Friday 13 July 2018

राहुल की कोशिशों को पलीता लगा रहे दिग्गी,मणि और शशि


शशि थरूर मौजूदा राजनेताओं में सबसे अधिक सुशिक्षित, अनुभवी और सुलझी हुई सोच के माने जाते हैं। उनकी अधिकांश जि़न्दगी विदेशों में कटी। संरासंघ की सेवा में रहने के कारण वैश्विक संपर्क और दृष्टिकोण सम्पन्न हैं। केरल उनका मूल स्थान है यद्यपि जन्मे इंग्लैंड और पढ़े दिल्ली में हैं। उच्च शिक्षा विदेश में प्राप्त करने के उपरांत संरासंघ की सेवा में रहे। उसके महासचिव का चुनाव भी लडऩे की असफल कोशिश कर चुके थे। बहुत अच्छे स्तम्भ लेखक होने के साथ भारतीय इतिहास, संस्कृति, फिल्में जैसे विषयों पर अनेक पुस्तकों के रचयिता भी हैं। वक्तृत्व कला में बेहद माहिर हैं। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होने से प्रभाव छोड़ते हैं। रसिया किस्म के व्यक्ति हैं। तीन शादियां कर चुके हैं। पहली दो पत्नियों से तलाक हो गया और तीसरी सुनंदा पुष्कर की संदिग्ध मृत्यु के मामले में बीते सप्ताह ही ज़मानत हासिल कर चुके हैं। विदेश में सेवा करने के बाद भारत लौटकर पहले तो लेखन करते रहे फिर कांग्रेस में शरीक होकर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से लोकसभा चुनाव जीतकर मनमोहन सरकार में मंत्री बन बैठे। हवाई जहाज की इकॉनामी क्लास को जानवरों के चलने लायक कहकर पहली मर्तबा विवादित हुए। बाद में मंत्री बनने पर सरकारी बंगले की मनमाफिक साजसज्जा के चलते पंच सितारा होटल के महंगे सुईट में महीनों रहने के कारण आलोचना के पात्र भी बने। इन्हीं सबकी वजह से अपने निर्वाचन क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर होती गई। 2009 में जहां वे 99 हज़ार से जीते वहीं 2014 में जीत का अंतर घटकर 14 हजार रह गया। उसके बाद भी श्री थरूर की छवि एक बुद्धिजीवी राजनेता की बनी रही। एक समय ऐसा भी आया जब नरेंद्र मोदी की प्रशंसा  में कुछ बयान देने पर उनके भाजपा प्रवेश की अटकलें लगने लगीं थीं किन्तु सुनन्दा पुष्कर मामले में घिरने के बाद वे घोर मोदी विरोधी बन बैठे। कभी-कभार विवादित बयान भी उनको चर्चा में बनाये रखते थे किंतु विगत दिवस उन्होंने अब तक का सबसे गैर जिम्मेदाराना और आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा कि यदि 2019 में भाजपा सत्ता में आई तो संविधान फाड़ दिया जावेगा और भारत 'हिन्दू पाकिस्तानÓ बन जावेगा। श्री थरूर बड़े ही धार्मिक व्यक्ति हैं। सुनन्दा से  विवाह के पहले उनको लेकर देश भर के प्रमुख तीर्थस्थलों पर उन्होनें पूजा अर्चना की। उन्हें कांग्रेस का आधुनिक चेहरा भी माना जाने लगा था। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की दौड़ में भी वे शरीक होने लगे थे किंतु 'हिन्दू पाकिस्तानÓ जैसा बयान देकर शशि ने अपनी फजीहत तो करवाई ही साथ में कांग्रेस पार्टी के लिए भी शर्मनाक स्थितियां उत्पन्न कर दीं जिनमें उसके पास उक्त बयान से किनारा करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। निश्चत रूप से भाजपा को श्री थरूर के बयान से आक्रामक होने का अवसर मिल गया। शशि ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में वह विवादित बयान शायद इसलिये दिया होगा क्योंकि केरल में मुस्लिम और ईसाई मतदाता बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं। वहां रास्वसंघ और भाजपा का प्रभाव निरन्तर बढऩे से श्री थरूर को अपना राजनीतिक भविष्य खतरे में दिखाई देने लगा। पिछला चुनाव तो वे कोहनी के बल चलकर जीते थे। शायद यही सोचकर उन्होनें 'हिन्दू पाकिस्तानÓ जैसा अवांछनीय शब्द इस्तेमाल कर मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं को लुभाने का दांव चल