर भी अदालती फैसलों में देखने मिला। जनमत के दबाव के चलते न्यायाधीश भी दुष्कर्मियों को सजा सुनाने में पूर्वापेक्षा कम समय लेने लगे किन्तु अपील और दया याचिका जैसी प्रक्रिया में होने वाला विलम्ब भी दूर होना चाहिये। इसके लिए जरूरी है कि दुष्कर्म सम्बन्धी प्रकरण में निचली अदालत से सर्वोच्च न्यायालय तक चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया में पायदानें कम कर दी जाएं। सीबीआई की तरह से ही दुष्कर्म के मामलों के लिए विशेष न्यायालय बनाकर एक समय सीमा निश्चित करना जरूरी है। ऐसा लगता है कानूनी प्रक्रिया की कछुआ चाल से अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं। बलात्कार करने वाले का ज्यादा समय जि़ंदा रहना किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक से कम नहीं है। यद्यपि अनेक लोग हैं जो उन्हें मृत्युदंड देने का विरोध कर रहे हैं किन्तु ऐसे लोग भी खुलकर सामने आ रहे हैं जिनका कहना है कि दुष्कर्मियों को फांसी किसी सार्वजनिक स्थान पर दी जाने चाहिए जिससे आम इंसान देखे कि उसका अंत कैसा होता है? निर्भया कांड के बाद यद्यपि अदालतें पहले की अपेक्षा सख्त हुई हैं तथा उन्होंने निर्णय प्रक्रिया में भी तेजी दिखाई है किंतु अभी भी स्थिति अपेक्षानुसार नहीं है। दुष्कर्म की घटनाएं जिस तेजी से बढ़ रही हैं वह मानसिक विकृति का ही परिणाम है किंतु ऐसा करने वालों के साथ लीक से हटकर व्यवहार जरूरी है। एक सभ्य समाज में किसी दुराचारी के प्रति किसी भी तरह की रियायत या सहानुभूति भी एक तरह का अपराध ही है। आश्चर्य तो उन वकीलों पर भी होता है जो निर्भया कांड जैसे दहला देने वाले कृत्य के दोषियों को बचाने के लिए ये तर्क  देते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनकी पुनर्विचार याचिका रद्द करने के पीछे जनमत और समाचार माध्यमों द्वारा बनाया गया दबाव है। देश चाह रहा है कि इन नरपिशाचों को जितनी जल्दी हो सके फांसी पर लटका दिया जावे। इसके साथ ही नाबालिग होने की वजह से मृत्युदंड से बचकर जेल से बाहर आ चुके चौथे दोषी को भी सामान्य जीवन जीने का कोई अवसर न मिले क्योंकि आरोप पत्र के अनुसार निर्भया के साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी उसी ने की थी। भले ही सरकार ने दुष्कर्म के मामले में बालिग की आयु सीमा घटा दी हो किन्तु निर्भया कांड का जो नाबालिग अपराधी सस्ते में छूटकर बाहर आ गया उसके साथ भी कोई मुरव्वत खतरनाक होगी। ध्यान देने वाली बात है कि बलात्कार के आरोपियों में किशोरावस्था के लड़कों की संख्या में काफी तेजी आई है जो चिंता का बड़ा कारण होना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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