Saturday 7 July 2018

बेगड़ जी की स्मृतियां सदैव जीवंत रहेंगी

जबलपुर में सैकड़ों नहीं अपितु हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन नर्मदा जी के दर्शनों हेतु जाते हैं। उनमें भक्त, नेता,व्यापारी और सैलानी सभी किस्म के लोग शामिल रहते हैं। सुबह से देर रात तक नर्मदा दर्शन का क्रम अनवरत चलता है। लेकिन नर्मदा को ईमानदारी से जिन लोगों ने देखा उनमें एक प्रमुख नाम अमृतलाल जी बेगड़ का है जो गत दिवस स्वर्गीय हो गए। शायद इसी कारण से वे अकेले ऐसे रहे जिन्हें नर्मदा पुत्र जैसा दिव्य सम्बोधन प्राप्त हुआ। बेगड़ जी के सान्निध्य में जो कोई आया, प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। सौंदर्य की नदी नर्मदा जैसी कृति का सृजन करने वाले अमृतलाल जी का व्यक्तित्व अपने आप में सौन्दर्यमयी था। अपनी धर्मपत्नी के साथ की गई नर्मदा परिक्रमा का जो  जीवन्त चित्र शब्द और रँगों के माध्यम से उन्होंने प्रस्तुत किया वह उन्हीं के बस की बात थी। सम्मान और पुरुस्कार उनके पास आकर खुद सम्मानित और पुरुस्कृत हुए। साहित्य, लोक संस्कृति और कला को जितनी सहजता से बेगड़ जी ने प्रस्तुत किया वह उन जैसे महान साधक की तपस्या ही थी। संस्कारधानी जबलपुर की वे शान और सम्मान दोनों थे। एक सम्पूर्ण जीवन उन्होंने जिया और तबियत के साथ जिया जिसमें गरिमा भी थी और सरलता भी। उम्र के नौवें दशक में भी जबलपुर के राइट टाउन स्टेडियम में उन्हें तेज चलते देख लोग आश्चर्य व्यक्त करते थे। उनकी शख्सियत बहुत ऊंची थी किंतु उनके पाँव सदैव जमीन पर रहे। न कभी वेश बदला न व्यवहार। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन की शांति उनका परिचय था तो महात्मा गांधी जैसी सरलता और सादगी उनके व्यक्तित्व का स्थायी हिस्सा। 90 वर्ष की सीमा रेखा छूने के बाद बेगड़ जी का चला जाना अस्वाभाविक कतई नहीं कहा जा सकता किन्तु उनके नाम के अनुरूप उनकी स्मृतियां अमृतस्वरूप सदैव जीवित ही नहीं जीवंत रहेंगी।
विनम्र श्रद्धाजंलि।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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