दिया लेकिन वे भूल गए कि सूचना क्रांति के इस युग में  देश तो क्या दुनिया के किसी भी हिस्से की खबर पलक झपकते सब दूर फैल जाती है और वही इस मामले में भी हुआ। शशि की जुबान से निकले शब्दों ने पूरे देश को आश्चर्यचकित कर दिया। कांग्रेस पार्टी उसके नुकसान को ज्योंही समझी त्योंही उसने श्री थरूर पर पूरा बोझा डालकर अपने को 'हिन्दू पाकिस्तानÓ नामक टिप्पणी से दूर कर लिया किन्तु तब तक जो नुकसान होना था वह हो चुका था। यदि कांग्रेस श्री थरूर के बयान का विरोध करती तब तो बात समझ में आती लेकिन केवल उनसे पल्ला झाड़ लेने मात्र से वह अपने दामन पर आए छींटों से नहीं बच सकी। जहाँ तक बात शशि की रही तो कैटल क्लास वाले उनके बयान का तो केवल बुद्धिजीवी वर्ग ने संज्ञान लिया था जबकि कल आए उनके बयान ने ये साबित कर दिया कि उन्हें बुद्धि का अजीर्ण हो गया है। भारत को हिंदु राष्ट्र कहना तो फिर भी स्वाभाविक और तर्कसंगत हो सकता था किन्तु  'हिन्दू पाकिस्तानÓ कहने के पीछे सिवाय कुंठा या पागलपन के और क्या हो सकता है? यदि श्री थरूर ने अपने आपको अल्पसंख्यकों का हितैषी साबित करने का प्रयास किया है तब तो ये और भी खतरनाक खेल है। आश्चर्य की बात है कि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और वरिष्ठ नेता शरद यादव ने भी शशि की हां में हां मिलाई है। वोट बैंक और तुष्टीकरण के लिए हमारे देश के राजनेता किस हद तक गिर सकते हैं, सन्दर्भित बयान उसका ताजा उदाहरण है। एक तरफ  तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद को जनेऊधारी प्रचारित करवाते हुए मंदिरों और मठों में जाकर पूजा-अर्चना के जरिये हिन्दू समुदाय को जोडऩे के लिए हरसम्भव प्रयास कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ  दिग्विजय सिंह, मणिशंकर अय्यर और उसी कड़ी में जुड़कर शशि थरूर जैसे नेता ऐसे बयान देने में नहीं चूकते जिससे राहुल द्वारा कांग्रेस को हिन्दू हितचिंतक पार्टी बनाने के सारे प्रयास मिट्टी में मिल जाते हैं। गुजरात चुनाव के पहले श्री अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री को लेकर की गई निम्नस्तरीय टिप्पणी ने अंतिम समय पांसा पलट दिया और काँग्रेस के हाथ आई जीत निकल गई। यद्यपि काँग्रेस ने मणिशंकर को निलंबित कर नुकसान से बचने का प्रयास किया किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भगवा और हिन्दू आतंकवाद जैसी टिप्पणियों के कारण भी कांग्रेस को काफी नुकसान होता आ रहा है किंतु उसके बाद भी अपने कतिपय नेताओं के विरुद्ध वह कोई कदम नहीं उठाती जिससे उनकी बेलगाम जुबान से निकले ज़हर से पार्टी को नुकसान होना जारी  है। श्री अय्यर के निलंबन के बाद उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई हुई ये कोई नहीं जानता। दिग्विजय सिंह तो लंबे समय तक राहुल के करीबी बने रहे। उस आधार पर कहा जा सकता है कि शशि के खिलाफ  भी शायद ही कोई कदम उठाये जाएंगे। लेकिन ऐसा न करने से राहुल की कोशिशें एक कदम आगे दो कदम पीछे साबित हो जाती हैं। आश्चर्य की बात तो ये है कि दिग्विजय, मणिशंकर और शशि तीनों उच्च शिक्षित और अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि से होने के बावजूद ऐसे बयान देते हैं जिससे उनकी और कांग्रेस दोनों की छवि को जबरदस्त नुकसान होता है। अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए गलत-सलत कुछ भी करने की वजह से ही कांग्रेस इस दुरावस्था में पहुंच गई लेकिन अब भी यदि उसे अक्ल नहीं आ रही तो फिर उसका भविष्य अच्छा नहीं कहा जा सकता।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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