कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कल रो पड़े। गठबंधन सरकार के मुखिया बनने के बाद की परिस्थितियों ने उनके आंसू निकाल दिए। सहयोगी काँग्रेस ने उनके दुखी होने पर तंज कसा है कि मुख्यमंत्री को खुश रहना चाहिए वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल भाजपा ने कुमारस्वामी के आंसुओं को अवार्ड मिलने लायक बताकर उनका मजाक उड़ाया है। मुख्यमंत्री वाकई रोये या उन्होंने इसका अभिनय किया ये तो वही बेहतर बता सकते हैं लेकिन जिस तरह जम्मू कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का गठबंधन बेमेल विवाह जैसा था ठीक वैसे ही कर्नाटक में काँग्रेस द्वारा फेंके दाने को जिस प्रकार कुमार ने लपका उसमें कोई सैद्धांतिक सोच तो थी नहीं। फिलहाल दोनों ही पार्टियां आगामी चुनाव के मद्देनजर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी हुई हैं। गठबंधन कब तक चलेगा ये भी नहीं कहा जा सकता। ऐसे में शुरुवाती दौर में ही कुमार स्वामी ने आंसू पोछते हुए जो सन्देश दिया वह बेहद साफ है। उन्होंने शंकर जी की तरह विषपान करने की जो बात कही वह सरासर गलत है क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें किसी ने मजबूर नहीं किया था। सत्ता की लालच में जिसे वे अमृत समझकर गटक गए अब यदि वह उन्हें विष लग रहा है तो उसके लिए कोई दूसरा कसूरवार नहीं है। ये पहला अवसर नहीं जब देवेगौड़ा परिवार सत्ता के लालच में कांग्रेस के शिकंजे में फंसा हो लेकिन दूसरी तरफ ये भी सच है कि कुमार यदि सत्ता में न आते तो वे कर्नाटक की राजनीति में हांशिये पर सिमटने की स्थिति में आ चुके थे। उस लिहाज से तो ये सत्ता उनके लिए अमृत जैसी हो गई। वे खुद भी जानते हैं ये ज्यादा दिन रहेगी नहीं इसीलिए वे इस तरह का नाटक दिखाकर सहानुभूति बटोरना चाह रहे हैं।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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