Friday 27 July 2018

लेकिन बीमारी और मौत हड़ताल नहीं करती


हड़ताल भी एक मौलिक अधिकार है। शासन जब उचित मांगों पर समय रहते ध्यान नहीं देता तब कर्मचारियों को मज़बूर होकर इस अंतिम अस्त्र का उपयोग करना पड़ता है। मप्र के जूनियर डॉक्टर इन दिनों हड़ताल पर हैं। इसके चलते स्वास्थ्य सेवाओं पर बुरा असर पड़ रहा है। मरीज इलाज के लिए भटक रहे हैं। ऑपरेशन जैसे आपातकालीन कार्यों में भी रुकावट आ रही है। खबर है इस सबके कारण कई लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। राज्य सरकार हड़तालियों को लेकर काफी सख्त है। निलंबन, निष्कासन और पंजीयन रद्द करने जैसी कार्रवाई भी की गई। आवश्यक सेवाओं सम्बन्धी दबाव भी बनाया गया लेकिन उसका भी आंशिक असर ही हुआ। कुल मिलाकर दोनों तरफ  से तलवारें खिंची हुई हैं। देखासीखी नर्स एवं अन्य कर्मचारी भी हड़ताल का राग अलापने में जुट गए थे। पहले से ही बीमार चल रही सरकारी मेडीकल कालेजों की स्वास्थ्य सेवाएं इस वजह से और बुरी स्थिति में आ गईं। इसके लिए सरकार ज्यादा जिम्मेदार है या डॉक्टर ये विवाद का विषय हो सकता है किंतु दोनों की खींचातानी में बेचारी जनता इलाज के लिए तरस भी रही है और भटक भी रही है। साधन संपन्न लोग अव्वल तो मेडीकल कॉलेजों के अस्पताल जाते नहीं और जो जाते भी हैं वे तो हड़ताल के दौरान निजी चिकित्सकों की सेवाएं ले भी लेते हैं किंतु साधनहीन मरीज़ों के लिए जो मुसीबत खड़ी हो गई है वह लाइलाज है। ये पहला अवसर नहीं है जब जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर गए हों। चाहे जब इस आशय के समाचार आते रहते हैं। लेकिन ये चूँकि चुनाव का अवसर है इसलिए हड़तालियों को लग रहा है कि इस समय जो मांगोगे वही मिलेगा का मौसम है। इसलिए सरकारी सख्ती के बावजूद वे भी डटे हुए हैं। क्या होगा ये कोई नहीं बता पा रहा लेकिन इस विवाद में सही गलत का निर्णय तो करना ही पड़ेगा क्योंकि न तो दोनों पक्ष पूरी तरह सही हो सकते हैं और न गलत। लेकिन ये कहना पूरी तरह सच है कि डॉक्टरों के आंदोलन के प्रति जनसहानुभूति न के बराबर है क्योंकि उनकी सेवाएं महज एक सरकारी नौकरी नहीं अपितु इंसानी पीड़ा दूर करने और जीवन रक्षा से जुड़ी हुई सेवा है। डॉक्टर बनने का अर्थ केवल शैक्षणिक उपाधि अर्जित करना नहीं वरन  ऐसे पेशे को चुनना है जो मानवीय संवेदनाओं से भरपूर हो और जिसमें पर पीड़ा के प्रति करुणा का भाव हो। दर्द से कराहते किसी व्यक्ति की चिकित्सा से इंकार करना उस पेशे से जुड़ी पवित्र भावना का अपमान है। ईश्वर न करे यदि किसी जूनियर डक्टर के परिवार का कोई सदस्य इस हड़ताल के परिणामस्वरूप बिना इलाज के चल बसे तब भी क्या वह इसको उचित ठहरायेगा?  हड़ताली डॉक्टरों की मांगें और तर्क अपनी जगह पूरी तरह सही हो सकते हैं लेकिन हर पेशे का अपना महत्व होता है और उस दृष्टि से चिकित्सक का ये कर्तव्य ही नहीं धर्म भी है कि उसके रहते कोई बीमार व्यक्ति बिना इलाज के न रहे। उनकी हड़ताल सरकार पर दबाव बनाने के लिए की जा रही है किंतु उसके कारण दब तो बेचारी जनता रही है। हड़ताल कब तक चलेगी, सरकार माँगे मानेगी या हड़तालियों को अपने कदम पीछे खींचने को मज़बूर कर देगी, ये पूरी तरह से