Monday 30 July 2018

भीड़ की हिंसा में भेद न किया जाए


भीड़ की हिंसा अब केवल गाय के तस्करों तक सीमित न रहकर साधारण किस्म के अपराधियों को दंडित करने तक बढ़ गई है। गत दिवस गुजरात में उत्तेजित लोगों की भीड़ ने चोरी के एक आरोपी को पीट-पीटकर मार डाला। इसी तरह की घटनाओं में कुछ अन्य राज्यों में बच्चा चोरी के संदिग्धों को भी मौत के घाट उतार दिया गया। जिस तरह से दुष्कर्म के प्रकरण रोजमर्रे की खबर बन गए हैं उसी तरह से अब भीड़ की हिंसा भी संक्रामक रोग की तरह फैल रही है। गो तस्करों को पीटकर मार डालने को लेकर तो संसद से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक चिंता व्यक्त करते हैं लेकिन वैसा ही अमानुषिक व्यवहार अन्य किसी के साथ किये जाने पर वैसी प्रतिक्रिया नहीं आने से लगता है कि अपराध का विश्लेषण भी राजनीतिक आधार पर किया जाने लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से भीड़ की हिंसा रोकने सम्बन्धी कानून बनाने कहा है जिस पर विचार भी हो रहा है लेकिन चोर या ऐसे ही किसी सामान्य अपराधी को मरने की हद तक पीटने की जघन्यता अचानक विकसित हो गई ये मान लेना भी सही नहीं होगा। भीड़ चूंकि विवेकहीन होती है इसलिए उससे संयम की अपेक्षा नहीं की जाती लेकिन ये तो कहा ही जा सकता है कि कुछ लोगों के भड़काने पर ऐसा होता है। लेकिन इस प्रवृत्ति के जोर पकडऩे के पीछे लोगों का कानून पर से उठता जा रहा विश्वास भी  वजह है। पुलिस की भ्रष्ट छवि और अदालती दण्ड प्रक्रिया की कछुआ चाल ने समाज के भीतर निराशा और अविश्वास का भाव भर दिया है जिसकी परिणिती इस तरह की दुखद घटनाओं की शक्ल में सामने आने लगी है। यद्यपि कोई भी सुलझा हुआ व्यक्ति और सभ्य समाज इस तरह के जंगल राज शैली के न्याय का समर्थन नहीं करेगा किन्तु कानून के निर्माताओं और रखवालों के लिए भी वर्तमान माहौल गंभीरता के साथ विचार करने योग्य विषय है जिसमें समाज शास्त्रियों की मदद भी ली जानी चाहिये। भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए अलग से कानून बनाने की जरूरत भी अपने आप में मौजूदा व्यवस्था में निहित कमजोरियों को उजागर कर रही है। ये तो तय है कि इस तरह की प्रवृत्ति पर एक दिन में अंकुश नहीं लगाया जा सकता लेकिन इस पर रोक लगाने के लिए ज्यादा रुकना भी नुकसानदेह होगा। बेहतर होगा भीड़ की हिंसा चाहे वह गाय के नाम पर हो या चोरी के, उसे एक ही नजरिये से देखा जाना चाहिए जिससे कि उसे लेकर राजनीति करने वाले अपना उल्लू सीधा न कर पाएं क्योंकि उसी की वजह से ऐसी घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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