Monday 23 July 2018

जीएसटी में राहत : बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय

बीते सप्ताह का आखिरी दिन देश के लिए थोड़ी राहत लेकर आया जब जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद प्रभारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी देते हुए बताया कि अनेक वस्तुओं पर जीएसटी खत्म कर दी गई वहीं अनेक पर उसकी दरें कम कर दी गईं। 28 प्रतिशत  की अधिकतम दर से काफी वस्तुओं को 18 फीसदी पर ले आया गया। अब केवल 35 वस्तुओं पर अधिकतम जीएसटी लगेगा जबकि गत वर्ष 226 वस्तुएं 28 प्रतिशत की दर के अंतर्गत थीं। इस तरह एक वर्ष में 191 चीजें सस्ती की गईं जो एक शुभ संकेत है। श्री गोयल का कहना था कि इसके बाद जीएसटी से वसूल होने वाले राजस्व की स्थिति का आकलन करते हुए दरों में और कमी करने पर विचार होगा। ये सम्भावना है कि जीएसटी के पांच स्तर खत्म कर केवल तीन कर दिए जावें जो 5, 12  और 18 हो सकते हैं। इसी के साथ काउंसिल ने 5  करोड़ तक के टर्नओवर वाले प्रतिष्ठानों को तिमाही रिटर्न भरने की सुविधा दे दी जिससे 90 फीसदी व्यवसायी लाभान्वित होंगे। उल्लेखनीय है हर महीने रिटर्न की अनिवार्यता से ही अधिकांश व्यवसायी मोदी सरकार से भन्नाए हुए थे। यद्यपि जीएसटी लागू होते समय ही वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आश्वस्त किया था कि कर वसूली की स्थिति सन्तोषजनक रहने पर सरकार क्रमश: राहत देती रहेगी किन्तु देश के अधिकांश छोटे और मध्यम श्रेणी के व्यापारी एवं उद्योगपति जीएसटी के कारण बढ़ी कागजी कार्रवाई और हिसाब सम्बंधी झंझटों के कारण परेशान हुए। हर माह भरी जाने वाली विवरणी में इतनी जटिलताएं और व्यवस्थाजनित परेशानियां आईं कि जीएसटी जी का जंजाल लगने लगा। काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो इसे गब्बर सिंह टैक्स कहकर उसका मज़ाक तक उड़ाया। बहरहाल ये अच्छा संकेत है कि सरकार और जीएसटी काउंसिल दोनों ने जनता और व्यापार-उद्योग जगत की परेशानियों को समझकर उनके सुझावों को महत्व देते हुए ऐसे बदलाव किए जिनसे जीएसटी को लेकर व्याप्त भय और परेशानियां तो कम हो ही रही हैं लगे हाथ उपभोक्ता को भी महंगाई से राहत मिली है। जीएसटी भारत सदृश विविधता वाले देश के लिए एक नया अनुभव था इसलिए उसको स्वीकार करने में वक्त लगना स्वाभाविक था। चूंकि उसको लागू किये जाने को लेकर भी आखिर तक अनिश्चितता बनी रही इसलिये भी सरकारी तैयारियां उतनी अच्छी नहीं रहीं जितनी अपेक्षित थीं । किन्तु एक साल बाद अब स्थिति में पूरा तो नहीं किन्तु उतना सुधार तो आ ही गया है जिससे जीएसटी पूरी तरह से व्यवस्था बनते हुए स्वभाव में आ गया । ताजा बदलाव निश्चित रूप से स्वागतयोग्य हैं क्योंकि इससे जीएसटी से जुड़े हर वर्ग मसलन उपभोक्ता, व्यापारी, उद्योगपति और खुद सरकार सभी को अपनी तरह से राहत अनुभव होगा । रही बात सरकार के राजस्व में अनुमानित 10 हज़ार करोड़ की वार्षिक कमी की तो इस नुकसान की भरपाई कर चोरी रुकने के रूप में हो जाएगी क्योंकि अनुभव बताते हैं कि कर की दरें जितनी कम और प्रक्रिया जितनी सरल होगी उसकी उगाही उतनी ही ज्यादा होती है । हालांकि केंद्र सरकार की उदारता के पीछे आगामी चुनाव भी हैं जिनमें जीएसटी विपक्ष का प्रमुख हथियार बन सकता है । चूंकि व्यापार-उद्योग जगत भी जीएसटी को लेकर पहले से ही त्रस्त था इसलिए उसकी नाराजगी भाजपा को भयभीत कर रही थी जो पार्टी का परंपरागत वोट बैंक रहा है । इसीलिए ऐसी उम्मीद है कि अगले दो महीनों में जीएसटी काउंसिल राहतों की बरसात जारी रखेगी । सरकार और भाजपा को लग रहा है चुनाव के पूर्व जीएसटी की दरें घटाकर वह व्यापार-उद्योग जगत और जनता की नाराजगी दूर करने में कामयाब हो जायेगी । उनकी उम्मीद कहाँ तक पूरी हो सकेगी, कहना कठिन है किंतु चुनावी गणित से अलग हटकर देखें तो जीएसटी की दरों में कमी एवं प्रक्रिया का सरलीकरण हर दृष्टि से फायदेमंद हैं। काउंसिल की अगली बैठकों में इसी तरह की खुशखबरी आती रहें यही लोग चाहते हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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