Saturday 7 July 2018

भारत में फर्जी शरीफ  कब जेल जाएंगे

पाकिस्तान का नाम लेते ही आम भारतीय के मन में घृणा और क्रोध का भाव आ जाता है। इसकी वजह शत्रुता का वह बीज है जिसके कारण 1947 में भारत का विभाजन  और पाकिस्तान का जन्म हुआ। इस्लाम के नाम पर बना ये मुल्क प्रारम्भ से ही राजनीतिक अस्थिरता झेलता रहा और सेना के हस्तक्षेप की वजह से वहां प्रजातन्त्र पर सदैव खतरे मंडराते रहे। तख्ता पलट भी खूब हुए लेकिन बीते कुछ वर्षों से वहाँ का माहौल थोड़ा बदला है और न्यायपालिका राजनेताओं के भ्रष्टाचार के विरुद्ध साहस के साथ सामने आई है। इसका ताजा प्रमाण पूर्व प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ और उनकी बेटी को ब्रिटेन में अर्जित अघोषित संपत्ति के आरोप में सुनाई गई क्रमश: 10 और 7 वर्ष की सजा है। इसी के चलते शरीफ  को अपनी गद्दी छोडऩी पड़ी थी। पूर्व राष्ट्रपति जरदारी और परवेज मुशर्रफ भी अदालती मामलों में उलझे हैं किंतु शरीफ  और उनकी बेटी को भ्रष्टाचार के लिए दी गई सजा पाकिस्तान जैसे भ्रष्ट देश के लिए मायने रखती है। शरीफ  परिवार पंजाब प्रांत में प्रभुत्व रखता है। उनके भाई वहां के मुख्यमंत्री  बनते आ रहे हैं। चुनाव सिर पर होने से ये फैसला शरीफ  परिवार के सियासी भविष्य को खतरे में डाल सकता है। हो सकता है सर्वोच्च न्यायालय फिलहाल स्थगन देकर उन्हें तात्कालिक राहत भी दे दे लेकिन ये निर्णय भारत के लिए भी विचारणीय बन गया है जहां राजनेताओं का भ्रष्टाचार दिल्ली से ग्राम स्तर तक व्याप्त है। लेकिन इक्का-दुक्का मामले छोड़ दें तो सजा जैसी बात कम ही सुनाई देती है। लालू और जयललिता सदृश अपवाद अवश्य हुए लेकिन आम तौर पर नेताओं के खुले भ्रष्टाचार पर नकेल कसने में हमारी समूची व्यवस्था लाचार साबित हुई है। मोदी सरकार के सत्ता में आने की बड़ी वजह पिछली सत्ता के दौरान हुआ जबरदस्त भ्रष्टाचार भी था किंतु 4 साल बीतने पर भी किसी को जेल भेजने जैसी बात सामने नहीं आई। लालू गए भी तो पुराने मामले में। ये बात सही है कि न्यायपालिका कोई सैन्य अदालत नहीं है लेकिन उच्च स्तर के भ्रष्टाचार के कसूरवारों को दंडित करने के मामले में भारतीय जांच एजेंसियां और अदालतें अपनी भूमिका का निर्वहन अपेक्षित ढंग से नहीं कर पा रहीं। यही वजह है कि शरीफ  और उनकी बेटी को सजा सुनाए जाते ही भारत में ये प्रश्न गूंजने लगा कि हमारे यहां बड़े मगरमच्छों के साथ ऐसा कब होगा? यद्यपि पाकिस्तान किसी भी दृष्टि से भारत के लिए आदर्श और अनुकरणीय नहीं हो सकता किन्तु प्रधानमंत्री रहे व्यक्ति के विरुद्ध इस तरह के फैसले ने उस बदनाम मुल्क की विश्वसनीयता में वृद्धि की ये मानने में कुछ भी गलत नहीं है। कुछ लोग इसे शरीफ  परिवार को चुनाव से बाहर करने का दांव भी बता रहे हैं लेकिन नवाज शरीफ  का भ्रष्टाचार खुली किताब होने की वजह से उनके प्रति सहानुभूति नहीं बची। लौटकर भारत की तरफ  देखें तो हमारे देश में कई ऐसे नेता मिल जाएंगे जो सत्ता में आने से पहले गरीबी रेखा से नीचे वाली श्रेणी में थे किंतु गद्दी मिलते ही अपार दौलत के मालिक बन बैठे। सूचना क्रांति के इस दौर में जब छोटी-छोटी बातें जगजाहिर होते देर नहीं लगती तब  नेताओं की करतूतें कैसे छिपी रह जाती हैं ये विश्लेषण का विषय है। अगले वर्ष हमारे देश में भी लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें तमाम ऐसे चेहरे जनता के सामने आएंगे जिनके दामन पूरी तरह से दागदार हैं किंतु जांच और अदालती कार्रवाई की मंथर गति के चलते वे सीना तानकर वोट मांगेंगे और जाति, धर्म के आधार पर जीतकर संसद में बैठ जाएंगे। गठबंधन के दौर में सौदेबाजी के चलते मंत्री बन जाएं तो भी आश्चर्य नहीं होगा। प्रजातन्त्र का इससे ज्यादा मखौल और क्या होगा? लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमारे देश की जनता भी मतदान करते समय प्रत्याशी की ईमानदारी और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता की बजाय क्षेत्रीयता, जाति और मज़हब जैसे मुद्दों को महत्व दे देती है जिससे उनके काले कारनामों को जनादेश रूपी चरित्र प्रमाणपत्र हासिल हो जाता है। नवाज शरीफ  और उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी कही जा रही बेटी मरियम को मिली सजा भारतीय सन्दर्भ में भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि हमारे देश में अनगिनत ऐसे बेईमान नेता हैं जिन्होंने शराफत और ईमानदारी का आवरण ओढ़ रखा है। बेहतर हो ऐसे लोगों के लिए विशेष अदालतें गठित कर भ्रष्टाचार के प्रकरणों का शीघ्र निपटारा किया जाए। लोकतंत्र में सामन्तशाही के इन अवशेषों को जब हर जगह प्राथमिकता मिलती है तो फिर इनके भ्रष्टाचार की जांच और दण्ड प्रक्रिया में भी वही तेजी होनी चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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