अनिश्चित है। आंदोलन में सेंध लगने की बात भी सामने आई है लेकिन उसके कारण मेडीकल कालेजों के अस्पतालों में इलाज का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ। जिससे प्रतिदिन सैकड़ों मरीज हलाकान हो रहे हैं। जूनियर डॉक्टर जनता की सहानुभूति हासिल करने के लिए अपने स्तर पर ओपीडी संचालित करने जैसा कदम भी उठाते हैं लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही होता है। ऑपरेशन सुविधा का रुक जाना बहुत बड़ी समस्या है जिसका कोई विकल्प नहीं होने से अकल्पनीय हालात पैदा हो जाते हैं। ये सब देखकर हड़ताली डॉक्टरों को जनसुविधा का ध्यान रखते हुए अपने आंदोलन को ढर्रे से हटाकर कुछ ऐसा रूप देना चाहिए जिससे उनका पेशा कलंकित न हो। उन्हें ये भी सोचना चाहिए कि सरकारी मेडीकल कालेज उन्हें कितनी कम फीस पर डॉक्टर बनाकर जीवन भर कमाने लायक बनाते हैं जबकि इसी पढ़ाई के लिए निजी क्षेत्र के मेडीकल कालेज मोटी रकम वसूलते हैं। ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि सरकारी मेडीकल कालेज से पढ़कर अच्छी खासी निजी प्रैक्टिस जमाने या अपना नर्सिंग होम खोलकर धन अर्जित कर रहे डॉक्टरों के अपने बेटे-बेटी जब सरकारी मेडीकल कालेज में प्रवेश प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं तब वे अपनी कमाई में से निकालकर निजी मेडीकल कालेज वालों को लाखों और उससे भी ऊपर की रकम देने में नहीं हिचकते। कहने का आशय ये है कि सरकारी मेडीकल कालेज में जितने कम खर्च पर एमबीबीएस और एमडी -एमएस की डिग्री मिल जाती है वह किसी उपहार या उपकार से कम नहीं है। सरकार में बैठे लोगों की समझ और निर्णय क्षमता निश्चित रूप से सवालों के घेरे में रहती है। आईएएस नामक जमात के मन में व्याप्त श्रेष्ठता का भाव भी कई तरह की समस्याओं की जड़ है। मंत्री बनकर बैठे लोगों में विषय को समझकर समय रहते उसका समुचित निराकरण करने के प्रति उदासीनता के परिणामस्वरूप ही हर क्षेत्र में असन्तोष और असमंजस बना रहता है। जूनियर डाक्टरों की मांगों पर टालमटोली करते रहने का ही परिणाम है कि स्थिति यहां तक आ गई। और फिर जब वे हड़ताल पर गए थे तो पहले से वैकल्पिक चिकित्सा प्रबन्ध करने चाहिए थे। खैर, जो हो रहा है वह अपने यहां नई बात नहीं लेकिन देश जिन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है उनकी राह में इस तरह के आंदोलन रोड़ा बन जाते हैं। डॉक्टरों की हड़ताल के चलते मरीज़ों का इलाज न हो पाने से बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है? मप्र में चूंकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं इसलिए हर सरकारी विभाग में आन्दोलन का माहौल है। लेकिन डॉक्टरों की हड़ताल का सीधा संबंध चूंकि जीवन रक्षा से है इसलिए उनके पेशे में अधिकारों की तुलना में कर्तव्य कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। उम्मीद है सरकार और हड़ताली डाक्टर मिलकर ऐसा कोई रास्ता निकालेंगे जिससे भविष्य में इस तरह की स्थिति दोबारा न उत्पन्न हो सके क्योंकि बीमारी और मौत हड़ताल नहीं करती।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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