Thursday 26 July 2018

पाकिस्तान : इमरान की आड़ में फौजी शासन


पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के जो चुनाव परिणाम अब तक प्राप्त हुए हैं उनके मुताबिक पूर्व क्र्रिकेटर इमरान खान की  पार्टी पीटीआई ( पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ ) सबसे बड़े दल के तौर पर तो उभरी है किंतु उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिलने से राजनीतिक अनिश्चितता के आसार बन गए हैं। अंतिम परिणाम आने तक हो सकता है वे बहुमत की दहलीज छू भी लें किन्तु तब भी एक स्थिर सरकार से ये मुल्क वंचित रहेगा क्योंकि नेशनल असेम्बली में निर्दलीय और आतंकवादी संगठनों द्वारा समर्थित सांसद भी काफी बड़ी संख्या में जीतकर पहुंच रहे हैं । वे सरकार को समर्थन देने की जैसी कीमत वसूलेंगे वह इमरान खान के लिए बड़ी मुसीबत बने बिना नहीं रहेगी। चूंकि नवाज शरीफ की पार्टी दूसरे स्थान पर रहने के बाद भी काफी पीछे है और सेना से उसका छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है इसलिए इतना तय है कि नई सरकार इमरान के नेतृत्व में ही बनेगी जिसे भुट्टो परिवार के कब्जे वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का सहयोग मिल सकता है। बावजूद इसके पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग ( नवाज) को जोरदार समर्थन मिला और प्रांतीय सरकार उसी की बनना तय है । इन नतीजों के बाद पाकिस्तान एक बार फिर सियासी उठापटक का शिकार होने जा रहा है क्योंकि इमरान का सत्ता में आना अप्रत्यक्ष तौर पर सेना के हाथ में कमान जाना माना जा रहा है। सबसे बड़ी बात ये होगी कि सहानुभूति के नाम पर अपनी पार्टी की सरकार बना लेने का सपना पूरा नहीं होने से अब नवाज शरीफ  और उनकी बेटी- दामाद का जेल से बाहर आना कठिन हो जाएगा क्योंकि इमरान से उनका झगड़ा राजनीति से ऊपर उठकर व्यक्तिगत बन गया है। कहा जा रहा है कि सेना ने इस चुनाव को अपने ढंग से प्रभावित किया। मतदान केंद्रों पर सेना की तैनाती का नवाज की पार्टी ने बहुत विरोध किया किन्तु उसे नजरअंदाज कर दिया गया। पूरे परिणाम आने के पहले ही नवाज के भाई शाहबाज ने धांधली का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। अब तक जो स्थिति बनती दिख रही है उसमें मिली-जुली सरकार  के आसार हैं और यही अनिश्चितता का कारण बनेगा। इमरान खान अपनी साफ सुथरी छवि के कारण सत्ता तक पहुंचे हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध वे लंबे समय से लड़ते आ रहे थे लेकिन उनकी भुट्टो परिवार से कैसे पटेगी ये भी देखने वाली बात होगी क्योंकि स्व. बेनजीर भुट्टो के पति पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के भ्रष्टाचार के खिलाफ  भी इमरान खूब लड़े हैं। उनके बेटे बिलावल भी नेशनल असेंबली में आ गए हैं। जरदारी उन्हें मंत्री बनवाने की कोशिश जरूर करेंगे क्योंकि बिलावल भविष्य का चेहरा माने जा रहे हैं। लेकिन निर्दलीयों की विशाल संख्या और आतंकवादी गुटों के कई नुमाइंदों का चुनाव जीत जाना पकिस्तान की राजनीति को नई करवट दे सकता है। यही वजह है कि इस मुल्क की सियासत पर नजर रखने वाले सभी प्रेक्षक मान रहे हैं कि नई सरकार पर चूंकि सेना और आईएसआई का शिकंजा और कड़ा हो जायेगा इसलिए भारत के साथ उसके रिश्ते सुधरना तो दूर और बिगड़ सकते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान जिस तरह की भाषा बोलते रहे वह उनमें आए बड़े बदलाव का संकेत था जो सेना के दबाव का परिणाम कहा जा सकता है। वरना इमरान अपनी भारत यात्राओं के दौरान दोनों देशों के बीच दोस्ताना कायम करने की वकालत करते नहीं थकते थे। ऐसा लगता है सत्ता में आने की चाहत उन्हें सेना के नजदीक ले गई। भारत के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता उसके लिए समस्या बनती आई है। इमरान जैसा आधुनिक सोच वाला व्यक्ति भी जिस तरह से भारत विरोधी विचार रखने लगा उससे ये लगता है कि उनकी सरकार के साथ भारत के संबंध बेहद तनावपूर्ण रहेंगे और उसके सेना की कठपुतली बने रहने की स्थिति में सीमा पर युद्ध के साथ आतंकवाद रुपी संकट मंडराता रहेगा। ऐसे में भारत सरकार को बेहद सतर्क रहना होगा क्योंकि बड़ी बात नहीं यदि थोड़े दिनों बाद इमरान को हटाकर सेना खुद सत्ता पर काबिज हो जाए। इसके अलावा जो सबसे बड़ी बात हो सकती है वह पाकिस्तान की सियासत का सूबों  में बंट जाना। विशेष तौर पर पंजाब और सिंध में अलग-अलग पार्टियों के वर्चस्व से खींचातानी बढ़ेगी जो मुल्क के अस्तित्व के लिए भी खतरा बन सकती है। एक कमजोर सरकार पाकिस्तान की एकता को कितना बरकरार रख सकेगी ये देखना महत्वपूर्ण होगा। वैसे एक बात इस चुनाव में खास तौर पर देखने मिली कि पहली बार वहां विकास बड़ा मुद्दा बना और सभी प्रमुख दलों ने भारत के साथ प्रतिद्वंदिता करने का वायदा मतदाताओं से किया। नरेंद्र मोदी भी खूब चर्चा में रहे । इमरान, शाहबाज खान और बिलावल तीनों ने भारतीय प्रधानमंत्री से बेहतर कर दिखाने की प्रतिबद्धता दोहराई जो सतही तौर पर तो इस देश की सोच में आये बदलाव का संकेत माना जा सकता है किन्तु भारत विरोधी बयानबाजी में तीनों जिस तरह आगे-आगे हुए उससे लगता है इस मुल्क का का मूल चरित्र नहीं बदला जो भारत के लिए चिंता का कारण बना रहेगा। सबसे बड़ी बात ये रही कि इमरान की पीठ पर जिस तरह सेना ने हाथ रखा वह नए तरह का गठजोड़ है जिसमें सम्भवत: सेनाध्यक्ष पृष्ठभूमि में रहकर सत्ता का संचालन करेंगे ताकि विश्व समुदाय में पाकिस्तान की छवि को सुधारा जा सके। अंतिम स्थिति दोपहर तक स्पष्ट हो जावेगी लेकिन शाहबाज खान ने चुनाव निष्पक्ष नहीं होने के आरोप लगाकर ये संकेत दे दिये हैं कि आने वाले दिन पाकिस्तान के लिए अशांति भरे रहेंगे । पंजाब में नवाज शरीफ  की पार्टी का प्रांतीय सत्ता में लौटना टकराव का कारण बना रहेगा । हो सकता है जेल से बाहर आने के लिए नवाज सेना के साथ सौदेबाजी करें किन्तु आज की स्थिति में ये कहना गलत नहीं होगा कि परोक्ष तौर पर सैनिक शासन चलने से पाकिस्तान के अंदरूनी हालात तो तनावग्रस्त रहेंगे ही लेकिन भारत के लिए भी ये पड़ोसी समस्या पैदा करता रहेगा । इमरान यदि नेशनल असेंबली में बड़ा बहुमत लेकर आते तब ये उम्मीद लगाई जा सकती थी कि चुनावी रंग को उतारकर वे भारत के साथ दोस्ताना बढ़ाएंगे लेकिन नतीजों ने उस उम्मीद पर सवालिया निशान लगा दिए । भारत सरकार को अब और सतर्क रहना होगा क्योंकि अनिश्चितता में फंसा पाकिस्तान हमेशा से समस्या पैदा करता रहा है ।

-रवींद्र वाजपेयी

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